प्रतिभा और ज्ञान की भी सीमा अवश्य होती है। व्यक्ति अपने प्रयत्नों से किसी भी कार्य को श्रेष्ठतम रूप से पूर्ण करते हुए उज्ज्वल पक्ष की ओर विचार करता है। लेकिन उसकी बुद्धि एक सीमा के आगे अग्रसर नहीं हो पाती, श्री गणेश बुद्धि प्रदाता हैं, जिनकी आराधना करने से साधक असीमित बौद्धिक कार्य क्षमता में दक्ष होता है और अपने सभी कार्य पूर्ण कर लेता है। भगवान गणेश शक्ति और शिव तत्व के साकार स्वरूप है और इन दोनों तत्वों का सम्मिलित स्वरूप ही किसी कार्य में पूर्णता लाने में समर्थ होता है।
गणेश शब्द का ‘‘ग’’ मन-बुद्धि के द्वारा ग्रहण और वर्णन करने योग्य सम्पूर्ण भौतिक जगत को स्पष्ट करता है और ‘‘णे’’ मन, बुद्धि और वाणी से परे ब्रह्म विद्या स्वरूप परमात्मा को स्पष्ट करता है और इन दोनों के ‘‘ईश’’ को स्वामी गणेश कहा गया है।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाधयक्षो भालचन्न्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छ्णुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
यह श्लोक भगवान गणेश की पूजा, उपासना, साधना के महत्व को विशेष रूप से स्पष्ट करता है। इसका तात्पर्य यह है कि- जो व्यक्ति विद्या प्रारम्भ करते समय, विवाह के समय, नये भवन में प्रवेश करते समय, यात्रा में कहीं बाहर जाते समय, शत्रु विपत्ति के समय यदि श्री गणेश के इन बारह नामों का स्मरण करता है, तो उसके उद्देश्य की पूर्ति अथवा कार्य में पूर्णता प्राप्त होती है।
तंत्र शास्त्र के सबसे महान रचयिता भगवान परशुराम माने गये हैं और परशुराम कल्पसूत्र में, जो कि तंत्र शास्त्र का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रंथ है, लिखा है
देवं सिद्ध लक्ष्मी समाश्लिपृष्पार्श्वम् अर्धेन्दुशेखरमा
रक्तवर्ण मातुलुगंदापुण्ड्रेक्षु-कार्मुक-शूलसुदर्शन
शंख-षाशोत्पल-धान्यमंजरी नज-दन्तां-चल रत्न
कलश परिष्कृष्णाण्येका भिन्नकटमा पूर्णम-शेष
विघ्नध्वंसिनं ध्यात्वा विघ्ननाशो विनायकम्
अर्थात् महागणपति मणिमय रत्न सिंहासन पर विराजमान हैं और उनके बायें भाग में सिद्ध लक्ष्मी विद्यमान हैं। उनका शरीर करोड़ो सूर्य के समान दैदीप्यमान रक्तवर्णीय है, मस्तक पर अर्ध चन्द्र है, ग्यारह भुजाओं में मातुलंग, गदा, इक्षु, सुदर्शन, शूल, शंख, पाश, कमल, धान्य, मंजरी, भग्नदन्त, तथा रत्न कलश है, ऐसे परमानन्द विघ्न-विनाशक सर्व शुभ-लाभ प्रदान करने वाले महागणपति का ध्यान करना चाहिये।
जीवन की अंधी दौड़ में व्यक्ति कर्म तो करता है परन्तु वह जीवन में शीघ्र से शीघ्र सफलता के लिए सरल और सहजता से लाभ प्राप्ति के मार्ग का चुनाव कर लेता है, जिसके कारण उसके जीवन में अनेक अव्यवस्थायें उत्पन्न हो जाती हैं और वह अनेक तरह के संकटों और बाधाओं से घिर जाता है। इसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में अपने लक्ष्यों को पूर्णता तक पहुंचाना चाहता है और वह इसके लिए किसी भी प्रकार की हानि भी नहीं चाहता। प्रत्येक सांसारिक मनुष्य की इच्छा रहती है कि उसके चारों ओर सर्वत्र मंगलमय चेतना का विस्तार हो और वह अपने जीवन की सभी आवश्यकताओं में पूर्णता प्राप्त कर सके।
