विज्ञान की दृष्टि से यह सिद्ध है कि जिन स्थानों में विशिष्ट आत्म-शक्ति वाले महापुरूष निवास करते हैं, वहां का वातावरण उनकी आत्म-शक्ति से भर जाता है। जहां पर चेतनावान व्यक्तित्व का निवास होता है, वहां का वातावरण उनके तपस्यांश रश्मियों के तेज से आप्लावित हो जाता है। जिसका प्रभाव चिरकाल तक विद्यमान रहता है। जाग्रत, चैतन्य साधक को उनकी सूक्ष्म अनुभूति होती है, अनेक तत्वदर्शियों को ऐसे स्थानों पर अलौकिक शक्तियों की प्रत्यक्ष अनुभूति भी हुयी है।
शास्त्रमत है कि आध्यात्मिक चेतना को आत्मसात करने के इच्छुक साधक अपनी साधना हेतु ऐसे स्थानों का चुनाव करते हैं, जहां इस प्रकार की तपस्यांश चेतना विद्यमान हो। क्योंकि ऐसे स्थानों पर साधनारत साधक को ऐसी संबलता प्राप्त होती है, जिससे अनेक बाधायें, विघ्न स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं, और साधको को शीघ्र ही कार्यो में सफलता प्राप्त होनी प्रारम्भ हो जाती है। ऐसे स्थानों पर भूमि, जल, वायु, आकाश में ऐसा दिव्य तेज भरा रहता है, जिसके स्पर्श से जीवन को कालजयी और आनन्द युक्त बनाया जा सकता है। शास्त्रों ने तपस्वियों, मनीषियों, अवतारी पुरूषों के सुदृढ़ दिव्य तेज से आपूरित ऐसे स्थानों को ही महातीर्थ और सिद्धपीठ कहा है। ऐसे स्थानों के वातावरण में सरलता से सफलता प्रदान करने वाले तत्व भरे होते हैं। इन तत्वों की चेतना आत्मसात करने से जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में असाधारण सफलता प्राप्त होती है। जिस प्रकार वृक्ष की छाया में बैठने से सभी प्रकार के लोगों को शीतलता अनुभव होती है, उसी प्रकार ऐसे दिव्य धाम की छाया में सर्व संकट निवारण और सुख-शान्ति प्रदायक चेतना सुलभता से प्राप्त होती है। अनेक साधकों को ऐसे अप्रत्याशित लाभ प्राप्त होते देखे गये हैं।
परम पूज्य सद्गुरुदेव ने अपने जीवन में सदैव कर्मयोग को प्रधानता दी। अपने पूरे जीवन में स्वयं तंत्र-मंत्र साधना एवं समाज उपयोगी कार्य सम्पन्न किये। इसी श्रृंखला में उन्होंने निश्चय किया था कि जिस भूमि पर वे अपने शैशव काल एवं बचपन के दिनों में ही सुसंस्कारों से युक्त हुये हैं, उस स्थान पर भव्य लक्ष्मी नारायण मन्दिर बनना चाहिये और साथ ही श्रद्धालुओं के लिये भवन भी होना चाहिये। इसी भाव के अनुरुप उन्होंने जोधपुर से 30 किलोमीटर दूर अपनी कर्मभूमि लूनी जंक्शन में भव्य निर्माण को सम्पन्न कराया। साथ ही परम वन्दनीय भगवती माता जी के आज्ञा अनुसार नारायण लक्ष्मी मन्दिर के साथ ही निखिलेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग स्थापित किया।
वर्तमान में यह स्थल निखिल शिष्यों, साधको और उन्हें मानने वाले अनुयायियों के लिये दिव्य धाम के रूप में विख्यात है, गुरुधाम जोधपुर आने वाले अनेक शिष्य-साधक ग्राम-लूनी में भव्य देव विग्रहों की दर्शन की आकांक्षा व उस दिव्य धाम में साधना, शक्तिपात दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा परम पूज्य सद्गुरुदेव के सम्मुख अनेक बार व्यक्त कर चुके थे, हजारों शिष्यों के आग्रह और निवेदन पर पूज्य सद्गुरुदेव कैलाश जी ने इस वर्ष निखिल दिव्य धाम-लूनी में सहस्त्र लक्ष्मी प्राप्ति दीपावली महोत्सव सम्पन्न करने की आज्ञा प्रदान की है।
साथ ही पूज्य सद्गुरुदेव ने सद्गुरुदेव निखिल से आत्मिक रूप से जुड़े सभी साधको, शिष्यों का आह्वान करते हुये कहा है कि- इस वर्ष का दीपावली महोत्सव नारायण के ही दिव्य भूमि पर सहस्त्र लक्ष्मी के सभी स्वरूपों को आत्मसात करने की साधनात्मक क्रिया, निखिलेश्वर महादेव शिवलिंग की तेजस्वी रश्मियों के मध्य रूद्राभिषेक, निखिलेश्वर अभिषेक उसी दिव्य तेजमय पारदेश्वर शिवलिंग पर सम्पन्न किया जायेगा, जिसे सभी दिव्य चैतन्य तीर्थों व पवित्र नदियों के जल से अभिषेक कर साधकों को नारायण लक्ष्मी की अष्ट शक्तियों से आपूरित किया गया है। साथ ही मंदिर प्रांगण में हवन, विशिष्ट शक्तिपात दीक्षा के माध्यम से सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानंद के तपस्यांश शक्ति को आत्मसात करने की श्रेष्ठतम क्रियायें शिष्यों के कल्याणार्थ प्रदान की जायेगी।
