और जीवन का अर्थ है निरन्तर गतिशील रहना, विषम परिस्थितियों से कुशलतापूर्वक लड़ना। और यह तब ही संभव है जब हम भय मुक्त हो, निडर हो। सांसारिक मनुष्य जीवन में शक्तिमय होने के साथ-साथ सभी प्रकार से पूर्ण हो सके, विविध बाधाओं, कष्ट, तनाव, रोग, एवं शत्रु से मुक्त हो सके तथा जीवन में निर्भयता के सुख को अनुभव कर सके, इसका प्रमाणिक उपाय ‘जगज्जननी माँ महाकाली’ की कृपा है।
अर्थात तुम भयभीत मत हो, तुम अभय हो। जो माँ महाकाली के समीप तक पहुँच गया, उसे भय ही कैसा? उसी की जननी तो साक्षात् महाकाल पर आरूढ़ होकर काल का संहार कर रही है। श्मशान में उनका वास इसी तथ्य को स्पष्ट करता है, कि समस्त विरोधाभासों, विसंगतियों, कष्ट और साक्षात् मृत्यु के मध्य वही तो जीवन की प्रतीक हैं। महाकाली महाविद्या साधना की उपासना ही तो महाविद्या साधना में प्रवेश का द्वार है। यही जीवन में अभय की भी स्थिति है। शक्ति साधना करनी है, तो प्रथम साक्षात्कार विसंगति और काल से होना तो अवश्यंभावी है ही।
माँ महाकाली की अनुकम्पा शिशु रूप में आत्मसात करने का उपाय गुरू गम्य ही माना गया है अर्थात् गुरू कृपा के माध्यम से ही साधक माँ महाकाली के चेतन्य रूप का दर्शन कर सकते हैं। इस हेतु सद्गुरूदेव जी आद्याकाली जयन्ती के विशिष्ट दिवस पर चेतन्य महाकाली दीक्षा प्रदान कर रहे हैं। जिससे जीवन की विसंगतियों की समाप्ति हो सकेगी। और जो साधक महाकाली साधना सिद्ध करना चाहतें है उनके लिये यह दीक्षा श्रेष्ठ व अनिवार्य है।
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