ब्रह्माण्ड में स्थित सभी पिण्डो व ग्रहों का व्यापक प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। इसी प्रकार ग्रहण का भी कालखण्ड अनेक प्रभावो, चेतन रश्मियों से युक्त होता है, भले ही वह पृथ्वी के किसी छोर अथवा देश में दृष्टिगोचर होता हो और कहीं पर दृष्टिगोचर ना होता हो, परन्तु उसका प्रभाव प्रत्येक जीव-जन्तु, मानव सभी पर पड़ता ही है। इस बात का हमें ध्यान रखना चाहिये कि इस ब्रह्म शक्ति के हम एक लघु अणु हैं, इसकी प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया में हमारी भागीदारी होती है। हमें अपने हिस्से के भाग को ग्रहण करने के प्रति गंभीर और जाग्रत रहना चाहिये। तब ही हमारे जीवन में अनुकूल परिस्थितियां और जीवन निर्माण की चेतना पर्याप्त मात्र में उपलब्ध हो सकेगी। क्योंकि वह प्रत्येक वस्तु जिसमें जीवन्तता है, उसे ऊर्जा और चेतना की आवश्यकता होती है, वह ऊर्जा शक्ति हमें इसी ब्रह्म चेतना के माध्यम से प्राप्त होती है।
आज का युग व्यस्तता और भौतिकवाद का युग है और जितनी अधिक दौड़ व्यक्ति को शरीर से नहीं करनी पड़ती, उससे अधिक दौड़ मानसिक रूप से करनी पड़ती है। शीघ्र आवागमन के लिये व्यक्ति के पास वाहन तो उपलब्ध हो गया है, शीघ्र वार्तालाप के लिये दूरभाष उपकरण भी आ गये हैं, किन्तु इसके उपरान्त भी क्या व्यस्तता में कोई कमी आई है? मंत्र साधना इसीलिये एक सहायक विद्या है, जिसे साधक कहीं भी, कभी भी सरलता पूर्वक सम्पन्न कर सकता है और अपने जीवन को इन साधना मंत्र शक्ति के माध्यम से सहज व सरल बनाकर व्यर्थ के तनाव से मुक्त हो सकता है। साथ ही ऐश्वर्य, सम्मान, सुरक्षा, निश्चिंतता, किसी भी आशंका से मुक्ति प्राप्त कर पाता है। इसी सूर्य ग्रहण पर ऐसी ही दुर्लभ साधनायें प्रकाशित की जा रहीं हैं, जिन्हें सम्पन्न कर सांसारिक जीवन की महत्वपूर्ण बिन्दु धनोपार्जन और शत्रु बाधा रहित जीवन की अभिलाषा को पूर्ण किया जाता है।
यह सर्वथा सत्य है, कठिन कार्य और सूखी रोटी लोग विवशता में ही स्वीकार करते हैं। व्यक्ति अपने जीवन में सहजता चाहता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सहजता की स्थिति खोजता है, सहजता प्राप्त करना मानव का मौलिक अधिकार व गुण है, क्योंकि सहजता के द्वारा ही ऐश्वर्य और चिंता रहित जीवन की स्थिति उत्पन्न होती है। मानव जो परिश्रम करके धनोपार्जन करता है, उसकी जड़ में केवल भरण-पोषण करना ही नहीं होता, वरन् व्यक्ति अपने भावी जीवन को सुरक्षित करने का प्रयास करता है। इसी कारण धन मानव जीवन की अनिवार्यता बन गयी है। जिसकी प्राप्ति व्यक्ति प्रत्येक दशा में करना ही चाहता है। जिसके लिये वह अनुचित कार्यों को भी करने से नहीं कतराता, परन्तु यदि हम सही दिशा में सार्थक प्रयास करें तो धन की उपलब्धता हमारे जीवन में निरन्तर बनी रह सकती है।
धन के माध्यम से जीवन में सहजता और सरलता का आगमन होता है, और आज का व्यक्ति सहज रूप से धन प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है। वह चाहता है, कि थोड़े से ही प्रयास में उसे अधिक से अधिक धन की प्राप्ति हो जाये। वह अपने जीवन के सभी सुखों का पूर्ण रूप से भोग कर सके। साबर सिद्ध मंत्र की यह साधना व्यक्ति की इसी आकांक्षा को पूर्ण करती है, इस साधना के माध्यम से जीवन में रिद्धि-सिद्धि धन लाभ की पूर्ण रूपेण स्थितियां निरन्तर-निरन्तर निर्मित होती हैं। साधक के जीवन में ऐसे-ऐसे मार्ग प्रशस्त होते हैं कि वह थोड़ा प्रयास करके सरलता से धन संग्रहित करने में सहज रूप से सफल होता है। सूर्य ग्रहण के चैतन्य क्षणों में हाथ-पैर धोकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें, स्नान की अनिवार्यता नहीं है, फिर भी अपनी इच्छा अनुरूप कर सकते हैं, सद्गुरु का चित्र सामने स्थापित कर धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य से पूजन करें। पश्चात् अपने सामने एक थाली में कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर मंत्रोद्धार विधि से चैतन्य रिद्धि-सिद्धि अष्टक स्थापित करें, फिर केवल सिन्दूर से अष्टक पर बिन्दी लगायें और पीली हकीक माला से नीचे दिये गये मंत्र का 108 बार जप करें।
