भगवत् पुराण के अनुसार दैत्यराज बलि ने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। राजा बलि दानवीर व वचनबद्ध था परन्तु वह अभिमानी भी था, वह अपनी शक्ति का दुरूपयोग कर देवताओं एवं ब्राह्मणों को डराता, धमकाता था। वह अत्यन्त पराक्रमी और अजेय था, जिसके कारण उसने तीनों लोकों का स्वामित्व हासिल कर लिया था और सभी लोकों में जीना दुश्कर कर दिया था। इससे चिन्तित होकर इन्द्र देव अन्य सभी देवताओं के साथ भगवान विष्णु के पास पहुँचे व अपनी पीड़ा बताते हुये, सहायता करने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने उन्हें इस समस्या का अन्त करने हेतु आश्वस्त किया और तब माता अदिति एवं ऋषि कश्यप के यहाँ वामन रूपी अवतार लिया। वामन अवतार भगवान विष्णु का छोटे कद के ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप है। उनके मुख पर सदा तेज रहता है और वे अपनी मुस्कान से सभी का मन मोह लेते थे।
महर्षि कश्यप उनका ऋषियों के साथ उपनयन संस्कार करते हैं। वामन बटुक को महर्षि पुलह यज्ञोपवीत, अगस्त्य मृगचर्म, मरीचि पलाश का दंड, आंगिरस वस्त्र व सूर्य छत्र, भृगु खड़ाऊं,बृहस्पति जनेऊ तथा कमंडल, माता अदिति कोपीन, सरस्वती रूद्राक्ष की माला तथा कुबेर भिक्षा पात्र प्रदान करते हैं। सभी से कुछ न कुछ लेकर भगवान वामन एक बौने ब्राह्मण के वेश में पिता से आज्ञा लेते हैं और फिर दैत्यराज बलि के समीप जाते हैं। ठीक उसी समय राजा बलि अपने गुरू शुक्राचार्य के दिशा-निर्देशानुसार नर्मदा नदी पर महायज्ञ सम्पन्न कर रहा था, जिससे स्वर्ग पर उसका स्थायी अधिकार हो सके। वामनजी जब वहां पहुंचे तो उन्हें देख राजा बलि दोनो हाथ जोड़ उनके सामने खड़े हो गया। वामन भगवान के तेज से सम्पूर्ण यज्ञशाला प्रकाशित हो उठी। बलि ने उन्हें एक उत्तम आसन पर बिठाकर उनका सत्कार किया और अन्त में उनसे भेंट मांगने के लिये कहा। इस पर वामन चुप रहे। लेकिन जब बलि द्वारा बहुत आग्रह किया गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में मांगी। बलि को यह बहुत कम प्रतीत हुआ, परन्तु दैत्य गुरू शुक्राचार्य समझ गये थे कि ये भगवान विष्णु ही है जो यहां देवताओं की रक्षा हेतु आये हैं, इसलिये, उन्होंने बलि को यह अस्वीकार करने को कहा। लेकिन राजा बलि वचनबद्ध एवं महादानी था उसने उनकी नहीं सुनी व वामन जी से और अधिक मांगने का आग्रह किया, लेकिन वामन देव ने इतना ही मांगा। इस पर बलि ने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया। संकल्प पूरा होते ही वामन भगवान का आकार बढने लगा और वे वामन से विराट हो गये। उन्होंने पहले ही कदम में पूरा भूलोक यानि कि पृथ्वी को नाप लिया, दूसरे कदम में सम्पूर्ण देव लोक यानि कि स्वर्ग लोक नाप लिया, तीसरे कदम के लिये कोई भूमि नहीं बची, परन्तु राजा बलि भी अपने वचन का पक्का था इसलिये तीसरे कदम के लिये उसने अपना सिर झुका कर कहा कि प्रभु तीसरा कदम यहां रखें। वामन भगवान दैत्यराज बलि की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये, इसलिये वामन जी ने राजा बलि को पाताल लोक देने का निश्चय किया और तीसरा कदम बलि के सिर पर रखा जिसके फलस्वरूप बलि पाताल लोक पहुंच गया और इस प्रकार भगवान विष्णु ने इन्द्र देव को पुनः स्वर्ग लोक का स्वामित्व प्राप्त करवाया एवं सभी देवताओं को भयमुक्त किया और तीनों लोकों में पुनः शांति स्थापित कर दी।
वामनावतार के रूप में श्री विष्णु ने यह सिखाया कि दंभ और अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और धन-सम्पदा भी क्षणभंगुर है इसीलिये कभी भी इस बात पर घमंड नहीं करना चाहिये।
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