हम यदि जीवन की सारी क्रियाओं पर मनन करें, तो पायेंगे कि प्रत्येक क्रिया अन्य किसी और के संदर्भ में अर्थ पूर्ण हैं। लेकिन वे क्रियायें अपने आप में अर्थहीन है। इस तरह जीवन की सारी क्रियाओं के सम्बन्ध में पूछा जा सकता है, कि उद्देश्य क्या है, लेकिन स्वयं जीवन के सम्बन्ध में नहीं पूछा जा सकता है, क्योंकि जीवन के बाहर और जीवन से अलग कुछ भी नहीं है। इसलिये जो लोग जीवन को साधन अथवा साध्य बनाना चाहते है- कोई कहेगा मोक्ष, कोई कहेगा परमात्मा, ऐसे लोग समझ नहीं पा रहे हैं। क्योंकि तब यही सवाल परमात्मा के सम्बन्ध में खड़ा हो जायेगा। परमात्मा का प्रयोजन क्या है? मोक्ष का प्रयोजन क्या है, उसे पाकर क्या करेगे?
बजाय इसके कि जीवन के बाहर हम व्यर्थ की कल्पनाओं में हों, यह उचित होगा कि जीवन जो हमारे हाथ में है, उसे जीयें। लेकिन बड़ा प्रश्न यही है कि जीवन जीने योग्य हो, ऐसा जीवन आपके पास हो जिसे आप आनन्द के साथ जी सकें, यदि जीवन मनहूसियत, तनाव, उदासीनता, पीड़ाओं से भरा हो तो ऐसा जीवन जीकर भी क्या करोगे? जीवन हमारे हाथ में है, लेकिन आनन्दमय जीवन हमारे हाथ में नहीं है। लेकिन जीवन को कैसे जीयें कि समग्र उपलब्ध हो सके, वह हमारे हाथ में है।
यदि एक आदमी दुख में पड़ा हो तो वह निरंतर पूछता है कि इस दुख का प्रयोजन क्या है? कारण क्या है? मैं दुख में क्यों पड़ा हूं, लेकिन वही आदमी आनंद में उतर जाये तो वह आदमी कभी नहीं पूछता है कि इस आनंद का प्रयोजन क्या है क्योंकि आनंद स्वयं में ही प्रयोजन है।
एक आदमी को जीवन में प्रेम न मिले तो वह आदमी निरंतर पूछता है कि प्रेमहीन जीवन का क्या प्रयोजन है? लेकिन उसे प्रेम मिले और वह प्रेम में डूब जाये और नहा जाये तो उस क्षण वह नहीं पूछता कि प्रेम का प्रयोजन क्या है? प्रेम अपने में प्रयोजन है। आनंद अपने में प्रयोजन है, जीवन अपने में प्रयोजन है और आनंद और प्रेम तो बहुत छोटी घटनाएं हैं, जीवन तो समग्र नाम है। तो इस समग्र के बाहर कुछ भी नहीं बचता है। जीवन का मतलब है कि सब यहीं उपलब्ध है और उसे किस तरह हासिल करना है। उसी के लिये वह साधन बन सके। यह जीवन ही अपने आप में स्वयं साध्य है।
श्वास एक आदमी ले रहा है। अगर वह आनंद से श्वास ले रहा हो तो एक-एक श्वास भी अपने आप में अर्थपूर्ण है। फिर वह नहीं पूछता कि यह श्वास क्यों? यही श्वास जब लेना दुखद और कष्टपूर्ण होता है, तब आदमी प्रयोजन की बात करता है, जब आनंद होता है, तब प्रयोजन की बात नहीं उठती।
अतः स्पष्ट है कि दुखी चित्त के लिये यह सवाल है कि जीवन का प्रयोजन क्या है? आनंद में यह सवाल ही समाप्त हो जाता है। इसका उत्तर है ही नहीं। जब हम पूरे आनंद में पड़े होते हैं तो आनंदित होना ही सब कुछ होता है। उसके आगे कोई सवाल नहीं रह जाता। आनंद का क्षण ही इटरनिटी है उसके बाहर कुछ है ही नहीं। उसके पार कुछ सवाल ही नहीं उठता। उसके पार चित्त नहीं जाता, विचार नहीं जाता, कल्पना नहीं जाती, प्रश्न नहीं जाता।
