वर्तमान युग में जीवन का सबसे बड़ा दुःख ही रोग है। जीवन में हम कई कारणों से व्यथित रहते हैं धीरे-धीरे यह क्लिष्ट रोग का रूप ले लेती है। यह व्यथा सामाजिक हो या किसी अन्य प्रकार की, हमारे दैनिक जीवन में इसका प्रभाव हमारे शरीर पर भी पड़ता है। जब व्यक्ति निरन्तर रोग से ग्रसित रहता है तो, उसकी शारीरिक शक्ति सुप्त हो जाती है, वह गतिहीन हो जाता है। ऐसी स्थितियों को मृत्यु तुल्य स्थिति कहा गया है, क्योंकि ऐसा जीवन मृत्यु समान ही होता है। वह अपने जीवन में किसी भी कार्य को सम्पन्न करने में दुर्बलता के फलस्वरूप असफलता ही प्राप्त करता है।
ऐसी नारकीय स्थितियों को पूर्णरूपेण शमन कर जीवन में नूतन ऊर्जा व नूतन चेतना के प्रवाह के साथ सुस्थितियों की वृद्धि हेतु पूर्ण आरोग्यमय अनन्त धन लाभ दीक्षा प्राप्त करना आवश्यक है। ऐसी सुश्रेष्ठ दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् व्यक्ति के शरीर में गुरू द्वारा अमृत संचरण होता है, जिससे उसके समस्त रोगों से निवृत्ति प्राप्त होना प्रारम्भ हो जाता है। तब ही वह पूर्ण स्वस्थ, आनन्द युक्त जीवन जी पाता है। इस दीक्षा के माध्यम से शिष्य पूर्णता प्राप्त करता है, श्रेष्ठता प्राप्त करता है तथा जीवन में उच्चतम स्थिति तक पहुँच जाता है। साथ ही व्यक्ति स्वयं को अनन्त स्वरूपों में स्फूर्तिवान, वेगवान एवं पूर्ण पौरूष से युक्त महसूस करता है।
पहला सुख निरोगी काया को प्राप्त करने के लिये भगवान धनवन्तरी की अभ्यर्थना-आराधना करना अनिवार्य ही है। भगवान धनवन्तरी तो स्वयं सृष्टि के प्राणियों के चिकित्सक हैं, इसी के फलस्वरूप सामान्य जन के लिये रोगों का शमन करने का अत्यन्त ही सरलतम उपाय भगवान धनवन्तरी की उपासना ही है। आरोग्यमय देह को सबसे बड़ा धन कहा गया है।
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