यूं तो शरीर का प्रत्येक अंग महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुछ अंग ऐसे हैं, जिन पर जीवन निर्भर होता है, जैसे हृदय, लीवर या जिन पर सांसारिक गतिविधियां निर्भर रहती हैं, जैसे आंखें जिनके कारण हम सब कुछ देखते हैं।
आंखों के बिना जीवन अन्धकारमय हो जाता है। आज कल जैसे युवावस्था में ही युवक-युवतियों के बाल उड़ने और पकने लगते हैं, वैसे ही नजर कमजोर होने की शिकायत होना आम बात हो गई है। कम उम्र में नजर कम होने के पूर्व में दो प्रमुख कारण थे- जन्मजात खराबी या कमजोरी होना या फिर पोषक आहार का न मिलना पर कुछ वर्षो से एक तीसरा कारण उत्पन्न हो गया है और वह है टी-वी, कम्पयूटर, मोबाईल, इनका अत्यधिक उपयोग आंखों पर बुरा प्रभाव डालता है।
आप जरा विचार करें कि अपनी आंखों की देखभाल और सुरक्षा के लिये आप कोई उपाय करते हैं या नहीं, तो अधिकतर यही उत्तर मिलेगा कि नहीं करते हैं। इसका कारण यह है कि जब तक शरीर के किसी अंग में कोई तकलीफ न हो तब तक उपाय करना तो क्या हमें उस अंग को याद भी नहीं करते। यह खयाल न आना ही अस्वस्थता होने का सूचक भी होता है, क्योंकि हमें किसी भी अंग का ख्याल ही तब आता है, जब उस अंग में कोई तकलीफ होती है। अब यदि तकलीफ होने से पहले ही हम खयाल रखें तो तकलीफ आये ही क्यों? आपने यह दोहा तो सुना ही होगा-
इस दोहे का भाव अंग्रेजी की इस कहावत से भी व्यक्त होता है कि प्रिवेशन इज बेटर देन क्योर अर्थात् बीमार हो कर इलाज कराने की अपेक्षा बीमार होने से बचाव करना अधिक अच्छा है। आयुर्वेद का प्रयोजन यानी उद्देश्य भी यही है यथा-
अर्थात् आयुर्वेद का प्रयोजन, स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और अस्वस्थ व्यक्ति के रोग को दूर करना है।
आयुर्वेद के इस प्रयोजन को हमें अपने जीवन में धारण करना चाहिये। जिससे लम्बी आयु तक नेत्र ज्योति अच्छी बनी रह सके। इसी आधार पर कुछ उपाय प्रस्तुत हैं जिन पर अमल कर नेत्र ज्योति सुरक्षित बनाये रखी जा सकती है। समय रहते ये उपाय शुरू कर देना ही बुद्धिमानी है वरना आग लगने पर कुआं खोदने से क्या होगा?
ये सब शरीर और स्वास्थ्य का सत्यानाश करने वाले है। आंखे चूंकि शरीर की सबसे कोमल और संवेदनशील अंग होती हैं, इसलिये इनको सबसे ज्यादा हानि पहुंचती है।
नेत्र ज्योति की सुरक्षा के लिये ऊपर अंकित उपाय करने से जहां नेत्र ज्योति की रक्षा होती है और हानि नहीं हो पाती वहीं नेत्र ज्योति वर्द्धक उपाय करते रहने से नेत्र ज्योति क्षीण नहीं हो पाती और शक्तिशली बनी रहती है। कुछ लाभप्रद उपाय प्रस्तुत है।
आंखों की देखभाल और नेत्र ज्योति की सुरक्षा के लिये सबसे बढि़या, गुणकारी और टिकाऊ असर रखने वाला उपाय है ऐसे पदार्थों का निरन्तर सेवन करना जिनसे शरीर को विटामिन ‘ए’ पर्याप्त मात्रा में मिलता रह सके क्योंकि विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ आंखों के लिये सबसे अधिक लाभकारी और नेत्र ज्योति को सशक्त बनाये रखने वाला तत्व है। इस विटामिन की कमी या अभाव से नेत्र ज्योति नष्ट होती है और अन्धत्व पैदा होता है। यूं तो बाजार में विटामिन ए कैपसूल केमिस्ट की दुकान पर मिलते हैं, पर ये कृत्रिम (सेन्थेटिक) पद्धति से बनाये हुये होते है, इसलिये पूरी तरह लाभदायक नहीं होते। इनकी अपेक्षा प्राकृतिक स्रोत स्वरूप में पत्ता गोभी, गाजर, आंवला, मूली, मटर, पके लाल टमाटर, धनिया, केला, छुहारा, सन्तरा, सोयाबीन, पपीता, हरी शाक सब्जी, दूध, मख्खन, मलाई, गाय का घी, पका मीठा आम आदि का उचित मात्रा में सेवन करने से नेत्र ज्योति कमजोर नहीं होती।
सुबह खाली पेट, सूर्योदय से पहले नित्यकर्मों से निवृत्त होने के बाद, आधा चम्मच मक्खन, आधा चम्मच पिसी मिश्री और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च मिला कर चाट लें। इसके बाद पानी वाले कच्चे नारियल के 2-3 टुकड़े खूब अच्छी तरह चबा कर खा लें फिर थोड़ी सौंफ मुंह में रख कर चबाते रहें और अन्त में निगल जायें। ये पांचों द्रव्य पौष्टिक भी हैं और नेत्रें की ज्योति को बरकरार रखने वाले भी हैं।
रात को सोने से पहले दोनों आंखों में, गुलाब जल की 2-2 बूंद डाल कर, थोड़ी देर तक आंखों पर ठण्डे पानी की पट्टी रखें। रात को मिट्टी के बर्तन में 1-2 गिलास पानी डाल कर इसमें 1-2 चम्मच त्रिफला चूर्ण डाल दें और ढ़क कर रख दें। सुबह इसे कपड़े से छान कर इस पानी से आंखें धोयें। आंखों में चिनमिनाहट हो तो फिक्र न करें। थोड़ी देर आंखों पर ठण्डे पानी की पट्टी रख कर लेटे रहें।
सूर्योदय समय पर नंगे पैर हरी घास पर टहलने से आंखों की ज्योति में लाभ होता है। पैर के तलवों पर शुद्ध घी से मालिश करने और ग्रीष्मकाल में मेंहदी लगाने से भी लाभ होता है।
तेज मिर्च मसालेदार एवं खटाई युक्त व्यंजनों, लाल मिर्च और उष्ण प्रकृति के पदार्थो का अधिक मात्रा में सेवन न करें। इनका सेवन यदा-कदा और कम मात्रा में ही करना चाहिये।
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