मनुष्य का शरीर अपने आप में सृष्टि के सारे क्रम को समेटे हुये है और जब यह क्रम बिगड़ जाता है, तो शरीर में दोष उत्पन्न होते हैं, जिसके कारण व्याधि, पीड़ा, बीमारी का आगमन होता है। इसके अतिरिक्त शरीर की आन्तरिक व्यवस्था के दोष के कारण मन के भीतर दोष उत्पन्न होते हैं, जो कि मानसिक शक्ति, इच्छा शक्ति को हानि पहुँचाते हैं। व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति, बुद्धि क्षीण हो जाती है। इन सब दोषों का नाश सूर्य तत्व को जाग्रत कर किया जा सकता है।
क्या कारण है कि एक मनुष्य उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है और एक व्यक्ति पूरे जीवन सामान्य ही बना रहता है। दोनों के भेद शरीर के अन्दर जाग्रत सूर्य तत्व का है। साधारण मनुष्यों में यह तत्व सुप्त होता है। सूर्य अनन्त शक्ति का स्त्रोत है, अतः इस तत्व के जाग्रत होते ही साधारण मनुष्य भी अनन्त मानसिक शक्ति का अधिकारी बन जाता है। जब यह तत्व जाग्रत हो जाता है, तो बीमारी, पीड़ा, बाधायें उस मनुष्य के पास आ ही नहीं सकती है।
समुद्र मंथन के उपरान्त चौदह रत्नों में से लक्ष्मी भी एक रत्न थी। जिन्हें भगवान विष्णु ने अपनी पत्नी के रूप से स्वीकार किया था और इसी दिवस को हम आज मकर संक्रान्ति पर्व के रूप में मनाते है। यह पर्व विशेष कर भगवान सूर्य व माता लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिवस पर सूर्य की आराधना करने से जहां एक ओर जीवन के दोष दूर होते हैं, पीड़ा, व्याधि, बीमारी का निवारण होता है, वहीं लक्ष्मी की अभ्यर्थना से जीवन की दरिद्रता, दुर्भाग्य, ऋण से मुक्ति मिलती है और लक्ष्मी का स्थायी निवास बन जाता है।
सांसारिक जीवन के समस्त आनन्द, सुख, भोग की पूर्णता इस दीक्षा के माध्यम से संभव है। मकर संक्रान्ति के सुश्रेष्ठ अवसर पर सूर्य देव व लक्ष्मी की अभ्यर्थना सम्पन्न कर दीक्षा ग्रहण करने से व्यक्ति में तेजस्विता, आरोग्यता, मानसिक शक्ति, कायाकल्प, सम्मोहन शक्ति प्राप्त होती है और साथ ही जीवन सुख, सौभाग्य, यश, कीर्ति, धन लक्ष्मी आदि सुस्थितियों से परिपूर्ण होता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,