और अगर व्यक्ति यह साधना सम्पन्न कर लेता है तो फिर कोई विपरीत परिस्थिति उसके लिये बाधा नहीं बन सकती। वह उन सब से अछूता रहता हुआ निरन्तर अपने मार्ग पर गतिशील रहता है, जो प्राचीन काल से ही अत्यधिक सम्मानीय रही है-
‘प्रहलाद’ ‘नारायणाक्षी’ प्रयोग सम्पन्न करके तीनों लोगों का स्वामी बन सका।
‘पांडवों’ ने भी प्रयोग को सम्पन्न किया, जो महाभारत जैसे दुर्धर्ष महासंग्राम में विजय श्री प्राप्त करने में सहयोगी बना और बार-बार कठिनाईयों का सामना करते हुये भी वे लाभ प्राप्त कर सके……
तिब्बत के लामा ‘औलम्मा’ के अनुसार यह प्रयोग अपने आप में ही सर्वश्रेष्ठ है, और जो कोई भी इसको जीवन में एक बार सम्पन्न कर लेता है, उसे फिर जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता नहीं रहती है।
ऐसे कितने ही उदाहरण है, जब इस साधना को सम्पन्न कर व्यक्ति अपने जीवन का अभीष्ट प्राप्त कर सका।
‘नारायणाक्षी’ का अर्थ है नारायण का नेत्र और विष्णु के बारे में कहा गया है-
सहस्त्रशीर्षाः पुरूषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्।
स भूमि (गूं) सर्वतस्पृत्वात्यतिष्ठद्दशांगुलम।।
जो व्यक्ति इस साधना को सम्पन्न कर लेता है, वह स्वयं नारायण के समान चेतनावान, क्षमतावान हो जाता है। उसकी सभी इन्द्रियां पूर्णतः जाग्रत हो जाती हैं और हर क्षण गतिशील रहती है, जिसके फलस्वरूप वह आसानी से किसी भी क्षेत्र में सफलता अर्जित कर लेता है।
इस साधना को सम्पन्न करने से निम्न स्थितियां व्यक्ति के जीवन में आ जाती हैं-
-यह साधना ‘अनन्त चर्तुदशी’ को सम्पन्न करें या फिर किसी गुरूवार को सम्पन्न करें।
-यह साधना रात्रिकालीन है। इसके लिये साधक को ‘नारायणक्षी दिव्य यंत्र’ ‘लोचन’ एवं ‘नारायणाक्षी माल्य’ की आवश्यकता होती है।
-सर्वप्रथम साधक स्नान कर रात्रि में दस बजे स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर, उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठे।
-अपने सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर कुमकुम से आंख की आकृति बना कर, उस पर ‘नारायणाक्षी यंत्र’ स्थापित कर उसका विधिवत् पंचोपचार पूजन करें। नारायण का ध्यान करें-
उसके बाद यंत्र पर ‘लोचन’ अर्पित कर साधना में सफलता के लिये प्रार्थना करें। अगर कोई विशेष मनोकामना हो तो उसका उच्चारण करें।
‘नारायणक्षी माल्य’ से निम्न मंत्र का 21 माला मंत्र जप करें-
यह एक दिवसीय साधना है। साधना के उपरान्त यंत्र, माला तथा गुटिका को किसी विष्णु मंदिर अथवा जलाशय में अर्पित करें। ऐसा करने से साधना फलीभूत होती है।
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