तो जीवन अपने आप में अपना लक्ष्य, अपना आनंद, अपना अर्थ, अपना प्रयोजन है और जीवन को जो व्यक्ति किसी और चीज के लिये प्रयोजन बनाएगा, वह दुख में पड़ जायेगा। कुछ लोग जीवन को धन के लिये प्रयोजन बना लेते हैं। धन जीवन के लिये प्रयोजन हो सकता है, साधन हो सकता है, लेकिन जीवन धन के लिये नहीं हो सकता है। वह आदमी पागल है जो सोचता है कि धन कमा लिया तो जीवन का अर्थ पूरा हो गया। वह आदमी समझदार है जो धन को जीवन की गहराइयों में उतरने में सहयोगी और साथी बना रहा है अर्थात धन का पूरा-पूरा सदुपयोग कर रहा है।
जीवन न धन के लिये साधन है और न धर्म के लिये। कुछ लोग धर्म के लिये जीवन को साधन बना रहे हैं, पूजा-पाठ, त्याग-तप और सारा जीवन इसमें लगा दिया है। वे भी वही गलती कर रहे हैं, जो धन कमाने वाला कर रहा है। प्रार्थना-पूजा सब जीवन के लिये है। जीवन से ऊपर कुछ भी नहीं है, न हो सकता है। ऐसी कोई चीज नहीं हो सकती, क्योंकि उसका कोई मतलब नहीं है, जिसके लिये हमे जीवन खोना पड़े, अगर मैं ही नहीं बचता तो उस चीज का प्रयोजन क्या है? लेकिन बहुत भूलें चल रही हैं। कुछ लोग धन के लिये जीवन गंवा देते हैं, कुछ लोग धर्म के लिये जीवन गंवा देते हैं, कुछ किन्हीं और चीजों के लिये जीवन गंवाते हैं, लेकिन मेरी दृष्टि में चाहे जीवन कोई किसी भी चीज के लिये गंवा रहा हो, वह गलती कर रहा है और उसे कभी कुछ उपलब्ध न होगा, वह भटक जायेगा। सारी चीजें जीवन के लिये है, जीवन से अलग कुछ भी नहीं है।
और यह बात खयाल में आ सके तो फिर पौधे का जीवन भी आनंदपूर्ण है, केवल आदमी का जीवन ही महत्वपूर्ण नहीं है। जीवन जहां भी है, अनंत-अनंत रूपों में, सब जगह साध्य वही है और एक पौधा भी जब फूलों से भर जाता है और हवाओं में नाचता है तो किसी बुद्ध से कम आनंद में नहीं होता और एक पक्षी भी जब सुबह उठकर गीत गाता है, आनंद का, खुशी का तो वह भी पूर्ण आनन्दमय होता है। जीवन में केवल और केवल आनन्द की अनूभुति ही पूर्णता है, यदि आप अपने जीवन में पूर्णरूपेण आनन्द से सराबोर हो गये तो यही पूर्णता है, इसे आप चाहे मोक्ष का नाम दें या निर्वाण का या आप कहें कि ईश्वर उपलब्ध हो गया, सभी का तात्पर्य आनन्द से है।
जीवन एकमात्र छल है, यदि आप इस सोच में है कि आपका कल आपके अनुसार निर्मित होने वाला है, तो आप बड़ी भूल में हैं किसी के भी जीवन में समय उस व्यक्ति के अनुसार नहीं होता बल्कि समयानुसार जीवन में परिवर्तन आवश्यक है यदि आप समय के अनुरुप परिवर्तन के लिये तैयार हैं तो आपका जीवन आपके हाथ में होगा और आप अपने जीवन को अपने अनुसार जी सकते हैं, अन्यथा दूसरे आपके जीवन में हस्तक्षेप कर आपकी विवशताओं को बढ़ाते रहेंगे।
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