जगत के प्राणियों के दुःख एवं ताप के निवारण हेतु भगवान दत्तात्रेय ने इस जगत में आविर्भूत होकर लीला की और जब तक इस जगत में दुःख एवं ताप विद्यमान रहेंगे, तब तक भगवान दत्तात्रेय ने अपना देह विसर्जन ना करने का संकल्प लिया है। वे उसी देह और उसी भाव में अवस्थित रहेंगे। महाप्रलय पर्यन्त उनका दीर्घ अस्तित्व माना गया है। तन्त्र शास्त्र में दत्तात्रेय जी को चिरंजीव कहा गया है। वे सदेह विद्यमान हैं, उनके विषय में तन्त्र शास्त्र में वर्णन है कि स्मरणमात्रत आममात्मनः अर्थात् अपने भक्तों के स्मरण करने मात्र से ही भगवान दत्तात्रेय दर्शन दे देते हैं और उनके सभी दुःख शोक का निवारण करते हैं।
आज के समय में अनेक विषम परिस्थितियां व्यक्ति के जीवन में विद्यमान रहती हैं। जिनके निवारण के लिये वह तरह-तरह के उपाय करता है। परन्तु उसे इच्छित परिणाम नहीं मिलता, उसके अनेक उपाय निष्फल से प्रतीत होने लगते हैं, ऐसे समय में उसका ईश्वरीय सत्ता से विश्वास डगमगाने लगता है, कभी-कभी वह निराशाजनक विचारों में घिर जाता है और दैवीय शक्ति पर ही क्रोधित हो जाता है, तो कभी वह उनसे अपने जीवन की रक्षा हेतु याचना करता है।
ऐसी स्थिति लगभग प्रत्येक व्यक्ति के साथ होती है, जब वह जीवन की समस्याओं से लम्बे समय से घिरा हो और उसे कोई स्थायी समाधान ना मिले। जीवन सुख-दुःख के रंगों से बनी एक अनसुलझी पहेली है, जिसे सुलझाना तो आवश्यक है, लेकिन यह इतना भी सरल नहीं कि हर कोई सुलझा सके। लेकिन निरन्तर प्रयास द्वारा कुछ परतें उधेड़ी जा सकती हैं, और यदि एक भी परत आपने उधेड़ ली तो आगे की परते उखड़नी निश्चित है, अर्थात् व्यक्ति धैर्य के साथ सही दिशा में यदि प्रयास करे, तो वह अपनी समस्याओं से निजात पा सकता है।
विचारणीय तथ्य भी यही है कि हमारी समस्यायें जीवन भर ना रहें, वे समाप्त हों, सही समय पर उनका शमन हो जाये और व्यक्ति अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो, क्योंकि यह भी सत्य है कि हमारी बाधायें, हमारे विकास को अनेक वर्ष पीछे की ओर धकेल देती हैं। जिनके कारण हमारा बहुमूल्य समय नष्ट हो जाता है और जिस स्थिति को हमें दो साल पहले प्राप्त करनी थी, उसे बाधाओं के कारण हम आगे के चार वर्षो में अथक प्रयासों द्वारा प्राप्त कर पायेंगे।
इस प्रकार जीवन अनेक विषम स्थितियों में घुटता रहता है। व्यक्ति को इसके स्थायी समाधान की ओर बढ़ना चाहिये और यह संभव है दत्तात्रेय प्रणीत मोक्षदा दीक्षा से—!! मोक्षदा का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति अपने जीवन की बाधा, पीड़ा, दुःख, संताप, रोग, कठिनाईयों से मोक्ष प्राप्त करें, मुक्त हो सके, जीवन की इसी स्थिति को मोक्ष कहा गया है। इस दीक्षा द्वारा साधक की न्यूनता रूपी स्थितियों का शमन होगा, उसे अपनी समस्याओं से निकलने का मार्ग प्राप्त हो सकेगा। साथ ही वह ऐसी ही क्रियात्मक चेतना द्वारा जीवन को सुस्थितियों से परिपूर्ण कर सकेगा।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,