पर आज का वातावरण इतना विषैला है, कि व्यक्ति अगर पवित्र, निर्मल जीवन जीना भी चाहे, तो यह प्रायः असम्भव है, क्योंकि आज भोग और विलास का आकर्षण अति प्रबल है, खान-पान में पवित्रता नहीं, यहां तक कि वायु जो श्वास क्रिया के लिए उपयोगी है, वह भी दूषित है, ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति चाहता तो बहुत कुछ है, अंततः हार मान लेता है और झुंझला उठता है, जीवन से निराश होकर थक हार के बैठ जाता है।
निश्चित ही इसमें उसका कोई दोष नहीं, क्योंकि ऐसी स्थिति में कोई कर ही क्या सकता है? पर फिर भी हमारा साहित्य, इतिहास इस बात का गवाह है कि जिस व्यक्ति के अंदर अटूट विश्वास, जीवन शक्ति और दृढ़ निश्चय हो, और यदि उसके साथ ही साथ वह साधनात्मक शक्ति प्राप्त कर ले, तो फिर कोई भी इस संसार में उसकी उन्नति रोक नहीं सकता।
पुरूषोत्तम मास के अद्वितीय अवसर पर साधक सहज अपनी सभी कमियों को मूल से ही नष्ट कर, सभी प्रकार से श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है, कमियां तो व्यक्ति के जीवन में अनेक हैं- दरिद्रता, रोग, शत्रु भय, मुकदमें आदि, अवगुण भी जीवन में अनेक हैं- काम, क्रोध, मोह, लोभ, प्रमाद आदि, इनको इस मन से पूर्ण रूप से समाप्त कर व्यक्ति अपना पुनः निर्माण कर सकता है, और धन, ऐश्वर्य, शत्रु-दमन, रोगमुक्ति, नव चेतना, प्रभावी व्यक्तित्व की स्थिति प्राप्त कर, एक निर्मल एवं पवित्र जीवन की ओर अग्रसर हो सकता है।
जब भी श्रेष्ठ जीवन की चर्चा होती है तो धन की बात सबसे पहले आती है। भले ही व्यक्ति के साथ कई प्रकार की समस्यायें चल रहीं हों, किन्तु यदि उसके जीवन में धन की बाधा व्याप्त हो तो वह अपने शरीर और मन के कष्टों को दूर रख सबसे पहले धन की बात करना, धन प्राप्ति का उपाय जानना ही पसंद करता है। जीवन की प्रत्येक समस्या तो नहीं, फिर भी अधिकांश समस्यायें धन के द्वारा ही दूर होती हैं और धन के अभाव में अधिकांश समस्यायें उत्पन्न होती हैं। यह ठीक है कि जीवन में धन सब कुछ नहीं होता, लेकिन धन बहुत कुछ होता है। व्यक्ति का सारा चिंतन, उसकी मानसिक श्रेष्ठता, उसकी भावनाओं की उंचाई सभी कुछ उसकी आर्थिक स्थिति पर ही आश्रित होता है, और जब धन की बात आती है, स्थायी सम्पति की और प्रचुरता की बात आती है तो मां भगवती जगदम्बे के विशिष्ट स्वरूप कमला लक्ष्मी की चर्चा करना नितांत आवश्यक हो जाता है।
धन प्राप्ति के तो अनेक उपाय हैं, अनेक प्रकार की साधनायें हैं, लेकिन वास्तविक साधना तो वही है, जो सम्पूर्णता से अभाव को समाप्त कर सके, जो पुरुष को पुरुषोत्तम बना सके, जिसमें व्यक्ति के पुरुषार्थ का बल हो। साधक के इन्हीं मनोभावों को पूर्ण करती पुरुषोत्तम कमला महालक्ष्मी साधना, जो साधक को लक्ष्मी के सभी सोलह गुणों शान्ति, कान्ति, क्षान्ति, धात्रि, शक्ति, रति, भक्ति, भ्रति, लक्ष्मी, सिद्धि, धृति, गति, देवी, भूति, दात्रि, पुष्टि से विभूषित करती है और वहीं यह साधना भगवान पुरुषोत्तम की सभी कलाओ वाक् सिद्धि, दिव्य दृष्टि, प्रज्ञा सिद्धि, दूर श्रवण, जलगमन, वायुगमन, अदृश्यकरण, विषोका, देव क्रियानुदर्शन, कायाकल्प, सम्मोहन, वशीकरण, पूर्ण पुरूषत्व, सर्वगुण सम्पन्न, इच्छा मृत्यु, अनूर्मि की चेतना से भी युक्त है। जिससे साधक पुरुषोत्तम युक्त जीवन की प्राप्ति करता है। पुरुषोत्तम का तात्पर्य है अपने जीवन को अपने बल पर जीना, अपने पुरुषार्थ से जीवन की प्रतिकूल स्थितियों पर विजय प्राप्त करना।
यह साधना सिर्फ धन प्राप्ति की साधना ना होकर जीवन की सभी न्यूनताओं, रोग, ऋण, शत्रु बाधा, नपुंसकता, काम शक्ति की क्षीणता आदि नकारात्मक ऊर्जा को भस्मीभूत कर जीवन के सकारात्मक ऊर्जा का विकास करती है। चाहे वह भौतिक जीवन अथवा आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित हो।
यह दस महाविद्याओं में कमला महाविद्या साधना है और त्रिगुणात्मक त्रि-शक्ति में महालक्ष्मी की साधना है। यही आद्या शक्ति कृष्ण की योगमाया राधा हैं। इनसे ही जगत में काम, रस, प्रेम, सौन्दर्य, आकर्षण, वशीकरण, सम्मोहन का प्रादुर्भाव होता है। भगवान नृसिंह के साथ रमा रूप में सभी आसुरी शक्तियों का यही विनाश करती हैं और जब भगवान विष्णु बैकुण्ठ धाम में विराजमान होते हैं तो उनके साथ कमलवासिनी स्वरूप में सारे सृष्टि को संचालित करती हैं।
