भगवान गणेश सभी देवताओं मे प्रथम पूज्य, आदि वन्देय है, भगवान गणपति में का एक स्वरूप जो अत्यन्त पूजनीय है, वह है सिद्धि विनायक स्वरूप जिनकी उपासना से साधक अपनी मनोकामना निश्चय ही पूर्ण कर पाता है। लोक प्रचलन में मान्यता है कि सिद्धि विनायक गणेश शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं।
चतुर्भुज स्वरूप- सिद्धि विनायक की बड़ी विशेषता यह होती है कि वे चतुर्भुज स्वरूप में होते हैं और उनके दोनो ओर उनकी दोनो पत्नियां रिद्धि-सिद्धि खड़ी रहती हैं। जिसका तात्पर्य है कि भगवान गणेश चतुर्मुखी वृद्धि का भाव, चेतना प्रदायक हैं और उनकी पत्नियां रिद्धि-सिद्धि धन, ऐश्वर्य, सुख-समृद्धि, सफलता और मनोकामना पूर्ति की प्रतीक हैं।
व्यक्ति के जीवन में अनेक ऐसी परिस्थितियां होती हैं, जब वह पूर्णता तक पहुंचना चाहता है, परन्तु दैविक बाधाओं और समस्याओं के आगे घुटने टेक देता है और जीवन में अभाव से त्रस्त होने के लिए विवश हो जाता है। जीवन में अभाव को समाप्त करने का सबसे सुगम मार्ग है, उस चेतना से, शक्ति से युक्त होना जो जीवन की बाधाओं की ग्रन्थि काट सके। अनेक स्थितियों-परिस्थितियों में अपने अनुसार परिवर्तन लाने में सक्षम हो, सामाजिक आलोड़न-विलोड़न में भी उसके जीवन की गाड़ी रूकने ना पाये, साथ ही उसके जीवन को एक ऐसी ऊर्जा शक्ति का संरक्षण निरन्तर प्राप्त होता रहे, जिससे प्रगति का मार्ग किसी भी रूप में बाधित ना हो, इन सभी स्थितियों में पूर्णता सफलता और विजय प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि भगवान गणेश के चतुर्दिक सफलता प्रदायक सिद्धि विनायक स्वरूप की अर्चना, उपासना सम्पन्न की जाए।
गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक भगवान गणेश के पूजन, साधना, उपासना, आराधना का विशेष कल्प होता है, यह एक अवसर होता है जब भगवान गणपति के सिद्धि विनायक स्वरूप की उपासना कर साधक अपनी मनोरथों को पूर्ण करने में आ रही बाधाओं का शमन कर उसे हस्तगत कर लेता है। चतुर्दिक सफलता प्राप्ति सिद्ध विनायक दीक्षा से जीवन के दैवीय बाधाओं व प्रगति में आ रही समस्याओं का निराकरण होता है, भगवान गणेश का यह एक ऐसा स्वरूप है, जो चारो ओर की समस्याओं को समाप्त करने में समर्थ है अर्थात् जीवन में आ रही बाधाओं का निवारण, आरोग्यता की प्राप्ति, धन-धान्य, सुख-समृद्धि की पूर्ति और संतान संस्कार वृद्धि होती है। इस दीक्षा को ग्रहण करने से जीवन में चतुर्मुखी विकास, वृद्धि, आर्थिक धन लाभ, मनोकामना आदि की पूर्ति हो सकेगी।
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