आकर्षण-विकर्षण तो प्रकृति का निश्चित नियम है, जिस प्रकार चुम्बक के पास लोहा ले जाने पर उसे चुम्बक पकड़ लेता है, उसी प्रकार जीवन का भी यही खेल है, जिसकी ओर मन आकर्षित होता है, उसे वह सब कुछ समर्पित कर देता है। यही वह तत्व जिसके बलबूते व्यक्ति को सर्व स्वरूपों में सफलता मिलती है।
जीवन में हास्य, विनोद, आनन्द व तृप्ति प्राप्त करना कोई सामान्य बात नहीं है, यह तो जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धि है, जिसे प्राप्त करने के लिये बड़े-बड़े योगियों और ऋषि-मुनियों ने कठिन तप किये, तब जाकर वे पूर्ण कहलाये, यही धारणा मनुष्य पर भी लागू होती है और जब वह दृढ़ निश्चय, आत्म विश्वास से युक्त होता है, तो वह साधना के बल पर जीवन के उमंग को प्राप्त कर लेता है और जब ऐसा होता है तो उसके चेहरे पर एक ओज, उमंग, आह्लाद, प्रसन्नता स्वतः ही झलकने लग जाता है, यही तो वास्तविक सौन्दर्य है।
सौन्दर्य तो आधार है जीवन का, ईश्वर का दिया हुआ वरदान है, जिसका प्राप्त होना जीवन की श्रेष्ठता, पूर्णता कही जाती है। जितने भी ग्रन्थ, वेद, पुराण, आदि लिखे गये हैं, उन सब में सौन्दर्य का विवेचन हुआ है। सुन्दर होना, दिखना, सुन्दरता की प्रशंसा और सराहना करना मानव का धर्म है। मैंने अपने जीवन में सिद्धाश्रम में अर्निघ्न सुन्दर साधिकाओं और संन्यासियों को देखा है, एक से बढ़कर एक सुन्दरियों व अप्सराओं को भी साधनारत होते देखा है, जो अपनी देहयष्टि को पूर्ण यौवनवान, चैतन्यवान बनाये रखने के लिये साधनारत रहती हैं।
चन्द्रमा की चांदनी और सौन्दर्य जीवन में जिस आनन्द का एहसास देता है, वह अद्भुत है। शरद की चांदनी वह अवसर है, जब अरमानो में पंख लगने शुरू होते हैं। आसमान छू लेने का उत्साह मन में हिलोरे लेने लगता है, इच्छा होती है कि आसमान की सभी चांदनी स्वयं में धारण कर पूर्णता की प्राप्ति कर लूं।
जीवन में चन्द्रमा की शीतलता, ऐसा मधुर सौन्दर्य है, जिसे देखने के लिये हर कोई लालायित होता है और साथ में चन्द्रमा की चंचलता सभी को मदहोश कर देती है। इन्हीं एहसासों को संजोये हुआ होता है शरद पूर्णिमा की चांदनी है। व्यक्ति सौन्दर्य-आकर्षण के साथ ही साथ शीतलता, ओज, तेज, आनन्द, सभी को अपने वशीभूत् करने की तीव्र चेतना होनी ही चाहिये। तभी तो जीवन में शीतलता और शांति की पूर्णिमा आती है।
सौन्दर्य, आकर्षण, वशीभूत करने की चेतना, शीतलता, चांद की तरह ही चेहरे पर मंद-मंद ओज इन सब के संयोजन से ही जीवन में पूर्णता का भाव आता है और इन सब की पूर्ति होती है सौन्दर्य आकर्षण प्राप्ति चन्द्रमौलीश्वर शारदीय दीक्षा से, जिसे आत्मसात कर देह व अन्तसः स्वरूप में सौन्दर्य, आकर्षण की वृद्धि तो होती है, इसी के फलस्वरूप कुशाग्रता, बल, बुद्धि, ओज, चैतन्यता का निर्माण होता है। जिससे सांसारिक गृहस्थ जीवन में निरन्तर आनन्द व प्रसन्नता का विस्तार होता रहता है। साथ ही इस दीक्षा से कन्याओं के विवाह में आ रही बाधाओं का निवारण होता है, जिससे उनका पाणिग्रहण संस्कार शीघ्र ही सम्पन्न होता है।
शारदीय पूर्णिमा के चैतन्य दिवस पर ऐसे दिव्यतम दीक्षा को आत्मसात करने से चन्द्रमौलिश्वर शिव-गौरी की चेतना से आप्लावित होते हैं, जिससे उसका जीवन सर्व सफलता युक्त सौभाग्य शक्तिमय निर्मित होता है।
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