इस साधना के बाद यह असंभव है कि व्यक्ति के जीवन में दरिद्रता अथवा हीनता रह जाये। जिस प्रकार पद्मगंधा छुपाये नहीं छुपती और दिव्यता से भर देती है, उसी प्रकार पुरुषोत्तम कमला साधना भी व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को आलोकित एवं सुगंधित कर देती है।
यह एक ऐसी अद्भुत साधना है, जो कि अपनी सम्पूर्णता से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त दरिद्रता, कायरता, कटुता और हीनता को समाप्त करने की शक्तिमय प्रक्रिया है और लक्ष्मी के अभाव में व्यक्ति का यही स्वरूप शेष रह जाता है, हताश, निराश, चिंतित, चिड़चिड़ा और उदास, जो केवल शक्ति की विशिष्ट कृपा से ही समाप्त हो सकता है। इसे केवल एक साधना के रूप में नहीं, जीवन की अनिवार्यता के रूप में समझना ही श्रेष्ठ होगा और इससे व्यक्ति के जीवन में आती है पूर्ण निर्भीकता, निश्चिंतता और मानसिक शांति ।
जगत के पालन कर्ता भगवान विष्णु है और विष्णु शुद्ध तत्व युक्त निराकार-साकार स्वरूप हैं और भगवती लक्ष्मी उनकी माया स्वरूप हैं, प्रकृति स्वरूप है। यह लक्ष्मी ही है जो कि अपनी शक्ति द्वारा संसार को इच्छा मोह-माया, भौतिकता प्रदान करती है योगियों के लिए यह विद्या कमला लक्ष्मी है, जो उनमें कुण्डली जागरण की क्रिया प्रदान करती है, वहीं सांसारिक व्यक्तियों के लिये यह सौन्दर्य, भाग्य, श्रेष्ठ, दृश्य, प्रकृति, माधुर्य प्रेम, उन्नति, संगीत, पंचतत्व और उनका समायोजन, मन, प्राण चेतना का स्वरूप है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जगत में मनुष्य के पंच तत्व, पंच इन्द्रियां बाह्य रूप से और आंतरिक रूप से लक्ष्मी की कृपा से ही क्रियाशील रहती हैं और लक्ष्मी के कारण से ही उसके जीवन में मधुरता आती है।
सामान्य रूप से यह माना जाता है कि लक्ष्मी की आवश्यकता केवल गृहस्थ व्यक्तियों को ही पड़ती है, संन्यासियों को लक्ष्मी की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में तो संन्यासियों को गृहस्थ व्यक्तियों से अधिक लक्ष्मी की आवश्यकता पड़ती है। गृहस्थ व्यक्ति इसी शक्ति के माध्यम से अपने घर-परिवार का पोषण करता है और स्व उन्नति की ओर अग्रसर होता है, जबकि श्रेष्ठ योगी, सन्यासी भी इसी साधना से समाज में चेतना देने का कार्य करते हैं। उन्हें महान् कार्य करने पड़ते हैं और अपने कार्यों का विस्तार केवल एक स्थान पर नहीं अपितु हजारों स्थानों पर करना होता है इसलिये योगियों, संन्यासियों, गृहस्थियों के लिये भगवान पुरुषोत्तममय लक्ष्मी की आवश्यकता जीवन के प्रत्येक मार्ग पर होती है।
पुरुषोत्तम लक्ष्मी तत्व की जीवन में अत्यन्त अनिवार्यता है, क्योंकि इसी के द्वारा सांसारिक जीवन के अधिकांश कार्य गतिशील होते हैं। व्यक्ति में जहां एक ओर पुरुषोत्तम की असीम आत्मिक ऊर्जा, साहस, संयम, धैर्य होना चाहिये, वहीं उसके जीवन में लक्ष्मी तत्व के रूप में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, नीति, धर्म, यश, सौभाग्य, सम्मान, अर्थ, आरोग्यता आदि का भी समावेश होना ही चाहिये।
इस साधना के द्वारा साधक अपने निर्जीव पड़े जीवन को पुनः जीवन्त जाग्रत बना सकता है और जीवन की अनेक मनोकामनाओं, इच्छाओं की पूर्ति करने में समर्थ बन सकता।
साधना विधान
कमला एकाद्शी 25 मई को प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान में पीले आसन पर पूर्व की ओर मुंह कर बैठ जायें, अपनी दाहिनी ओर घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें, जो सम्पूर्ण साधना काल में जलते रहना आवश्यक है। अब अपने सामने बाजोट पर कमला महायंत्र व पुरुषोत्तम शालिग्राम स्थापित कर कुंकुंम, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप से पूजन कर नैवेद्य का भोग लगावें, पश्चात् षोड़श शक्ति वर्धक माला से निम्न मंत्र का 5 माला जप करें।
इसके पश्चात् नारायण व गुरु आरती सम्पन्न करें। यंत्र को पूजा स्थान में रहने दें तथा शालिग्राम व माला को किसी जलाशय में विसर्जित कर दें।
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