भगवान श्रीकृष्ण ज्ञानार्जन हेतु सांदीपन ऋषि के आश्रम में पहुँचे, तब उन्होंने अपना सर्वस्व समर्पण कर ज्ञानार्जित किया, गुरू सेवा की, साधनायें की और साधना की बारीकियों व आध्यात्म के नये आयाम को जन-सामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया। यह तो समय की विडम्बना और समाज की अपनी ही एक विचारशैली है, जो श्रीकृष्ण की उपस्थिति का सही मूल्यांकन न कर पाया। यह साधकों के जीवन की सार्थकता होती कि वे उन पद-चिन्हों पर चलें, उन मार्गों पर चलें, जिन पर कृष्ण ने स्वयं चलकर अपने आप को सोलह कला पूर्ण बनाया।
योगेश्वरमय जीवन निर्माण की चेतना को आत्मसात कर साधक निश्चिन्त रूप से जीवन के प्रत्येक रंगों को स्वयं में समाहित करते हुये सभी भौतिक सुखों को पूर्णता से भोग सकेगा। साथ ही योगेश्वर कृष्ण की सोलह शक्तियों से जीवन के उन पक्षों को पूर्णता देने में समर्थ हो सकेंगे।
ऐसे ही पूर्ण फलदायी ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, नीति, प्रेम, गुरू-भक्ति, शत्रु दमन, षोड़श शक्तियों से युक्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व निश्चित रूप से आपके भीतर पूर्ण आत्मविश्वास भरने में सहायक है, आपके एक-एक अणु को क्रियाशील करने में समर्थ है और योगेश्वरमय चेतना शक्ति का सही उपयोग आपको पूर्ण क्रियाशील बनाकर उन्नति के विशेष मार्ग की ओर ले जाता है। आप गृहस्थ जीवन के कुरूक्षेत्र में अर्जुन रूपी कर्म शक्ति से युक्त जीवन में रोग-शोक, संताप, दुःख को समाप्त करने और शुद्धता, पवित्रता, सत्यता एवं षोड़श शक्ति युक्त कृष्णत्व धन लक्ष्मी शक्ति से प्रगति के नये मार्ग की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
षोड़श कला सिद्ध कृष्णत्व धन लक्ष्मी दीक्षा से आर्थिक सुदृढ़ता, श्रेष्ठ सफलता, सम्पन्नता, सौन्दर्यता, सम्मोहन, आरोग्यता, आध्यात्मिक चैतन्यता प्राप्त हो सकेगी। जिससे साधक योगी व भोगी दोनों पक्षों को पूर्णता से जी सकेंगे।
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