सूर्य की महत्ता इतनी है, कि जब भगवान शिव ने सबसे महत्वपूर्ण अवतार धारण किया तब हनुमान के रूप में सूर्य को गुरु बनाया। इससे यह स्पष्ट है कि सूर्य आराध्य भी हैं और पूर्ण समर्थ गुरु के गुण भी सूर्य में पूर्णता के साथ विद्यमान है। इतना ही नहीं बजरंग बली के द्वारा सूर्य को लीलने की घटना वास्तव में सांकेतिक है। उनके द्वारा साधकों को यह संकेत है कि यदि जीवन में नवनिधि के स्वामी और सांसारिक जीवन में निर्बाध रूप से विचरण करना है, तो सूर्य की तेजिस्वता को पूरी तरह आत्मसात करना श्रेष्यकर रहेगा।
सूर्य के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। सूर्य कुछ काल के लिये रात्रि में अपनी किरणें पृथ्वी के एक विशेष भू-भाग पर प्रकाशित नहीं करता है, तो उस रात्रिकाल के समय मनुष्य आलस्य, निद्रा से युक्त हो जाता है और निद्रा का तात्पर्य है शरीर की शक्तियों का सुप्त हो जाना। शास्त्रकारो ने तो कहा है कि निद्रा भी एक प्रकार से मृत्यु की स्थिति है, अर्थात् जहां सूर्य है, वहां जीवन है और जहां अंधकार है वहां मृत्यु है। दैनिक जीवन में कार्य की गति भी इसी प्रामाणिकता को स्पष्ट करती हैं। सूर्योदय के साथ ही मानव में चैतन्यता जाग्रत होने लगती है और सूर्यास्त होते-होते उसकी क्रियाशक्ति मन्द होने लगती है।
जब पृथ्वी अपने सुदूर बिन्दू से पुनः सूर्य की ओर उन्मुख होती है, उस काल में घटित होने वाले ये दोनो पर्व मकर संक्रान्ति व लोहड़ी पर्व स्वयं में अनेक चिन्तनों और भावों को समेटे हुये हैं, जिनको आध्यात्म की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षण माना जाता है। यह मास उत्तरायण काल का संकेत देता है, श्रीमद्भगवद गीता के अनुसार जगद्गुरु श्रीकृष्ण ने अपना विराट और ओजस्वी स्वरूप इसी काल खण्ड में प्रकट किया था। हिन्दू संस्कृति में इस दिन गंगा आदि नदियों में स्नान कर भगवान सूर्य से अपने पापों से निवृत्त होने व नववर्ष पूर्ण प्रकाश युक्त मंगलमय होने की कामना करते हैं।
लोहड़ी पर्व को दुल्ला भट्टी के जीवन से जोड़ा जाता है, दुल्ला भट्टी पंजाब में रहते थे, उस समय मुगल शासक अकबर का साम्राज्य था। समाज में कुरीति और अत्याचार अपने चरम पर आसीन था, उस समय लड़कियों को गुलामी के लिये बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच दिया जाता था। दुल्ला भट्टी ने उन बन्दी लड़कियों को इस नारकीय जीवन से मुक्त कराकर, सम्मान पूर्वक उनका विवाह हिन्दू लड़को से सम्पन्न करवाया, जिसमें सुंदरी और मुंदरी नाम की दो लड़कियों की चर्चा सर्वाधिक हुयी। कहा जाता है, दुल्ला भट्टी ने इन लड़कियों का कन्यादान भी स्वयं किया था। सुंदरी-मुंदरी के विवाह के समय जंगल में लकडि़या जला कर उनका विवाह हुआ था और दुल्ला भट्टी ने इन दोनो कन्याओं को केवल एक अजुरी शक्कर देकर विदा किया था।
इसका सारांश यही है कि नारकीय जीवन की स्थितियों पर विजय प्राप्त करने की क्रियात्मक क्रिया हमें अपने जीवन में उतारनी चाहिये। तब ही जीवन में सुस्थितियां आ पाती हैं। सिख समुदाय में लोहड़ी पर्व अत्यधिक हर्षोल्लास और पूरी आस्था के साथ सम्पन्न किया जाता है। सिख समाज में मान्यता है कि दुल्ला भट्टी गुरुत्व चेतना से आपूरित व्यक्तित्व था। जिसने समाज की बुराईयों पर विजय प्राप्त करने के लिये जनमानस में जाग्रत भाव से युक्त होने की भावना पैदा की। लोहड़ी पर्व पर अग्नि जलाकर उसकी परिक्रमा करते हुये लोग अपने जीवन की नारकीय स्थितियों से निवृत्त होने की कामना करते हैं, साथ ही नवविवाहित पुत्र-पुत्रियों को विशेष रूप से लोहड़ी पर्व पर पूजन, उपासना करनी चाहिये। जिससे उनका गृहस्थ जीवन प्रेम, रस, आनन्द और संतान सुख से युक्त हो सके।