श्री गणपति ऐसे देव हैं, जिन्हें मंगलमूर्ति अर्थात् मंगलमय जीवन प्रदान करने वाला कहा गया है, जिनकी साधना, आराधना से जीवन को सर्वलाभ युक्त बनाया जा सकता है। भगवान श्री गणेश चतुर्दिक वृद्धि कर्ता हैं, जो साधक को निरन्तर वृद्धि, प्रगति की ओर अग्रसर करते हैं। भगवान गणेश जीवन में कर्म शक्ति का सुफल अर्थात सभी कुफलों का शमन कर शुभ कल्याणकारी लाभ प्रदान करने वाले देव हैं।
इनकी साधना-उपासना करने से साधक जीवन में जाने-अनजाने किए दोषों से निवृत्त हो जाता है और शास्त्रों में जो वर्णन है कि सुलक्ष्मी के साथ अर्थात् धन के साथ उसके पुण्यों का भी आगमन जीवन में होता है। श्री गणेश की साधना से शुद्ध और मंगलमयी लाभ की प्राप्ति होती है।
इसीलिए लाभ पंचमी के लाभ प्रदायक दिवस पर सभी साधकों को भगवान गणेश के शुभ-लाभ प्रदाता स्वरूप की साधना करनी चाहिये। जिससे अपने श्रम शक्ति का पूर्ण शुद्ध और कल्याणकारी लाभ प्राप्त होता रहे और दैनिक जीवन में सुख-शान्ति, शुभ-लाभ स्थायी भाव से विद्यमान रहें और देवताओं तथा सद्गुरुदेव नारायण का आशीर्वाद निरन्तर प्राप्त होता रहे।
सर्वथा शुद्ध और पवित्र हो कर उत्तर दिशा की ओर मुंह कर पीले आसन पर बैठ जायें, फिर एक बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा दें, बाजोट पर एक थाली रखें, थाली के मध्य में एक स्वस्तिक बनावें और उसके चारों तरफ एक- एक स्वस्तिक केसर से अंकित कर दें।
इसके बाद शुभ-लाभ प्राप्ति लघु नारियल को मध्य स्वास्तिक पर स्थापित कर दें। सामने चावल की ढ़ेरी पर गणपति स्वरूप सुपारी स्थापित करें, फिर सभी का पूजन अक्षत, धूप, चंदन, पुष्प और दीप प्रज्ज्वलित कर करें और गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगायें। व्यापारी अपना बही खाता, बालक अपनी पुस्तके पूजा स्थान में रख लें और उस पर केसर से स्वास्तिक अंकित करें।
पश्चात् निम्न मंत्र का रिद्धि-सिद्धि माला से ग्यारह माला मंत्र जप करें।
इसके पश्चात् निम्न स्तोत्र का 21 बार पाठ करें।
कामेश्वरीं महालक्ष्मीं ब्रह्माण्ड वश कारिणीम् ।
सिद्धेश्वरीं सिद्धिदात्रीं शत्रूणां भय दायिनीम् ।।
ऋद्धि देवीं पीत-वस्त्रं उद्यत-भानु सम-प्रभाम् ।
कुल देवीं नमामि त्वां सर्व-काम-प्रदां शिवाम् ।।
सिद्धि-रूपेण देवी त्वां विष्णु प्राण-वल्लभाम् ।
काली-रूप धृतां उग्रां रक्त-बीज-निपातिनीम् ।।
विद्या रूप धरां पुण्यां शुभ लाभ प्रद स्थिताम् ।
दुर्गा-रूप-धरां देवीं दैत्य-दर्प-विनाशिनीम् ।।
मूषक वाहना रूढां सिंह-वाहन-संयुताम् ।
ऋद्धि सिद्धि, महादेवि पूर्ण सौभाग्यं देहि मे ।।
पाठ पूर्ण होने पर सभी सामग्री विसर्जित कर दें। गणेश और गुरु आरती सम्पन्न कर पूरे परिवार को प्रसाद ग्रहण करायें।
शुभ का तात्पर्य होता है कल्याणकारी और लाभ का अर्थ है प्रतिफ़ल अर्थात् हमारे श्रम अथवा कर्म शक्ति का कल्याणकारी फल प्रदान करने वाला शुभ-लाभ प्रदाता श्री गणेश जिनकी साधना के द्वारा साधक अपने जीवन के सभी श्रम का कल्याणकारी फल प्राप्त करने के सुभाव से युक्त होता है और उसका जीवन सर्व शुभ-लाभ युक्त बनता है।
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