हर इंसान को जीवन में कहीं न कहीं विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। उस समय आदमी को कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करें क्या नहीं करे। हर समय दुविधा में विचार करता है। कि यह कार्य मुझसे होगा या नहीं होगा। ऐसी परिस्थिति में मानसिक रूप से कमजोर आदमी या तो आत्मसमर्पण कर देते है यानी प्रयास करना ही बंद कर देते है या फिर आत्मघाती हो जाते है यानी गलत रास्ता पकड़ लेते है और वह असमंजस में पड़ा रहता है
हमारे मन में असीम शक्तियां छुपी हुयी है आवश्यकता है, मन को एकाग्र करने की। किसी भी व्यक्ति का वास्तविक बल उसके एकाग्रता के भाव, सोच-समझ की शक्ति से ही पता चल जाती है। जिनका अवचेतन मन कुछ क्षण मात्र में ही चैतन्य हो जाता है ऐसे व्यक्ति समाज में कुछ कर दिखाने की क्षमता रखते है और वे व्यक्ति मानसिक तौर पर संबल होते है, और जीवन की हर परिस्थिति का सामना करते हुये अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त कर लेते है।
ऐसे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी दूसरों का मार्गदर्शन करने में सक्षम होते है। हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने अनेक-अनेक साधनाओं का प्रचलन किया है, इसके माध्यम से मन और शरीर पर शीघ्रता के साथ नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है और हर दृष्टि से हम शक्ति सम्पन्न बन सकते है।
दुःख और सुख जीवन के दो पहिये होते है केवल दुःख से या सुख से जीवन चल नहीं सकता। अगर हम सुख की कामना करते है तो दुःख भोगना ही पड़ता है। अगर हम आज दुःखी है तो अपने परिश्रम के फलस्वरूप कल सुख के भागीदार भी हो जायेंगे। अगर हम आज दुःखी है तो सुख भी निश्चित रूप से प्राप्त होगा ही।
और इस हेतु मानसिक तौर पर मजबूत व्यक्ति कभी कुछ समस्या हो जाने पर अपनी परिस्थितियों से घबराता नहीं है वरन द्विगुण उत्साह और शक्ति के साथ परिस्थितियों का मुकाबला करते है और अपनी जिम्मेदारी से भागने के बजाय उसे अच्छे से समझता है और उसे निभाने की कोशिश करता है। वो जानता है कि जिंदगी हमेशा एक जैसी नहीं रहती है। कभी-कभी ऐसे डाउनफॉल आते ही है। ऐसी परिस्थितियों से हमें सीख मिलती है। हम मानसिक रूप से भी परिपक्व हो जाते है।
मानसिक शक्ति से सम्पन्न व्यक्ति विशेष रूप से अपनी स्वतंत्रता हर परिस्थिति में बनाये रखते है। क्योंकि परतंत्रता के रूप में वह व्यक्ति रहता ही नहीं। किसी भी परिस्थिति में ऐसे व्यक्ति किसी को दोषी नहीं मानते है। कर्मयोग को स्वीकार करते हुये हर परिस्थिति के लिये स्वयं को जिम्मेदार मानते है। क्योंकि हम जो भी कर्म किये है उसी का फल हमे भोगना पड़ता है। सारे ब्रह्माण्ड ईश्वर के एक ही नियम पर परिचालित होता है-वो है कर्म सिद्धान्त। ऐसे मानसिक शक्ति सम्पन्न व्यक्ति अपने भावनाओं को पूर्ण रूप से नियंत्रण में रखते हुये अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहते है।
एक बात तो हर कोई जानता है कि एक समय पर आप हर किसी को खुश नहीं रख सकते। मानसिक क्षमता संबन्ध व्यक्ति इस बात को पालन भी करते है। इस दुनिया में अधिकांश व्यक्ति अपनी मनोकामना पूर्ण होने के बाद भी और भी अधिक इच्छाओं से युक्त होकर संतुष्टि भाव को प्राप्त नहीं कर पाते। सब कुछ होते हुये भी हमेशा मन में एक अपूर्णता, अभाव, दरिद्रता का भाव लिये हुये जीते रहते है। ऐसे व्यक्ति अपनी सभी मनोकामनायें पूर्ण होने के बाद भी अभाव से पीडि़त रहते है।
इस हेतु मानसिक शक्ति से परिपूर्ण व्यक्ति ऐसे व्यक्तियों की खुशी के लिये कुछ विशेष करने की आवश्यकता समझते नहीं है। वरन जिसको जरूरी है उसके लिये जीवन में कुछ करना उसी नियम को सही मानते हुये कर्म करते रहते है और किसी की निंदा या अपवाद वाक्यों से पीडि़त होते नहीं है और हमेशा हर माहौल में अपने आप को खुश रखना जानते है।
परिवर्तन का स्वागत करते हैं
प्रकृति में क्षण-क्षण परिवर्तन आता ही रहता है, प्रकृति पूर्ण रूप से गतिशील है। इस हेतु प्रकृतिदत्त यह शरीर भी हमेशा गतिशील रहता है और शरीर मन में भी अनेक-अनेक परिवर्तन समय अनुसार होते रहते है। अगर हम अकर्मण्यता भाव के साथ बैठ जाते है तो गतिशील प्रकृति के कारण शरीर में अवस्थित शक्ति रूपी प्रकृति कहीं हमे धकेलती रहती है। इस हेतु समीक्षा में पाया गया है कि अवकाश के समय में ज्यादा तर चोरी, डकैती, झगड़ा, हंगामा, हत्या आदि समाज में ज्यादा घटित होता है।
