बंसतोत्सव जहां एक ओर आनन्द, रस का प्रतिदान करता है, वहीं यह एक अद्वितीय साधना व उच्चकोटि की उपासना का दिवस है, जब श्रीकृष्ण राधामय कर्म ज्ञान शक्ति की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती की आराधना की जाती है। भगवती सरस्वती की उपासना प्रकारांतर से सतोगुण की उपासना है, अतः जीवन में जो भी स्थितियां सतोगुण से सम्बन्धित हों, वे सभी महासरस्वती के ही अधीन है। अध्यात्म के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना, ध्यान, धारणा व समाधि में सफल होना भी महासरस्वती की कृपा से ही संभव हो पाता है।
किन्तु इसके उपरांत भी महासरस्वती की धारणा को केवल अपने तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है, उनमें सत्व गुण प्रधानता है, किन्तु वे जीवन के अन्य दो आवश्यक गुण रज और तम से सर्वथा रहित नहीं है, यह उनके 108 स्वरूपों के चिंतन में स्पष्ट होता है। जिनमें विभिन्न नामों का उल्लेख नीचे दिया गया है।
सरस्वती, महाभद्रा, महामाया, वरप्रदा, श्रीप्रदा, ज्ञानमुद्रा, परा, रमा, महा पातक नाशिनी, कामरूपा, महाभोगा, मालिनी, सुरवन्दिता, महाकाली, वैष्णवी, महाकारा, महापाशा, चन्द्रा, सावित्री, वाग्देवी, वसुधा, महाभद्रा, महाबला, भोगदा, भारती, शिवा, चण्डिका, ब्राह्मी, सुभद्रा, विद्यारूपा, चण्डिका, त्रिकालज्ञी, शास्त्र रूपिणी, अम्बिका, सौम्या, रूप सौभाग्यदायिनी, कामप्रदा आदि है।
भगवती सरस्वती ज्ञान शक्ति स्वरूपिणी, कामरूपा, त्रिकालज्ञी और ब्रह्मज्ञान स्वरूपा हैं, जो अपनी अष्ट मूर्तियां- लक्ष्मी, मेद्या, वरा, शिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा एवं मति के साथ अपने भक्तों पर सदैव वरदायिनी स्वरूप में विद्यमान रहती हैं। जिससे जीवन में लक्ष्मी, मेद्या अर्थात् प्रत्युत्पन्नमति, वरा अर्थात् कर्मफल का वरदायक प्रभाव, शिष्टि अर्थात् सर्वरूपेण मंगलमय, शिष्टता, गौरी अर्थात् शक्ति तत्व, तुष्टि अर्थात् परिपूर्णता, प्रभा अर्थात् राधामय सम्मोहन, मति अर्थात् श्रीकृष्णमय योग का ज्ञान प्राप्त होता है और सांसारिक जीवन संतुलित, व्यावहारिक और सद्स्थितियों से युक्त होता है।
प्रत्येक गृहस्थ के लिये भगवान श्रीकृष्ण प्रेरणा स्रोत हैं, जिन्होंने गृहस्थ और समाज के प्रत्येक धर्म को श्रेष्ठता से निभाया और मानव समाज को श्रीमद्भागवत के ज्ञान से आलोकित किया, वर्तमान में जहां एक पत्नी, एक-दो बच्चे, व्यापार को ही सही ढंग से संभाल पाना मुश्किल है, वहीं कृष्ण ने हजारों रानियों, प्रेमिकाओं, राज-पाट, ऐश्वर्य, सहभागिता के साथ मान-सम्मान, प्रतिष्ठा पूर्ण जीवन व्यतीत किया।
क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण स्वरूप क्लीं शक्ति से युक्त था। भगवान श्रीकृष्ण के रोम-रोम में क्लीं कामबीज शक्ति से आबद्व था, जिससे उन्हें कुछ करने की अथवा किसी पर अपना प्रभाव डालने की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती थी। व्यक्ति स्वतः उनका प्रशंसक और अनुयायी हो जाता था। केवल मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी, केवल उनके मित्र पांडव ही नहीं, उनके विरोधी कौरव भी उनके आकर्षण में समान रूप से बंधे थे।
सांसारिक जीवन में भी ऐसी क्लीं कामबीज मंत्र की चेतना की आवश्यकता होती है, जिससे व्यक्ति अपने आकर्षण शक्ति में सभी को बांध कर, विपरीत परिस्थितियों, व्यक्तियों को अपने अनुकूल बनाकर जीवन मार्ग पर निर्विघ्न रूप से गतिशील हो सके। क्योंकि जीवन में पग-पग पर बाधायें हैं, और यदि हम प्रत्येक बाधा से लड़ते-भिड़ते चलेंगे, तो जीवन स्वयं में महायुद्ध बन जायेगा, इसलिये हमें अपने जीवन में अनुकूल स्थितियां निर्मित करनी है, जनसमूह और विरोधी को अपने अनुकूल बनाकर अपना कार्य सिद्धि करना है, विवेकशील व्यक्तित्व की यही पहचान होती है।
साथ ही हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सम्मोहन वशीकरण की चेतना की आवश्यकता होती है, जिससे हमारा कोई भी कार्य रूके नहीं है, चाहे राजकीय कार्य, शासकीय कार्य, प्रशासनिक, सामाजिक, पारिवारिक कार्य क्षेत्र, नौकरी अथवा कहीं पर किसी भी कार्य में हमारे समक्ष रूकावटें ना आये।
इस शक्तिपात दीक्षा के द्वारा आप आद्या शक्ति स्वरूपिणी माँ महासरस्वती की चेतना से जीवन में क्लीं शक्ति सम्मोहन वशीकरण की चेतना से आप्लावित हो सकेंगे, जिससे आपके व्यक्तित्व का विकास होगा और आप सम्मोहन वशीकरण की चेतना से अपने सभी कार्य सरलता से सम्पन्न करने में सफल होंगे। साथ ही जीवन में ज्ञान, सद्बुद्धि, वाक् चार्तुयता, कौशल, स्मरण शक्ति की वृद्धि होगी।
भगवती सरस्वती कामरूपा सौभाग्यदायिनी भी हैं, जिसके द्वारा स्त्रियां सौभाग्य शक्ति, सौन्दर्य, कामिनी की चेतना से आप्लावित होंगी और पुरूष कामदेव शक्ति, ओज, ऊर्जा से युक्त होंगे, जिससे रस, आनन्द, प्रेम, भोग, प्रसन्नता, सुख-समृद्धि युक्त जीवन निर्मित होगा। दीक्षा प्राप्त करने हेतु दो नये पत्रिका सदस्य के साथ अपनी फोटो वाट्सअप, ई-मेल, पत्र आदि माध्यमों से कैलाश सिद्धाश्रम-जोधपुर भेंज दें।
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