मनुष्य अपने जीवन में अनेक वरदान प्राप्त कर पृथ्वी पर आता है और जीवन के उच्च्तम शिखर पर पहुंचने में समर्थ हो जाता है। उसे अपने जीवन में श्रेष्ठ माता-पिता, श्रेष्ठ मित्र, सहयोगी और उससे भी अधिक ईश्वर कृपा से श्रेष्ठ सद्गुरुदेव प्राप्त होते हैं, जो उसके जीवन के मार्गदर्शक व पथप्रदर्शक तो होते ही हैं, साथ ही कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वे उसके जीवन के निर्माता होते हैं। वे उसे बार-बार यह ज्ञान कराते हैं, कि यह मनुष्य जीवन अत्यन्त विलक्षण है, इसके प्रत्येक क्षण में एक माया एक रहस्य छुपा है। जैसे-जैसे क्षण-क्षण इन रहस्यों का समाधान प्राप्त करते रहोगे तो जीवन आभायुक्त, श्रीयुक्त हो जायेगा और सही अर्थो में जीवन जीने का आनन्द प्राप्त कर सकोगे। यह ज्ञान केवल श्रेष्ठ गुरु के माध्यम से सम्भव होता है। क्योंकि गुरु का जीवन अपने शिष्यों को अपने मानस पुत्रों को सदैव कुछ देने के लिये ही तत्पर रहता है। और सद्गुरु उसे दीक्षा के माध्यम से मंत्र युक्त, साधना के माध्यम से क्रिया युक्त और दिव्य वरदान से उसे सौभाग्य युक्त बना देते हैं, इस तीनों का योग निश्चित समय पर अर्थात् श्रेष्ठ मुहुर्त, तिथि और चेतनावान, तेजमय स्थल पर ही सम्भव हो पाता है।
मुहुर्त और स्थान विशेष की महत्ता दोनों के योग से जीवन को कर्मशील, भाग्यशील मंत्र युक्त करने का अवसर है, काल किसी भी खण्ड की पुनरावृत्ति नहीं करता, ना ही आपके जीवन काल में वह खण्ड वापस जुड़ सकता है। जहां जिस क्षण का उपयोग आपने कर लिया, वह क्षण आपके जीवन को श्रेष्ठ दिशा में ले जाने में समर्थ हो जाता है। यदि समय का सही उपयोग कर लिया तो ही आनन्द, सुख, सम्पन्नता, वैभव, पूर्णता की प्राप्ति कर सकेंगे।
लक्ष्मी केवल धन की अधिष्ठात्री ही नहीं है, यह सहस्त्र रूपों में विद्यमान है और सहस्त्र कोटि रूप से धारण की जाती है, तो जीवन योगमय, तपोमय, तेजस्वी बन जाता है। अपने जीवन में कोई भी आभा लेकर उत्पन्न नहीं होता, केवल अपने कर्म और भाग्य से ही आभा मण्डित होता है, इसलिये लक्ष्मी को आधार शक्ति कहा गया है। यह कुरूपता, अंधकार व धनहीनता नाश करने वाली विष्णु प्रिया, कोटि सूर्य प्रकाशयुक्त, रूपिणी, अनन्ता, वैष्णवी, ज्ञानज्ञेय, विकासिनी, सुशान्ता, यंत्रवाहिनी, गम्भीरा रिद्धि, अनुग्रह शक्ति, अमृत नन्दिनी, धूमा, कलावती, महाशक्ति, प्राणशक्ति, प्राणदात्री, तिम्बरा, इच्छाधरा, त्रिगुणगर्विता, कलिकलमषनाशिनी, महामाया, योगमाया, कीर्तिजया, काष्ठा, निष्ठा, प्रतिष्ठा, श्रेष्ठा, सर्वार्थसाधिनी, अध्यात्मविद्या प्रदायिनी, हिरण्यगर्भा, त्रैलोक्य सुन्दरी, वरदा, श्रीयंत्र विराजिता, मोहिनी, सर्व कामप्रदा, सर्वमंगला, धनेश्वरी, सर्वकाम श्रमिदा, कमलाक्षी, सर्वोत्कृष्टा, सर्वमयी, सर्वेश्वर प्रिया है।
यह तो लक्ष्मी के कोटि स्वरूपों में से कुछ रूप है। ऐसे विविध स्वरूपों का आह्वान केवल शुभ मुहुर्त चेतनावान स्थान पर गुरु चरणों के समक्ष अक्षुण्ण रूप में किया जा सकता है। इन सहस्त्र स्वरूपों को आत्मसात करने की क्रिया केवल और केवल गुरु कृपा से ही संभव हो पाता है।
जहां गुरु का निवास रहा हो, वह तीर्थ अथवा दिव्य धाम कहलाता है। उस देव भूमि पर शिष्य-साधक आराधना, पूजा, साधना कर जीवन को सहस्त्र लक्ष्मी से युक्त करने में सफल हो पाता है। जीवन में आधिदैविक, आधिभौतिक एवं परमानन्द की प्राप्ति का आधार सर्वप्रथम सद्गुरु और उनके साथ लक्ष्मी ही है, जिसे साधक-शिष्य सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानंद स्वरूप में नारायण लक्ष्मी देव विग्रह के चैतन्य भावों को आत्मसात करने से प्राप्त कर सकेंगे। दिव्य निखिल धाम- लूनी में आपका सपरिवार हृदय भाव से स्वागत है—!!!
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