इन पर्वो की सांसारिक जीवन में सही चिंतन- भाव के साथ साधनात्मक क्रियायें कर व्यक्ति जीवन की विसंगतियों पर विजय प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति को परम्परावादी चिंतन के साथ उस दिव्य ज्ञान, चेतना को भी अपने जीवन में स्थान देना चाहिये। जिससे नवग्रहों की रश्मियों, सूर्य शक्ति व दैवीय शक्तियों की चेतना से आप्लावित हो सके। क्योंकि प्रत्येक पर्व कुछ ना कुछ विशिष्टता समेटे होती है।
मकर संक्रान्ति और लोहड़ी पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर, नारकीय जीवन से सुखमय जीवन की ओर गतिशील होने का भाव है। जिसे हम कुछ विशिष्ट ओजस्वी साधनात्मक क्रियाओं के द्वारा स्वः के भीतर उतार सकते हैं और जीवन में सूर्य तेजस्वीयम चेतना से आप्लावित होगें और जीवन की दुर्गतियों का शमन हो सकेगा। इसी हेतु विशिष्ट साधनाओं को प्रकाशित किया जा रहा है, जिसे आप लोहड़ी, मकर संक्रान्ति, बंसत पंचमी अथवा किसी भी रविवार को सम्पन्न कर सकते हैं।
जीवन में निरन्तर धन प्राप्ति की अनिवार्यता से कोई भी व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता, धन आज के जीवन की महत्वपूर्ण वस्तु है, जिसकी पूर्ति के लिये व्यक्ति प्रत्येक स्थिति में संघर्ष करता रहता है, इसके साथ ही हमें निरन्तर धन प्राप्ति के लिये दैवीय चेतना, साधनाओं का सहारा लेना ही चाहिये, क्योंकि साधनात्मक शक्ति की चेतना हमारे जीवन से उन अवरोधो को हमारे मार्ग से हटाती है, जिनके कारण धन का मार्ग बाधित होने से जीवन की प्रगति ठप्प सी हो जाती है और जीवन में धन अभाव रूपी अनेक कालयोग मंडराते हैं। सामान्य रूप से व्यक्ति इन स्थितियों का सामना कर विजय नहीं प्राप्त कर सकता। जीवन के अधिकांश कार्य धन पर आधारित होते हैं, हमारी छोटी से छोटी आवश्यकता भी धन से ही पूरी होती है। जिसकी प्राप्ति हेतु हमारी ओर से निरन्तर भौतिक और आध्यात्मिक अर्थात् साधना शक्ति और कर्म शक्ति के द्वारा होते रहना चाहिये, तब ही जीवन में धन की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता निरन्तर बनी रहती है, और अनेक धन प्राप्ति के अनेक मार्ग प्रशस्त होते हैं। इस हेतु हमें निरन्तर ऐसी साधनायें करते रहना चाहिये, जिसके माध्यम सें उन्नति का मार्ग बाधा रहित बना रहे। इस साधना से निरंतर धन प्राप्ति का मार्ग बना रहता है और धन लाभ में वृद्धि होती है, साथ ही साथ लक्ष्मी स्थिर रूप से जीवन में विद्यमान रहती है, इस साधना से व्यापार वृद्धि, कार्य सिद्धि, प्रमोशन में सफलता मिलती है।
14 जनवरी को प्रातः 08 बजे स्नानादि से निवृत्त होकर अपने साधना कक्ष में बैठ जायें, अपने सामने लाल वस्त्र बिछाकर उस पर केसर से स्वास्तिक बना लें तथा कुंकुम से तिलक कर स्थिर महालक्ष्मी यंत्र स्थापित कर दें, यंत्र के दाहिनी ओर निरन्तर धन प्राप्ति स्वर्णावती जीवट स्थापित कर, उसका कुंकुम अक्षत से पूजन करें, बायीं ओर घी का दीपक जला दें और फिर नीचे दिये मंत्र का शुभ-लाभ माला से 03 माला मंत्र जप करें।
साधना पूर्ण होने पर यंत्र, गुटिका, माला लाल कपड़े में बांध कर तिजोरी अथवा जहां पैसा रखते हैं वहां रख दें। होली पर सभी सामग्री किसी जलाशय में विसर्जित कर दें।
बाधाओं का जीवन में कोई ओर-छोर नहीं है, कब, कहां से, कौन सी बाधा टपक पड़े, कुछ कहा नहीं जा सकता है, इसका एक ही कारण है, कि आज के समाज में इतनी वैमनस्यता फैल चुकी है, कि व्यक्ति किसी का भी सुख-चैन देख नहीं पाता, दूसरा कारण अहंकार, अहंकारी व्यक्ति अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अपना गुलाम समझता है, प्रत्येक बड़ी मछली, छोटी मछली को खा जाना चाहती है, यही हाल सांसारिक जीवन का भी है, हर कोई अपने से छोटे को दबाना चाहता है, वहीं जलन रखने वाले लोग, येन-केन-प्रकारेण पीडि़त