षट्कोणों से युक्त एवं नौ आवरणों वाला श्री यंत्र अथवा श्री चक्र मां भगवती जगदम्बा की उपस्थिति का भी प्रतीक है, यह चक्र उनकी अनन्त शक्तियों को एक सीमित रूप में अंकन करने का प्रयास है। जिसे श्री विद्या साधना की संज्ञा से विभूषित किया गया।
यद्यपि श्री विद्या साधना गूढ़ और जटिल है, मूलतः ब्रह्म ज्ञानी विद्या है, किन्तु श्री विद्या साधना सामान्य गृहस्थ व्यक्ति भी सम्पन्न कर अपनी सभी समस्याओं से मुक्त होकर भौतिक जीवन तक ही सीमित नहीं रहता वरन् और आगे बढ़कर आध्यात्मिक लाभों को भी प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। शक्ति साधना का यही तात्पर्य है कि जो कुछ सामान्य प्रयासों से न प्राप्त हो रहा हो, उसे शक्ति के स्पर्श से प्राप्त कर लें।
श्री विद्या विशिष्ट रूप से त्रिपुर सुन्दरी की ही साधना है, यह विद्या ही षोड़शी त्रिपुरी एवं ललिताम्बा हैं। ये ही पराशक्ति हैं, ये ही विश्व मोहिनी योगमाया हैं, ये ही श्री महाविद्या है और इनसे ही सारे जगत का आविर्भाव होता है। इन्हीं की शक्ति से संसार के समस्त शोकों, कष्टों, दुःखों और अभावों का नाश होता है।
सद्गुरूदेव ने ही सर्वप्रथम इस तथ्य को स्पष्ट किया कि श्री विद्या साधना जहां एक ओर विशद गूढ़ार्थ है, वहीं इसका सामान्य जीवन में भी ऐसे सरल विधान हैं, साधनायें हैं, जिनके द्वारा साधक भोग व पूर्णता दोनों ही प्राप्त कर सकता है। जिस प्रकार से इस विद्या का आध्यात्मिक अर्थ गूढ़ रखा गया, उसी प्रकार इसके भौतिक जीवन से सम्बन्धित पक्ष भी गोपनीय रखे गये। बौद्ध मठों का धन-वैभव और साधना जगत में उनकी विलक्षण प्रगति का रहस्य भी यही श्री विद्या साधना है। जिसके द्वारा उन्हें कभी किसी के समक्ष याचक बनने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
इस साधना से सम्बन्धित श्रीचक्र के नौ आवरणों में ही रहस्य निहित है। श्री विद्या अर्थात् षोड़शी के नौ आवरण ललिता, त्रिपुर सुन्दरी, त्रिपुर वासिनी, त्रिपुरमालिनी, त्रिपुराम्बा, त्रिपुरासिद्धा, त्रिपुराक्षी, त्रिपुरभेदनी एवं त्रिपुरेशी है। जो श्री विद्या की नौ विशिष्ट शक्तियों के नाम हैं। ये शक्तियां मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से पूर्ण तादात्मय रखती हैं। जब साधक इन्हीं नौ स्वरूपों का तादात्मय अपनी देह से कर लेता है, या ऐसा कहें कि विविध शक्ति स्वरूपों को समाहित करने में सफल हो जाता है, तो उसे जीवन की पूर्णता मिल जाती है।
इन नौ स्वरूपों में ही जीवन की समस्त कामनाओं की पूर्ति का मंत्र निहित है। यदि विचार पूर्वक देखा जाये तो मानव जीवन में भी नौ स्थितियां ही महत्वपूर्ण हैं। सर्व प्रथम तनावमुक्त जीवन, प्रत्येक मनोकामना की पूर्ति, जीवन के रोग-शोक का शमन, शत्रु बाधा से मुक्ति, राज्य पक्ष से अनुकूलता एवं सम्मान, जीवन में पूर्ण भाग्योदय, आर्थिक सुदृढ़ता प्रत्येक अनिष्ट का शमन, पूर्ण गृहस्थ सुख एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व भौतिक रूप से मानव जीवन की प्रथम आवश्यकता है। आध्यात्मिक पक्ष तो इनकी पूर्ति के बाद ही आरम्भ होता है। कहने का तात्पर्य है कि भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के बाद ही आध्यात्मिकता का आरम्भ होता है।
श्री विद्या अक्षय धन लक्ष्मी साधना पूर्ण रूप से भौतिक अभिलाषाओं की पूर्ति की साधना है, इस साधना को सम्पन्न करने से साधक के जीवन में धन सम्बन्धित समस्याओं का पूर्ण रूपेण निदान होता है। इस साधना के द्वारा व्यक्ति अक्षय स्वरूप में लक्ष्मी की प्राप्ति कर पाता है, जिससे निरंतर उसके जीवन में धन की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता बनी रहती है और परिवार में सुख-समृद्धि, कुशलता, उन्नति, कार्य सिद्धि और प्रसन्नता का वातावरण बनता है।