इस हेतु प्रकृति के साथ ताल मिलाते हुये कर्म करना सभी के लिये अनिवार्य है। मानसिक दृष्टि से परीपुष्ट व्यक्ति दुनिया के इस परिवर्तन क्रिया रूपी गतिशील प्रकृति को समझते है और जीवन में पुराने रूढि़वादी नियम को तोड़ते हुये हमेशा नित्य नवीन चिंतन तथा कार्यो से युक्त होते है। वो कभी परिवर्तन से नहीं डरते, बल्कि वो तो हमेशा सकारात्मक बदलाव के लिये तैयार रहते है। उन्हें पता होता है कि परिवर्तन हमेशा कुछ नया लाता है।
आज कोई व्यक्ति नकारात्मक कार्य कर रहा है तो कल वह बदलकर अच्छे कार्य करने वाला व्यक्ति भी बन सकता है। पाप के लिये प्रायश्चित है, प्रायश्चित करने से पाप से मुक्ति हो जाती है। परन्तु जीवन में भूल नहीं करना चाहिये किसी भी कार्य में अगर हम कुछ भूल करते है तो वहीं भूल के लिये क्षमा होती नहीं है और इतिहास में वह अमिट बनकर रह जाता है। इस हेतु मानसिक तौर पर मजबूत व्यक्ति कभी गलती करते ही नहीं है। किसी कारण वश अगर गलती हो भी जाती है तो दुबारा ऐसा करने की सोच भी नहीं रखते। उनके व्यवहार में एक गंभीरता होती है, वे अपनी हर पिछली गलती से सबक लेते है और उस गलती को जिंदगी में दोबारा कभी नहीं दोहराते। वो गलतियों से दूर हो कर आगे के भविष्य के बारे में सोचते हैं।
दुःख में सुख निकालने की कला सीखे
परमात्मा न किसी को सुखी करता है न किसी को दुःखी, सुख-दुःख स्वयं के अच्छे बुरे कर्मो का परिणाम है। जब व्यक्ति सद्कर्म में प्रवृत्त हो जाता है तो सुख मिलता है और जब व्यक्ति अनैतिक और पाप के कर्म में प्रवृत्त हो जाता है तो वह दुःख पाता है। सुख और दुःख जीवन के दो पहलू है जीवन में दुःख में से सुख निकालने की कला सिखनी चाहिये। जैसे कमल कीचड़ में पैदा होता है। वैसे ही सुख भी दुःख के कीचड़ में पैदा होता है।
व्यक्ति कर्म सिद्धान्त को मानता है फिर भी बुरे कर्म करता है। हम प्रत्येक घटना को धर्म से जोड़ते है। जबकि कर्म के परिणाम में द्रव्य, क्षेत्र, काल निमित कार्य करता है। एक हाथ से ले और हजारों हाथों से दे यह सिद्धान्त जिसने अपना लिया वह कभी कष्ट नहीं पाता। वह व्यक्ति बाहरी दुनिया से विमुख होकर आन्तरिक शक्ति जागरण का मार्ग है अर्थात् सुख का प्रमुख कारण यह भी है।
आत्मविश्वास सबसे बड़ी पूंजी
वह व्यक्ति शांति से जीवन जी सकता है जिसमें शक्ति होती है। शक्ति का तात्पर्य अपनी बात पर मजबूत बने रहना शान्ति और शक्ति के साथ जीने का पहला सूत्र है आत्मविश्वास, अपने पर भरोसा होना चाहिये। हमारी कठिनाई यह है कि जितना भरोसा हमे दूसरों पर है उतना स्वयं पर नहीं इसीलिये हमेशा कान भरे जायेंगे की दूसरा तुम्हारे बारे में क्या कहता है।
दूसरा जो कहता है वह कहता है पर तुम्हारी आत्मा तुम्हारे बारे में क्या कहती है तुम अपने आप से क्या कहते हो दूसरे की अपनी इच्छा है तुम एक काम करते हो वह दूसरे को अच्छा न लगता हो। सबका अलग-अलग चिन्तन की इतनी स्वतंत्रता और विविधता है कि कही किसी को बांधा नहीं जा सकता अगर दूसरे के चिन्तन के आधार पर हम अपने आपको देखे तो कभी शान्ति से जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता, शान्ति से जीवन व्यतीत करने के लिये मानसिक शक्ति का जीवन में होना बहुत जरूरी है। जिस व्यक्ति में शक्ति नहीं है। जो व्यक्ति मानसिक कमजोर है वह शांति से जीवन जी नहीं सकता। वह दूसरों की बात से स्वयं को बचा सके यह संभव नहीं है। शक्तिशाली वही होता है जिसे स्वयं पर भरोसा हो।
हमे आत्मबल बढ़ाने के लिये
निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिये उपरोक्त सिद्धान्तों को जीवन में अपनाकर, महापुरूषों के जीवन से प्रेरणायें लेकर, शुभ विचारों से युक्त संकल्प लेकर हम स्वयं का एवं समाज का भी भला कर सकते है। योग, प्राणायाम, मंत्र जप साधनायें आदि मानसिक बल को बढ़ाने में अत्यधिक सहायक होते है।
निधि श्रीमाली
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