प्राचीन काल से ही तीर्थों में प्रतिमाओं का नारिकेल जल से अभिषेक किया जाता है। यदि नारियल के जल में नींबू का रस निचोड़ा जाये तो वह उत्तम औषधि बन जाती है, नारियल का पानी और नींबू का रस मिलाकर पीने से शरीर की सारी गर्मी, मूत्र एवं मल के साथ निकल जाती है और रक्त शुद्ध होता है। यह भारत के उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में पाया जाता है, खासकर समुद्र व नदी के किनारों पर इसके वृक्षों की मात्रा अधिक होती है।
नारियल का फल कठोर होने के कारण इसे दृढ़फल कहते हैं। इसके फल स्कन्धों में लगते हैं, अतः इसका नाम स्कन्ध फल भी है। इसे सदाफल तथा संस्कृत में नारिकेल कहा जाता है।
नारियल का फल (फल का गूदा या गरी) शीतल, देर से पचने वाला, वात शोधक, पुष्टिकारक, बलवर्द्धक तथा वात, पित्त, दाह, रक्तविकार नाशक है। कच्चा नारियल (गुदा) विशेष रूप से पित्तज्वर तथा पित्त जनित विकारों को नष्ट करता है, पका नारियल (गरिष्ठ) पित्त कारक, दाहकारक तथा कब्ज करने वाला होता है, कच्चे नारियल का पानी शीतल, हृदय के लिये हितकारी, अग्निदीपक, शुक्रवर्द्धक, पचने में हल्का, मधुर स्वादिष्ट, वस्तिशोधक, प्यास एवं पित्त का नाशक है।
जब नारियल कच्चा हो और उसके भीतर गर्भ (मलाई) का निर्माण न हुआ हो तब उसका पानी कम मीठा, कुछ खट्टा या कसैला सा होता है, किन्तु भीतरी गर्भ बनना आरंभ होने के बाद उसका पानी एकदम मीठा होता है, नारियल के पानी की शर्करा का शरीर में तुरंत ही शोषण हो जाता है, इसका पानी जीवाणु मुक्त होने से अत्यंत सुरक्षित है।
नारियल के पानी को डाभ का पानी भी कहते हैं, यह पानी प्राकृतिक रूप से स्टरलाइज्ड और पौष्टिक होता है। इसमें पोटेशियम और क्लोरिन प्राकृतिक रूप में विद्यमान रहता है, इसलिये हृदय रोग, यकृत रोग एवं किडनी के रोगों में नारियल का पानी पीना लाभप्रद है। दवाईयों के विषैले प्रभाव को नारियल का पानी नष्ट कर देता है। हैजे में दस्त व उल्टी के कारण शरीर में पानी व क्षारीय तत्वों की कमी आ जाती है। ऐसी स्थिति में नारियल के पानी से शरीर को आवश्यक जल और क्षार उपलब्ध हो जाते हैं, नारियल का पानी जीवाणुनाशक होने से आंतों में स्थिति हैजे के जीवाणुओं का नाश करता है।
नारियल का पानी माता के दूध के समान गुणकारी है, इसे पीने से बच्चों का विकास सुचारु रूप से होता है, जब किसी शिशु को जल अभाव (डी-हाइड्रेशन) अनुभव हो रहा हो तब नारियल का पानी नींबू का रस मिलाकर पिलाया जा सकता है, इसे बच्चों को प्रति दस मिनट पर एक चम्मच दिया जा सकता है, शरीर में डी-हाइड्रेशन होने पर नारियल का पानी सोडियम एवं पोटैशियम की पूर्ति करता है।
सोते समय नारियल का पानी पीने से क्षुब्ध नाड़ी संस्थान को राहत मिलती है, जिससे गहरी नींद आती है। नारियल का पानी हल्का होने से प्यास बुझाता है और थकावट को दूर करता है, यह पित्त प्रकृति वालो के लिये सर्वोत्तम है।