वैतरणी शक्ति दिवस प्रदोष काल 15 नवम्बर
बुधवार को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से स्वच्छ होकर अपने पूजन कक्ष में प्रातः बैठ जायें तथा लाल वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर अपने सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उसके मध्य में एक ताम्र पात्र में श्री विद्या धन लक्ष्मी युक्त श्री यंत्र की स्थापना करें। सामने पांच चावलों की ढे़री बनाकर प्रत्येक पर एक गोल सुपारी रखें। इन ढ़ेरियों के दाहिनी और एक अन्य ताम्र पात्र में अक्षय शक्ति जीवट स्थापन पुष्प की पंखुडि़यों पर करें। बायीं ओर तेल का दीपक तथा दाहिनी ओर घी का दीपक स्थापित करें। पूजन की अन्य सामग्रियों में लाल पुष्प, श्वेत पुष्प, कुंकुंम, अक्षत, श्वेत चन्दन, रक्त चन्दन, केसर, कपूर, नैवेद्य, मिष्ठान व फल आदि आवश्यक है। लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठकर दीपक व अगरबत्ती प्रज्ज्वलित कर आत्म शुद्धि करें।
ऊँ अपवित्रः पवित्रे वा सर्वावस्थां गतोऽ पिवा।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं सः बाह्याभ्यान्तरः शुचिः।
तदुपरांत आचमन करें-
ऊँ आत्म तत्वं शोधयामि स्वाहा,
ऊँ विद्यातत्वं शोधयामि स्वाहा,
ऊँ गुरूतत्वं शोधयामि स्वाहा,
एक गोल सुपारी में मौली बांधकर उसमें गणपति का ध्यान करते हुये संक्षिप्त गणपति पूजन करें।
शुक्लाम्बर धरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्
प्रसन्न्वदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये।।
विघ्न व शत्रु रक्षा हेतु भैरव प्रार्थना करें-
ह्रीं अतिक्रूर महाकाय कल्पान्तदहनोपम्।
भैरवाय नमुस्तुभ्यंमनुज्ञां दातुमर्हसि।।
प्रारम्भिक पूजन क्रम के बाद संक्षिप्त रूप से श्री यंत्र का पूजन करें। यंत्र को जल, गंगाजल व दूध से स्नान कराकर व पोंछकर केसर व श्वेत चन्दन से तिलक करे तथा श्वेत पुष्प चढ़ाते हुये गुरू चिंतन करें-
आनन्दमानन्दकरं प्रसन्नं ज्ञानस्वरूपं निजबोधरूपम्
योगीन्द्रमीड्यं भवरोगवैद्यं, श्रीमद्गुरूं नित्यमहं भजामि।
यंत्र के समक्ष स्थापित पांचों ढेरियों का पूजन केवल श्वेत चन्दन व केसर करते हुये उच्चारण करें।
ऊँ गुं गुरूभ्यो नमः। ऊँ पं परम गुरूभ्यो नमः।
ऊँ पं परात्पर गुरूभ्यो नमः।
ऊँ पं परमेष्ठि गुरूभ्यो नमः।
ऊँ पं परापर पूर्णत्व ललिताम्बे गुरूभ्यो नमः।।
अपने जीवन में सम्पूर्ण स्वरूप में श्री प्राप्ति हेतु सद्गुरू का ध्यान व आवाहन करें व पूज्य सद्गुरुदेव के चित्र के सामने नमन कर इस महत्वपूर्ण व दुर्लभ साधना में प्रवृत्त होने के लिये मानसिक आज्ञा व आशीर्वाद प्राप्त करें।
ह्रीं श्री गुरो दक्षिणामूर्ते भक्तानुग्रहकारक।
अनुज्ञां देहि भगवन् त्रिुपर सुन्दर्यै अर्चनाय मे।।
मानसिक आज्ञा प्राप्त करने के उपरान्त दाहिनी ओर स्थापित श्री यंत्र को दाहिने हाथ से स्पर्श कर त्राटक करते हुये यह प्रार्थना करें कि वह न केवल आपसे वरन् आपकी वंश परम्परा से भी जुड़े और समस्त परिवार जनों का कल्याण और आगामी पीढ़ी के लिये भी वरदायक हों। श्री का ध्यान करें-
श्री श्चते लक्ष्मी श्चते बहुरात्रे भारतखण्डे मम् ।
ईखाणा सर्व लोकम् ईखाणा श्री श्री पादये नमः ।।
अब जीवट का पूजन लाल पुष्प, श्वेत पुष्प, कुंकुंम, अक्षत, श्वेत चन्दन, रक्त चन्दन, केसर, कपूर, नैवेद्य, मिष्ठान व फल अर्पित करें। पूजन सम्पन्न कर श्रीविद्या शक्ति माला से 3 माला जाप पांच दिवस तक जप करें।
मंत्र जप के बाद गुरु आरती करें और पुष्प व अक्षत लेकर क्षमा प्रार्थना कर प्रसाद ग्रहण करें। साधना समाप्ति के पश्चात् सभी सामग्री को लाल कपड़े में बांध कर किसी जलाशय में विसर्जित कर दें।
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