संस्कृत में इसे वासक, वासिका, सिंहास्य, सिंहपर्ण, वैद्यमाता आदि नामों से बोधित करते है वहीं अंग्रेजी में इसे लायन्स मजल (LION’S MUZZLE), मालाबार नट स्टालिऑन टूथ (STALLION’S TOOTH), वासका (VASAKA) आदि नाम से जाना जाता है और हिन्दी में इसे अडूसा, अडुस, रूसा बिर्सोटा आदि नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम जस्टीसीआ अथाटोडा है।
COVID से सुरक्षा के लिये भी अडूसा के पत्तों से बने पाउडर या चूर्ण का सेवन लाभदायक है। अडुसा वातकारक, कफ पित्त कम करने वाला, स्वर के लिये उत्तम, हृदय की बीमारी, रक्त संबंधी बीमारी, तृष्णा या प्यास, श्वास संबंधी, ज्वर वमन, चर्म रोग तथा क्षय रोग में लाभप्रद है। श्वसन संस्थान पर इसकी मुख्य क्रिया होती है। यह कफ को पतला कर बाहर निकालता है। कफ के साथ यदि रक्त भी आता हो तो वह भी बंद हो जाता है। यह रक्तशोधक व रक्तस्तम्भक है क्योंकि यह छोटी रक्तवाहनियों को संकुचित करता है। यह प्राणदानाड़ी को अवसादित कर रक्त भार को कुछ कम करता है। नवीन कफ रोगों की अपेक्षा इसका प्रयोग पुराने कफ रोगों में अधिक लाभकारी होता है।
अडूसा के प्रकार
कृष्णवासा- काला वासा रस में कड़वा, तीखा तथा गर्म वामक व रेचक होता है एवं बुखार, बलगम बीमारी से राहत दिलाने तथा अर्दित (FACIAL PARALYSIS) आदि रोगों में लाभकारी होता है।
रक्तवासा-इसकी पत्तियां मृदुकारी तथा सूजन कम करने में मदद करता है।
अडूसा के लाभ
सिर दर्द- अडूसा के फूलों को छाया में सूखा के पीस लें, 1-2 ग्राम फूल के चूर्ण में समान मात्र मे गुड़ मिलाकर खिलाने से सिरदर्द से आराम मिलता है। अडूसा की 20 ग्राम जड़ को 200 मिली दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर, इसमें 30 ग्राम मिश्री तथा 15 नग काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सिरदर्द, आँख के रोग, दर्द, हिचकी, खांसी आदि में राहत मिलती है।
छाया में सुखे हुये वासा पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिरदर्द दूर होता है।
आँखों की सूजन- अगर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण या दिन भर कंप्यूटर पर काम करने की वजह से आंखों के आसपास सूजन आ गई हो तो वासा के 2-4 ताजे फूलों को गर्म कर आंख पर बांधने से आंख के गोलक की सूजन कम होती है।
मुँह में छाले या सूजन- मुँह के छालों को ठीक करने में अडूसा काफी उपयोगी है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार अडूसा शीत और कषाय होता है। जिससे यह मुँह के छालों के लक्षणों को कम करने में मदद करता है। यदि किसी इन्फेक्शन के कारण मुँह में घाव या सूजन हुआ है तो वासा का प्रयोग जल्दी आराम पाने में मदद करता है। यदि केवल मुँह के छाले हो तो वासा के 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है। इसकी लकड़ी की दातुन से मुख के रोग दूर हो जाते है। वासा के 50 मिली काढे़ में एक चम्मच गेरू और दो चम्मच मधु मिलाकर मुख में रखने से मुँह का घाव सूख जाता है।
मसूडों व दाँत दर्द से राहत- विशेषज्ञों के अनुसार अडूसा में कषाय होने के कारण यह दर्द और सूजन को कम करने में असरकारक है। इसलिये मसूडों के दर्द से परेशान होने पर चिकित्सक की सलाह से अडूसा का उपयोग करना लाभकारी रहता है। दांत या दाढ़ में कैविटी हो जाने पर उस स्थान में अडूसा के पत्ते का निचोड़ भर देने से आराम मिलता है।
सांस संबंधी रोग- अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सोंठ तथा रेगनी के 10-20 मिली काढें में 1 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण सांस संबंधी रोग पूर्ण रूप से ठीक हो जाते है। इसके पत्तों का सेवन अस्थमा रोगी के लिये भी अत्यधिक लाभकारी है।
खांसी में फायदेमंद- 5 मिली वासा पत्र स्वरस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से पुरानी खांसी, श्वास और क्षय रोग में लाभ होता है। अडूसा, मुनक्का और मिश्री का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली क्वाथ दिन में तीन-चार बार पिलाने से सूखी खांसी का शमन होता है। वासा के पत्तों का रस 1 चम्मच तथा 1 चम्मच अदरक रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी में आराम मिलता है।
टी-बी- या क्षय रोग- क्षय रोग में भी अडुसा का औषद्यीय गुण बहुत फायदेमंद तरीके से काम करता है। अडुसा के पत्तों के 20-30 मिली काटे में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर पिलाने से खांसी संबंधी समस्या और क्षय रोग में लाभ होता है।
अपच या आध्मान में अडूसा के फायदे- एसिडिटी, अपच जैसी समस्याओं से आज हर इंसान परेशान है। इस बीमारी से राहत पाने के लिये अडुसा का सेवन इस प्रकार करें। वासा या अडूसा छाल का चूर्ण 1 भाग, अजवायन का चूर्ण चौथाई भाग और इसमें आठवां हिस्सा सेंधा नमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरल कर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के बाद 1-1 गोली सुबह शाम सेवन करने से वात तथा आध्मान (विशेषतः भोजन करने के बाद पेट का भारी हो जाना, मन्द मन्द पीड़ा होना) में लाभ होता है।
पीलिया होने पर – वासा पंचाग के 10 मिली रस में मधु और मिश्री समान मात्र में मिलाकर पिलाने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
किडनी के दर्द से राहत दिलाये- अडुसा और नीम के पत्तों को गर्म कर नाभि के निचले भाग पर सेंक करने से तथा अडूसे के पत्तों के 5 मिली- रस में 5 मिली- शहद मिलाकर पिलाने से गुर्दे के दर्द में आश्चर्यजनक रूप में लाभ होता है
पैरों में ऐंठन में लाभकारी- वात रोग में अक्सर हाथ पैरों में ऐंठन होती है, इसमें वासा के पत्ते के रस में तिल का तेल मिलाकर मालिश करने से वात वेदना तथा हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है।
वासा के पके हुये पत्तों को गर्म कर के सिकाई करने से गठिये व जोड़ो के दर्द में आराम मिलता है।
ज्वर या टाईफाईड में लाभ- इसके लिये अडूसा का सही तरह से सेवन करना जरूरी होता है। 3-6 ग्राम वासा मूल चूर्ण का सेवन करने से आत्रिक ज्वर या टाइफाइड में लाभ होता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,