नारियल के स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्द्धक व्यंजन नारियल की खीरः नारियल की गिरी के छोटे-छोटे टुकड़े करके गाय के दूध में डालें, इसमें खांड व घी डालकर मंद आंच पर पकाएं, यह खीर मधुर, स्निग्ध, शीतल व पुष्टिकारक है, यह वीर्यवर्द्धक एवं रक्तपित्त तथा वातनाशक भी है।
नारियल की चटनीः एक नारियल लेकर उसका छिलका उतार लें, फिर नारियल को कस लें, 10 ग्राम चने की दाल व 5 ग्राम जीरा भूनकर पीस लें, फिर 4 हरी मिर्च तथा 10 ग्राम अदरक लेकर पीस लें और सब को मिलाकर आवश्यकता अनुसार नमक डालकर बारीक पीस लें, 100 ग्राम इमली को पानी में 20 मिनट भिगोकर छान लें व आवश्यकता अनुसार पानी मिलाकर मिश्रण में डालकर एकसार कर लें, चटनी तैयार हो गई। यह चटनी न केवल भोजन का स्वाद बढ़ाती है, बल्कि कब्ज दूर कर हाजमा भी ठीक रखती है।
नारियल के लड्डूः 1/2 डिब्बा सूखा दूध यानी कंडेन्सड मिल्क, 2 कप कसा हुआ खोपरा, रूह वनीला। सूखे दूध में खोपरा मिलाएं, आवश्यकता अनुसार सामग्री कम ज्यादा कर सकते हैं, सबको गूथकर पिंड तैयार कर लें और रूह वनीला डाल दें, फिर छोटे-छोटे लड्डु बना लें, ऊपर से खोपरा बुरक दें या फिर खोपरे के चूरे में लड्डुओं को घुमाएं, ये लड्डु बहुत पौष्टिक व शक्तिवर्द्धक होते हैं।
देवी-देवताओं, विशिष्ट अतिथियों, मांगलिक शुभ अवसरों पर नारियल भेंट करने की प्रथा प्राचीन काल से ही प्रचलित है। जिसका अभिप्राय नारियल के स्वरूप और गुणों से है। नारियल अन्य सभी फ़लों से भिन्न है, अधिाकांश फ़ल रंग-बिरंगे, देखने में सुन्दर होते हैं, उनका छिलका भी कोमल होता है। लेकिन नारियल का छिलका अत्यधिक कठोर होता है। मनुष्य का व्यक्तित्व भी नारियल के समान है। सांसारिक कठिनाईयों-परेशानियों के कारण वह ऊपर से कठोर-कर्कश होता है लेकिन भीतर से कोमल व मधुर रहता है। नारियल भेंट करने का यही तात्पर्य है कि बाहर से भले कठोर रहें, लेकिन भीतर से सदैव नारियल के भीतरी मर्म की तरह मृदुल और मधुर बने रहें।
नारियल के भीतर जो गरी का गोला होता है, वह जीवन के मधुर मर्म का प्रतीक होता है, जिसका अर्पण हमें अभीष्ट होता है। सगे-सम्बन्धियों, आत्मीय जनो और विवाहादि में प्रायः गरी का गोला ही भेंट किया जाता है। जिससे हमारे सम्बन्ध उस व्यक्ति से मधुर और आत्मीय बने, साथ ही नारियल के छाल को उतारने का तात्पर्य है कि हम अपने कर्कश आवरण को उतारकर अंतः करण के मृदुल मर्म को ही भेंट कर रहें हैं।
नारियल का मर्म भाग गरी मृदुल और मधुर होने के साथ-साथ सफ़ेद भी होता है, जो सतोगुण का प्रतीक है, सात्विकता से ही सरलता आती है, अंतः करण की मुदृता और मधुरता का संरक्षण भी सात्विकता के द्वारा ही किया जा सकता है, भेंट का नारियल अंतः करण की सात्विकता का आदर्श प्रस्तुत करता है, इस प्रकार जीवन के अनेक मांगलिक भावों का सूचक होने के कारण नारियल भेंट किया जाता है।
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