रक्त वर्ण के आभूषणों से विभूषित, लाल वस्त्र धारण किये, लाल रंग के आलेपन से सुशोभित कमनीय कांति वाली विकसित यौवन, गुज्जाहार से सुशोभित, उच्च स्तनों वाली जिनके दाहिने हाथ में खड्ग तथा बायें हाथ में नर कपाल है और जो शव पर आसीन हैं, ऐसी परम सुन्दरी सुमुखी अपने साधकों को सदैव सम्पत्ति प्रदान करती हैं।
यह मोहिनी विद्या की तंत्र साधना है, जिसमें साधक को किसी प्रकार के विशेष आचार-विचार की आवश्यकता नहीं है और यह साधना रात्रि समय भोजन करने के पश्चात् ही की जा सकती है।
सुमुखी साधना में इनकी 16 शक्तियों-कला, कलानिधि, काली, कमला, क्रिया, कृपा, कुला, कुलिना, कल्याणी, कुमारी, कलाभाषिणी, कराला, किशोरी, कमल, कुलभूषण एवं कल्पदा का पूजन भी अवश्य किया जाता है। इन शक्तियों से सिद्ध सुमुखी का सौन्दर्यमय स्वरूप अत्यन्त प्रिय बन, साधक को शांत मन से उस साधना की ओर प्रेरित करता है, जिसमें सुमुखी प्रसन्न होकर अपनी शक्तियों के साथ साधक के हृदय में स्थापित होकर, ऐसी शक्ति से सिंचित कर देती हैं।
सुमुखी साधना सम्पन्न किया हुआ साधक ही वास्तव में काली तंत्र की अन्य साधनाओं में सिद्धि प्राप्त करने का अधिकारी बनता है।
सुमुखी साधना मूल रूप से सम्पत्ति साधना है, क्योंकि काली साधना के दूसरे स्वरूपों में सम्पत्ति के स्थान पर शत्रु विजय, तीव्रता, संहार इत्यादि पर विशेष जोर दिया गया है, जहां मारण विद्वेषण, उच्चाटन, कीलन हेतु दक्षिण काली साधना उपयुक्त है वहीं सम्पत्ति के लिये दक्षिण काली के सौन्दर्यतम स्वरूप सुमुखी की साधना करना ही उपयुक्त है, अनिवार्य है।
इस साधना में मूलतः मंत्र सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठा युक्त ताम्र पत्र अंकित सिद्धि दायक सुमुखी यंत्र तथा हरित हकीक सम्पत्ति माला आवश्यक है। इसके साथ ही सुमुखी साधना में पूजन केसर मिश्रित चंदन से ही किया जाता है।
यह साधना किसी भी रविवार की रात्रि को प्रारम्भ की जा सकती है और पूर्ण विधान में एक लाख मंत्र का जप आवश्यक है।
रविवार की रात्रि को साधक लाल वस्त्र पहनें, स्वयं को लाल रंग का टीका लगाये अपने सामने एक लाल वस्त्र बिछाकर मध्य में सुमुखी महायंत्र की स्थापना करें। सबसे पहले विनियोग, फिर ध्यान, तदन्तर गुरु पूजा और सुमुखी मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को अर्घ्य, आचमन, नैवेद्य अर्पित करें।
ऊँ अस्य सुमुखी मंत्रस्य भैरवऋषिर्गायत्री छन्दः सुमुखी देवता ममाभीष्ट सिध्दये जपे विनियोगः।।
यंत्र मध्य में सुमुखी देवी का ध्यान कर केसर से बिन्दी लगाये तथा उस पर लाल रंग से रंगे हुये अक्षत अर्पण करें, उसके पश्चात सिंदूर के पांच बिन्दु लगाकर देवी की पंच रन्त की शक्तियों का पूजन करे-
ऊँ चन्द्रायै नमः, ऊँ चन्द्राननायै नमः, ऊँ चारूमुखै नमः, ऊँ चारूकरप्रभायै नमः, ऊँ चतुरायै नमः।।
मंत्र बोलते हुये पूजन करें तथा पुष्पांजली अर्पित करें।
ऊँ कलायै नमः, ऊँ कलानिधयै नमः, ऊँ काल्यै नमः, ऊँ कमलायै नमः, ऊँ क्रियायै नमः, ऊँ कृपायै नमः, ऊँ कुलायै नमः, ऊँ कुलीनायै नमः, ऊँ कल्याणै नमः, ऊँ कुमार्यै नमः, ऊँ कलाभाषिण्यै नमः, ऊँ करालायै नमः, ऊँ किशोर्यै नमः, ऊँ कमलायै नमः, ऊँ कुलभूषणायै नमः, ऊँ कल्पदायै नमः
का पूजन करें तथा पुष्पांजलि अर्पित करें।
इसके पश्चात 10 दिक्पालों का पूजन कर, मूल मंत्र एवं अभिष्ट सिद्धि की प्रार्थना कर, पुष्पांजलि अर्पित करें। इस प्रकार आवरण पूजा कर देवी के मूल मंत्र का जप प्रारम्भ करें। यहां विशेष बात यह है कि पूजा के प्रारम्भ में देवी को जो नैवेद्य अर्पित किया था, उसे खाकर बिना आचमन-कुल्ला इत्यादि किये उच्छिष्ट मुख से ही मूल मंत्र का जप करना आवश्यक है।
साधक के लिये यह आवश्यक है कि वह प्रतिदिन पूजन करते हुये कुल 10 हजार मंत्रों का जप अवश्य करें। इससे देवी प्रसन्न होकर उसे आर्थिक अनुकूलता प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष प्रयोग भी हैं। इस साधना में मंत्र-जप के पश्चात् उसका दशांश हवन करने से अनेक कार्य सिद्ध होते हैं। इस मंत्र का जप करते हुये मधु सहित बेर के पुष्पों के हवन से भाग्यहीन स्त्री सौभाग्यवती होती है।
मधु शहद घी एवं पान के हवन से श्री वृद्धि होती है तथा लक्ष्मी का आगमन किसी न किसी रूप से अवश्य होता है। घी मिलाकर बेल पत्रों की एक हजार आहुति प्रतिदिन देने से एक माह में संतानहीन स्त्री को संतान प्राप्त होती है।
इस प्रकार महाकाली साधना क्रम में यह साधना विशेष सौम्य, शांत एवं गृहस्थ व्यक्तियों के लिये तत्क्षण फल प्रदाता साधना है।
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