तंत्र शास्त्र के प्रवर्तक आचार्यों ने प्रत्येक उपासना-कर्म की सिद्धि के लिये भगवान् भैरवनाथ की आज्ञा प्राप्त करने का निर्देश दिया है। इसीलिये हम प्रार्थना करते हैं –
भैरव की मान्यता मूल रूप से रक्षाकारक देव के रूप में है, बड़े से बड़े यज्ञ में पहले भैरव स्थापना की जाती है, जिससे कि भैरव अपनी शक्ति से दसों दिशाओं को आबद्ध कर देते हैं फिर सम्पूर्ण कार्य में कोई विघ्न उपस्थित नहीं हो सकता है। भूत, पिशाच, प्रेत, तांत्रिक प्रयोग कैसा भी प्रबल प्रहार किया जाये, जहां भैरव की उपस्थिति है, वहां से प्रहार उल्टे लौट आते हैं और इस प्रकार के मलिन तांत्रिक प्रयोग करने वालों का ही नाश कर देते हैं।
यदि सांसारिक जीवन में समय विपरीत हो जाता है, तो वहां छोटा सा छोटा कार्य भी क्लिष्ट, दुरूह बन जाता है, जिसके कारण मानसिक चिंता बढ़ जाती है, और मानसिक चिंता बढ़ने पर व्यक्ति श्रेष्ठ चिंतन नहीं कर पाता, श्रेष्ठ चिंतन ना होने के कारण व्यक्ति अर्नगल क्रियाओं में लिप्त होने लगता है।
सांसारिक जीवन में नित्य ऐसी अनेक समस्यायें आती रहती हैं, जिसका सामना करना पड़ता है। कई बार स्थितियां हमारे नियंत्रण में नहीं होती। जहां पर हमें पराजय का सामना करना पड़ता है, काल का तात्पर्य यही है कि परिस्थितियों पर हमारा नियंत्रण हो, हमारे अनुकूल हो। काल भैरव ऐसे देव हैं, जिनकी चेतना शक्ति आत्मसात कर जीवन की अनेक दुरुह स्थितियों को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है, अनुकूल स्थितियों में विकास होना स्वाभाविक है।
जीवन की सारी विषम स्थितियां, बाधायें, अड़चनें दूर करने की सहज क्रिया का नाम कालभैरव है। जो कालरूपी न्यूनता, बाधा, दीन-हीन स्थिति, तनाव, चिंता, रोग-शोक, कलह, विवाद, मुकदमा, शत्रु बाधा आदि-आदि का शमन करते हैं।
तांत्रिक ग्रंथों में काल भैरव दीक्षा को शत्रु स्तम्भन के लिये श्रेष्ठ रूप में एकमत से स्वीकार किया गया है।
कार्तिक पूर्णिमा से माघीय अमावस्या के बीच के दिवस भैरव साधना के चैतन्य दिवस होते हैं। इन दिवसों में भैरव की पूजा, मंत्र या दीक्षा ग्रहण करने से साधक सुशक्तियों से युक्त होता है।
इस दीक्षा हेतु आप अपना पोस्ट कार्ड साईज फोटो कैलाश सिद्धाश्रम-जोधपुर वाट्सअप, ई-मेल आदि माध्यम से भेजकर दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं।
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