आज का मनुष्य भले ही इसे स्वीकार ना करें, परन्तु यह सत्य है कि अतृप्त आत्माओं का अतृप्त होने का प्रभाव हमारे जीवन में पूर्ण रूप से होता है।
आकस्मिक मृत्यु प्राप्त व्यक्ति की आत्मायें अत्यधिक क्षुधा पूर्ण होती है, क्योंकि कालखण्ड की विवशता में उनकी आकस्मिक मृत्यु तो हो जाती है, परन्तु वो भटकती रहती है, काल बाध्यता के कारण उनका पुर्नजन्म नहीं हो पाता है, जिसके कारण उन्हें कई वर्षों तक प्रेत-योनि की पीड़ा सहनी पड़ती है। ऐसे में ये अतृप्त आत्मा मुक्ति हेतु अपने परिवार जनों की ओर आशातीत होती है, जिनकी पूर्ति ना होने पर उनके कोप का भी प्रभाव सहन करना पड़ता है।
अधिकतर छल, झूठ, कपट, काम, भय, ईर्ष्या आदि से प्रभावित होता हुआ ही व्यक्ति देह त्यागता है और इन्हीं कर्मों के फलस्वरूप ही वह अगले जीवन के लिये कर्म चयन करता है। कहा गया है कि ।। अन्ते या विचारे सा गतिः।। अन्त समय में जैसे विचार एवं चिन्तन होते हैं, उसी के अनुरूप व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है। जब व्यक्ति विभिन्न इच्छाओं के साथ मरता है, तो वह कुछ देर तो उसे विश्वास ही नहीं होता, वह अचम्भित सा देखता रहता है, क्योंकि उसकी कई अपूर्ण इच्छायें होती हैं, जिनकी पूर्ति के लिये उसे भौतिक शरीर की आवश्यकता होती है।
जब तक पितृ का पुनर्जन्म नहीं होगा, उसका सही मागदर्शन नहीं होगा, उनकी इच्छायें अतृप्त रहेंगी। अतः ऐसी स्थिति में वह आत्मा अपने द्वेष, क्रोध, काम, मोह आदि को आसानी से अपने वंशज पर प्रक्षेपित करती है, जिसके फलस्वरूप जीवन की प्रगति, उन्नति, उत्साह, धन आगमन, कार्य सफलता बाधित होती है। इसीलिये यह प्रत्येक के लिये आवश्यक है कि वह इन आत्माओं को शांति दिलाने का प्रयत्न करें।
ऐसे परिस्थिति से मुक्त होने के लिये आप अपने प्रिय पूर्वजों के जीवन को श्रेष्ठ गतिशीलता प्रदान करने व उन्हें सही मार्गदर्शन मिले और वे आगे के सुकर्मों में प्रवेश कर सकें, इस हेतु विशेष क्रिया के रूप में उन्हें पितृ शांति मोक्ष प्राप्ति दीक्षा ग्रहण करायें। जिससे आप पितृ ऋण से और पितृ कोप के प्रभाव से बच सकते हैं, आपको उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा, जिससे आप जीवन में दिनों-दिन प्रगति की ओर अग्रसर हो सकेंगे और हर प्रकार की श्रेष्ठता, धन, वैभव एवं सफलता प्राप्त कर सकेंगे।
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