जीवन में सब कुछ दुबारा भी प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु वह क्षण जो बीत गया उसे दुबारा वापस नहीं लाया जा सकता। नक्षत्रों का जो संयोग, ग्रहण का जो प्रभाव बनता है, वह एक बार बीत गया तो दुबारा नहीं आ सकेगा। सूर्य ग्रहण तो आयेगा पर जो नक्षत्र संयोग होता है, वह दुबारा नहीं आता है। वे ठीक उसी प्रकार नहीं होंगे, हो सकता है, आपको अपने जीवनकाल में दस सूर्य ग्रहण का लाभ उठाने का अवसर मिले, परन्तु जो अवसर एक बार चूक गये तो जीवन में मात्र नौ ही ग्रहण बचेंगे और कौन जाने कल कैसी परिस्थिति हो, साधना कर सकें या नहीं कर सकें? इसलिये श्रेष्ठ साधक वे ही हैं जो क्षण के महत्व को पहचान कर निर्णय लेने में विलम्ब नहीं करते हैं।
साधना की प्रक्रिया उतनी कठिन या जटिल नहीं होती, महत्व तो क्षण विशेष का होता है, भारतीय ऋषियों ने काल ज्ञान और ज्योतिष पर इतने अधिक ग्रंथ लिखे हैं तो उसके पीछे मंतव्य यही है कि काल बहुत बलवान होता है। अवतारों के जीवन में भी ग्रहण की महत्ता के प्रसंग देखने को मिलते हैं। भगवान राम ने अपने गुरु से ‘दीक्षा’ ग्रहण के समय ही प्राप्त की थी, इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने भी सान्दीपन ऋषि से दीक्षा जब प्राप्त की थी, तो उस समय ग्रहण काल चल रहा था क्योंकि ग्रहण के समय ही तपस्यांश को, दीक्षा या साधनात्मक प्रवाह को पूरी तरह ग्रहण किया जा सकता है।
साधक के जीवन में अनेक प्रकार की इच्छायें होती हैं। ऐसा स्वर्णिम ग्रहण- संयोग जीवन में सब कुछ दे सकता है- धन, पद, प्रतिष्ठा, यश, मान, ऐश्वर्य, कुण्डलिनी जागरण, पूर्णता, श्रेष्ठता, तेजस्विता और जीवन में वह सब जो हम चाहते हैं, क्योंकि ऐसे अद्वितीय ग्रह संयोग में की गई साधना कभी निष्फल नहीं होती है।
हम जीवन में चाहते है कि दीर्घायु हों, हमारा सुखी परिवार हो, श्रेष्ठ पुत्र-पुत्रियां हों, श्रेष्ठ व्यापार-नौकरी हो, हम आर्थिक दृष्टि से उन्नति करें, किसी प्रकार की कोई राज्य-बाधा हमारे जीवन में नहीं आये, हम पूर्ण स्वस्थ हों, हम ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जान सकें, सद्गुरुदेव व सिद्धाश्रम के दर्शन कर सकें और इसी जीवन में पूर्णत्व प्राप्त कर सकें। कई प्रकार की मनोकामनायें हो सकती हैं साधक के जीवन में। यह ग्रहण वैज्ञानिकों के लिये विशेष कौतुहल का विषय होगा, और वे अपने उपकरणों से इसके प्रभाव, नक्षत्रों के संयोग एवं आकाशीय गतिविधियों का परीक्षण करेंगे। अपने कैमरों से वे चित्र उतारने का प्रयास करेंगे, ठीक वहीं योगी, यति व संन्यासी भी इन क्षणों के इन्तजार में हैं, कि कब वह क्षण आये और वे अपनी मनोवांछित साधना को मंत्र सिद्ध कर सकें।
इस बार साधकों को ‘सिद्धाश्रम प्रणीत विशिष्ट तंत्र सिद्ध मनोकामना पूर्ति साधना’ प्रदान की जा रही है। इस साधना से साधक अपनी कोई भी तीन मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये कर सकता है। यह साधना इतना प्रभावी है, जिसका वार कभी भी खाली नहीं जाता, सही रूप में यह ब्रह्मास्त्र के समान ही है, जो कमान से निकलने के बाद परिणाम लेकर ही आता है, अर्थात् इस साधना का प्रभाव निश्चित ही होता है, लेकिन ध्यान रखना होगा कि किसी को हानि अथवा किसी गलत उद्देश्य से यह साधना करना दुष्कारी भी हो सकता है।
साधक इस साधना को अपनी किसी भी मनोकामना पूर्ति हेतु कर सकता है, चाहे वह व्यापार, नौकरी, मनवांछित वर-वधू प्राप्ति, गृहस्थ सुख, धन-धान्य, वाहन, सुख-सौभाग्य, उच्च शिक्षा, आकर्षण, सम्मोहन, संतान सुख, आरोग्यता, तंत्र ऐसा हो ही नहीं सकता इस साधाना के बाद कोई मनोकामना अधूरी रह जाये—-!!
इस साधना में आवश्यक सामग्री इस प्रकार है- सिद्धाश्रम अनुप्राणित सूर्य नारायण तेजस यंत्र, सिद्धाश्रम शक्ति गुटिका, सूर्य उपदण्ड, श्रृंगम, सूर्य सिद्धि माला। इस साधना के लिये यह आवश्यक है कि गुरु-पूजन एवं यंत्र-पूजन आदि क्रियायें सम्पन्न कर लें। इसके पश्चात् पूरे दिन को ग्रहण से सम्बन्धित विशेष साधनाओं के लिये सुरक्षित रखें। इस प्रकार साधना में स्नान कर पीली धोती धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें, जिससे आपका मुख सूर्य की ओर हो।
सबसे पहले अपने सामने गुरु चित्र, गुरु यंत्र का स्थापन करें। पंचोपचार विधि से पूजन करें। इसके पश्चात् साधना में सफलता के लिये 3 माला गुरु मंत्र की जप करें।
किसी थाली में अक्षत से एक त्रिशूल बनाकर उस पर यंत्र को स्थापित करें। त्रिशूल के तीनों शूलों पर चावल की एक-एक ढेरी बनायें। बीच वाली ढे़री पर सिद्धाश्रम गुटिका, दांईं ढेरी पर सूर्य उपदण्ड एवं बांईं ढेरी पर श्रृंगम को स्थापित करें।
त्रिशूल के ये तीनों शूल तीनों आदि देवों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के प्रतीक हैं और साथ ही उनकी शक्तियां महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली के भी प्रतीक हैं। त्रिदेव व उनकी शक्तियों द्वारा साधक की मनोकामना पूर्ण होती है। इसी भाव से त्रिशूल पर स्थापित यंत्र का कुंकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, आदि से संक्षिप्त पूजन करें।
मंत्र जप प्रारम्भ करने से पूर्व दोनों हाथ जोड़कर सिद्धाश्रम के समस्त योगियों व गुरु मण्डल की अभ्यर्थना करें और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करें-
अब सूर्य सिद्धि माला से निम्न मंत्र की 9 माला सम्पन्न करें, जो कि ग्रहणकाल में ही पूर्ण हो जानी चाहिये।
मंत्र जप क पश्चात् गुरु-मंत्र की दो माला और जप करें। फिर आसन से खड़े होकर गुरु-आरती और समर्पण स्तुति करें। यह निश्चित सफलतादायक साधना है और इसका प्रत्येक साधक को लाभ उठाना चाहिये। अगले दिन सुबह यंत्र, माला, तीनों गुटिका व अक्षत आदि सभी को जल में विसर्जित कर दें। ऐसा करने से यह साधना पूर्ण होती है।
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