जप पश्चात् अष्टक को पूजा स्थापन में ही स्थापित रहने दें और माला को किसी नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें।
शत्रु का सीधा सा तात्पर्य यही है कि आपके जीवन में जो कुछ भी अहित हो रहा, जिस कारण हो रहा, वह कारण ही शत्रु है, उसी से पार पाना है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भिन्न-भिन्न पीड़ायें हैं, बाधायें हैं, शत्रु हैं। सभी के स्वरूप और कारण में भिन्नता हो सकती है, परन्तु इन सभी से जीवन में हानि ही होती है। परिवारिक सामंजस्य का ना होना, पति-पत्नी में क्लेश, कलह, संतान आज्ञा पालक ना हो, व्यापार में वृद्धि ना होती हो या व्यापार बंधन से जकड़ा हो, परिवार में किसी का अस्वस्थ होना, किसी बीमारी का लम्बे समय तक बने रहना, उस बीमारी के कारण और दो-चार बीमारी में वृद्धि, बार-बार प्रयास के बावजूद असफल होना, छोटी-छोटी बातों पर विवाद कर लेना, संतान के कुमार्ग पर अग्रसर होने से पारिवारिक, सामाजिक रूप से अपमानित होना, आकस्मिक दुर्घटना आदि रूप में ये सभी हमारे शत्रु हैं, बाधा हैं। इन सभी के पीछे कहीं ना कहीं ऐसी मलिन शक्तियां, ऐसी आसुरी ऊर्जा होती है, जिनके कारण जीवन में ऐसी स्थितियां बनती हैं और वह घटना हमारे जीवन में घटित हो जाती है।
हमारे आस-पास ऐसी बहुत सारी आसुरी शक्तियों का मायाजाल है, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शत्रु हैं, जो जीवन को घोर कष्ट में ढ़केल देते हैं। जिनके कारण जीवन नारकीय बन सकता है या बना हुआ है। साथ ही इनसे बचने का एकमात्र उपाय यही है, कि हम स्वयं को सुरक्षित कर लें, अपने आस-पास ऐसी दैवीय शक्तियों का कवच आरूढ़ करें, जिससे जीवन सुरक्षित होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता रहे, आपने अपने जीवन में अनुभव किया होगा, कि अनायास आप किसी बाधा, बीमारी, असफलता के कारण कई वर्ष उलझे रहे या उलझे हैं, काफी प्रयास के बाद भी उनसे निकलना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि इन दुष्ट शक्तियों से निकलने के लिये हमें दैवीय शक्ति की आवश्यकता होती है, पूर्व में भी जब इन्द्रादि देवता आसुरों द्वारा घोर संकट में फंसते थे, तो वे दैवीय शक्तियों से प्रार्थना, स्तुति कर उनसे अपनी रक्षा की कामना व्यक्त करते थे और तब उन्हें पुनः स्वर्ग लोक की सत्ता प्राप्त होती थी।
वस्तुतः आज भी यही क्रम है, आसुरी शक्तियां आज भी हमारे जीवन में विघ्न-बाधायें उत्पन्न करती हैं, माध्यम और कारण का स्वरूप बदल अवश्य गया है, परन्तु सकारात्मक व नकारात्मक क्रियायें उसी स्वरूप में गतिशील हैं। अपने जीवन में इन्हीं दानव रूपी बाधाओं से निवृत्त होने हेतु साधनात्मक क्रिया निरन्तर सम्पन्न करते रहना ही श्रेष्ठ साधक के लक्षण हैं, क्योंकि जब किसी छोटी-मोटी बीमारी का समय से इलाज ना कराया जाये, तो वह असाध्य जानलेवा रोग बन जाता है। सदा इस बात का ध्यान रखें कि डाक्टर बिना बीमारी के ही विटामिन की गोलियां खाने का निर्देश देता है।
बीमारी होगी तो इलाज की अनिवार्यता तो है ही, परन्तु बीमारी ना हो इसके लिये विटामिन की गोलियां खाते रहें। प्रत्येक साधक-साधिका के लिये यह साधना उपयोगी है, चाहे वह किसी समस्या से पीडि़त है अथवा नहीं, यह इस साधना का उद्देश्य नहीं है, इस साधना का उद्देश्य प्रत्येक के लिये है, जो पीडि़त है उसके लिये भी जो नहीं है, उसके लिये भी।
सूर्य ग्रहण काल में स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें। अपने सामने एक नींबू रख कर उस पर कुंकुम की तीन बिन्दियां लगायें, आपके बायें हाथ की ओर तेल का दीपक जलायें, जो साधना काल तक जलता रहे। अब नींबू को अपनी बायें मुठ्ठी में भींच कर (दबा कर) रखें, फिर मूंगा माला से 108 बार इस मंत्र का जप करें, प्रत्येक मंत्र जप पश्चात् नींबू बंद मुठ्ठी को अपने सिर पर घड़ी की दिशा में घुमायें, ऐसा 108 बार करना है-
जप पश्चात् अग्नि जलाकर नींबू को अग्नि में दहन कर दें व माला को 11 दिन धारण रखें, पश्चात् नदी में विसर्जित कर दें।
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