जिसने ज्ञान रूपी शलाका से, अज्ञान रूपी अंधकार को समाप्त कर ज्ञान के दिव्य प्रकाश का बोध कराया, उस गुरु को नमस्कार!!
मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है, कि वह ज्ञान से युक्त हो जाये, अर्थात् वह ज्ञान में पूर्णता प्राप्त कर ले, शास्त्रें में इसी को मानव जीवन की सार्थकता कही गयी है। जिसने जीवन में ज्ञान को धारण कर लिया, स्वयं से परिचित हो लिया, वही जीवन सार्थक है। लेकिन मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य यही है, कि वह स्वयं से अपरिचित, अनजान है, और जीवन का सबसे कठिन ज्ञान भी स्वयं से परिचित होना है। होना तो इसे सुगम, सरल चाहिये था, लेकिन सबसे कठिन हो गया, कारण बड़ा नहीं है, कारण तो सिर्फ इतना ही है, जैसे कोई रोगी समझ ले, मैं स्वस्थ हूं, ऐसे ही हम अज्ञानी समझ लेते हैं कि हम ज्ञानी हैं।
यही मूल समस्या है, क्योंकि डॉक्टर तो रोगी का इलाज करेगा, जिसने स्वयं को स्वस्थ मान लिया उसका इलाज करना मुश्किल है, क्योंकि मरीज डॉक्टर को देखते ही 10 फीट दूर खड़ा होगा, उसे भय रहता है, कि पता नहीं कौन सी बीमारी बता कर इंजेक्शन लगा दे, जबकि मैं तो अच्छा-खासा, चल-फिर रहा हूं, खा रहा हूं, दौड़ रहा हूं, लेकिन डॉक्टर को पता है, कि यह आदमी अन्दर से खोखला है, इसका लीवर आधा से ज्यादा सड़ चुका है, आंतडि़या कभी भी धोखा दे सकती हैं, हार्ट फेल हो सकता है, इसलिये इसका शीघ्र ही इलाज होना चाहिये।
लेकिन रोगी यह मानने को तैयार नहीं, कि वह अस्वस्थ है, उसने बाहर के आडम्बर को, बाहर की चमड़ी को ही स्वस्थता की संज्ञा दे दी। उसने स्वयं को ज्ञानी मान लिया और ज्ञानी को ज्ञान नहीं दिया जा सकता, जो स्वस्थ है, उसका इलाज नहीं किया जा सकता, इलाज केवल और केवल रोगी का हो सकता है। फिर भी डॉक्टर अपनी ओर से सारी चेष्टायें करता है, पूरा जोर लगा देता है, उठा-उठा कर लाता है, पकड़ कर, खींच कर, घसीट कर लाता है, वह अपना प्रयास जारी रखता है, जबरदस्ती इलाज करता है, उसे बचाने को कड़वी-कड़वी दवाईयां पानी में घोलकर देता है, कभी-कभी तो बिना बताये ही इंजेक्शन लगा देता है, रोगी हड़-बड़ा जाता है, डॅाक्टर पर बड़-बड़ाने लगता है। डॉक्टर सुनता रहता है चुप-चाप, करे भी तो क्या पेशा गलत चुन लिया रोगी का, अज्ञानी का इलाज करने का, दुनिया वाले सोचते हैं, बड़ा मजे का काम है, इलाज करना। दो दवाई लिखी, सुई लगाया काम हो गया। लेकिन डॉक्टर को पता है, इलाज करने में कितनी तकलीफ होती है, कितने जतन करने पड़ते है, बीमारी ठीक करने के साथ-साथ साईड इफेक्ट ना हो उसके लिये भी दवाईयां लिखनी पड़ती है, घाव को साफ करके पट्टी भी करनी पड़ती है, और यदि बीमारी गंभीर रूप ले ले तो पेट चीर कर आपरेशन भी करना पड़ता है, सारे उपाय करता है, डॉक्टर कि मरीज बच जाये, स्वस्थ हो जाये, ज्ञानी हो जाये, स्वयं से परिचित हो जाये।