करने का कोई भी अवसर जाने नहीं देते है। ये तो सांसारिक जीवन की बात हुयी इसके साथ ही हमारे तंत्र दोष, पितृ दोष, पूर्व जन्मकृत दोष, भूमि-वास्तु इत्यादि दोषों का भी प्रभाव समय-समय पर हमारे जीवन में पड़ता रहता है। इन सभी बाधाओ से सचेत रहना अति आवश्यक है। इसलिये हमें समय-समय पर बिना किसी बाधा के भी ऐसी साधनाओं को सम्पन्न करना चाहिये, इसका लाभ हमें यह होता है कि जबकि बाधा आती है, तो ये साधनात्मक शक्तियां उनका मुकाबला करती हैं और उनके प्रभाव को क्षीण या पूरी तरह से समाप्त कर देती हैं।
गुरु गोरखनाथ और मकर संक्रान्ति का बड़ा गहरा नाता है, आज भी मकर संक्रान्ति की प्रथम पूजा गोरखनाथ मंदिर में होती है, जो पूरे विश्व में साबर साधनाओं का केन्द्र बिन्दु है। गुरु गोरखनाथ को साबर साधनाओं का जनक कहा जाता है, साबर साधनाओं की तीव्रता सर्व प्रचलित है, जिसका लाभ अक्षुण्ण और शीघ्र फलदायी होता है, कहा जाता है, साबर साधनाओं का वार कभी भी खाली नहीं जाता है।
मकर संक्रान्ति लोहड़ी पर्व की चैतन्यता में प्रातः 07 बजे स्नानादि से निवृत्त होकर अपने सामने साबर तंत्र सिद्ध सर्व शत्रु दमन यंत्र स्थापित करे, यंत्र पर कुंकुम से 7 बिन्दी लगाकर तेल का दीपक जला लें, फिर इस मंत्र का 108 बार जप करें-
साधना समाप्ति पर यंत्र को निर्जन स्थान पर जमीन में मिट्टी नीचे दबा दें। घर आकर हाथ-पैर धो लें।
मानव जीवन ग्रहों के अधीन हैं, ग्रहों की गति मनुष्य जीवन की गति से जुड़ी हुयी है। जब मनुष्य के ग्रह अनुकूल होते हैं, तो वह निरन्तर प्रगति के पथ अग्रसर होता है। ग्रह के दोष के कारण उत्पन्न बाधा से जीवन हर प्रकार से कष्टकारक हो जाता है, ग्रह के प्रतिकूल होने पर मनुष्य को अनेक पीड़ाओं, बाधाओं और दुःख पूर्ण स्थितियों को भोगना पड़ता है। माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी कारण ग्रहों की कुदृष्टि का शिकार होता ही है। लेकिन इस तरह की स्थितियों में भी यदि किसी ग्रह की मजबूत स्थिति आपको सशक्त बनाती है, तो उस दुष्ट ग्रह का प्रभाव क्षीण हो जाता है, अर्थात् दुष्ट ग्रहों को बल पूर्वक अथवा उपासना के माध्यम से अपने अनुकूल बनाया जाता है। परन्तु बल पूर्वक तभी बनाया जा सकता है, जब नवग्रहों का स्वामी सूर्य सशक्त हो, सूर्य ग्रह को अपने जीवन में पूर्ण तेजस्वी और चेतना युक्त बनाने का श्रेष्ठ दिवस मकर संक्रान्ति ही है। ग्रहों के अनुकूल होने पर व्यक्ति को अतिरिक्त बाधाओं के दवाब से निजात मिलती है, साथ ही सांसारिक समस्याओं व विशेष रूप से शनि व मंगल कुदशा से सुरक्षित रहता है।
मानव जीवन पर सूर्य का प्रभाव सर्वाधिक होता है, इसलिये मकर संक्रांति पर ऐसी साधनायें जीवन को प्रकाश युक्त बनाती है, साथ ही लोहड़ी पर्व जो एक प्रकार से गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर उनकी कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठतम पर्व है, ऐसे चेतनावान दिवस का उपयोग निश्चित ही साधनात्मक दृष्टि से सर्वलाभकारी होगा।
14 जनवरी को प्रातः बेला में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें, पीला आसन युक्त चौकी पर नवग्रह शांति यंत्र स्थापित करें, साथ ही सूर्य संक्रान्ति तेजस और साम्फल्य शक्ति माला सभी का पंचोपचार पूजन कर नीचे दिये मंत्र का 3 माला मंत्र जप करें।
मंत्र जप के पश्चात् सभी सामग्री जल में विसर्जित कर दें, इस साधना से व्यक्ति के नवग्रह अनुकूल फल प्रदान करते हैं, साथ ही यह साधना साम्फल्य सफलता प्रदायक शक्ति से आपूरित है जिसके माध्यम से बाधाओं, अवरोधों का निवारण होता है और व्यक्ति सफलता के उच्चतम स्थितियों को प्राप्त करने की चेतना से आप्लावित होता है।
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