एक आदमी के घर में चोर घुस आया तो उसकी पत्नी ने कहा- मालूम होता है कोई चोर घुस आया है। उस आदमी ने उठ कर उस कोठरी में जाकर पूछा, कौन है? चोर ने कहा, कोई भी नही! आदमी वापस आकर सो गया। जब कोई भी नहीं है, तो व्यर्थ परेशान होने की कोई जरूरत ही नहीं। उस रात आदमी के घर चोरी हो गयी। सुबह उसकी पत्नी ने कहा, नासमझ हो तुम! रात मैंने कहा था चोर मालूम होता। तुमने लौट कर कहा, कोई भी नहीं है। उस आदमी ने कहा, कैसी बातें करती हो? मैं वहां गया, मैंने पूछा भी, अपने कानों से सुना भी कि कोई भी नहीं है। तभी मैं आकर सोया।
ऐसे घर में चोर दुबारा घुसना अपने लिये उपयुक्त समझता है। पंद्रह-बीस दिन बाद चोर वापस आ गया। व्यक्ति स्वभाव से पुरानी भूल नहीं करता, लेकिन पुरानी भूल ही नये ढंग से करता है, स्वरूप वही होता है, ढंग, तरीका बदल जाता है। आदमी अनुभव से कुछ सीखे ऐसा मालूम नहीं पड़ता है। उस आदमी ने जाकर चोर को सीधा पकड़ लिया और कहा कि अब मैं पुरानी भूल न करूंगा कि तुमसे पूछूं कि कौन हो? क्योंकि पिछली बार तुमने बड़ा धोखा दिया कि कहा कि कोई भी नहीं है। चोर को पकड़ कर वह पुलिस थाने की तरफ चला। आधे रास्ते पर चोर ने जाकर कहा, माफ करना, मेरे जूते तो मैं आपके घर ही भूल आया हूं। उस आदमी ने कहा कि जाओ, जूते ले आओ। मैं यहीं रूका हुआ हूं। अब मैं दुबारा इतना पीछे जाने की परेशानी नहीं उठाऊंगा।
वह आदमी गया। स्वभावतः वह कभी नहीं लौटा। मालिक घर आ गया और उसने कहा कि वह चोर धोखा दे गया। फिर कुछ दिन बाद वह चोर उस घर में घुसा। मालिक ने उसे पकड़ लिया और कहा कि ठीक से अपनी सब चीजें सम्हाल लो। ऐसा न हो कि बीच रास्ते पर कहो कि मुझे घर जाना है। पिछली बार बहुत धोखा हो गया। उस चोर ने कहा, जहां तक खयाल पड़ता है, सब चीजें मेरे साथ हैं, बेफिक्र चलें। आधे रास्ते पर उसने कहा, लेकिन माफ करिये, बड़ी भूल हो गयी, कंबल तो मैं सच में ही आपके घर भूल आया हूं।
उस आदमी ने कहा कि फिर वही बात? अब तुम मुझे धोखा न दे सकोंगे। तुम यहीं रूको, मैं तुम्हारा कंबल लेने जाता हूं। यह आदमी हमें हंसने योग्य मालूम पड़ता है। लेकिन यह आदमी हम सबके भीतर बैठा है, हम पूरी जिंदगी वही भूले नये-नये ढंग से दोहराते हैं। बैल की कोल्हू की तरह घूम-फिर कर वहीं पहुंचते हैं, जहां से चले थे। तरीके बदल जाते हैं, परिणाम जस का तस ही रहता है, सभी तरीको से चोर भाग जाता है, और हम धोखे में रह जाते हैं, ऐसे ही जीवन निकला जा रहा है, 5 से 15, 15 से 35, 55 वर्ष के हो गये लेकिन सब कुछ वैसा ही है, मिला कुछ भी नहीं।
कल भी आपको क्रोध आया होगा, परसों भी क्रोध आया था, उसके पहले भी किया था, पिछले जन्म में भी किया होगा। और हर बार संकल्प भी ली कि अब क्रोध न करेंगे। और आज भी आप करेंगे और कल भी आप करेंगे, लेकिन कभी अपने पर हंसेंगे नहीं। हर बार, हर इच्छा के पीछे दौड़ कर देखा है और हर बार जब भी कोई इच्छा पूरी हो गयी है, तभी पाया कि कुछ भी नहीं मिला है। लेकिन फिर आज आप इच्छा के पीछे दौड़ रहे हैं। कल भी आप दौड़ेगे, कल भी आप दौड़े थे। आदमी हर बार वही भूल करता है, सिर्फ ढंग बदल जाते हैं। कल मकान चाहा था, आज कार चाहेंगे, कल कुछ और चाहेंगे। और हर बार जब चाह पूरी हुयी तो पाया कि हाथ में कुछ भी नहीं आया। लेकिन आदमी भूल वही किये चला जा रहा है, हां नाम अवश्य बदल लेता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,