कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जिनमें निर्णय लेना कठिन हो जाता है, यदि हमें भूतकाल या भविष्यकाल का ज्ञान होता, तो हम आसानी से उन परिस्थितियों में निर्णय ले सकते थे। इसे मनुष्य जीवन की विडम्बना कहें या कुछ और, कि मानव की प्रकृति अत्यन्त रहस्यमय है, न जाने वह कब क्या कर बैठे। आज जो आपका विश्वासपात्र हे, न जाने किस क्षण किसी लालच में आकर आपसे विश्वासघात कर बैठे।
व्यापार से सम्बन्धित व्यक्तियों को तो अत्यन्त सावधानी पूर्वक अपने कार्य को करना पड़ता है, जिससे कि वे सफल व्यापारी बन सकें, उन्हें तो अपने व्यापारिक कार्यों में विश्वास करना ही पड़ता है, हालांकि वे अत्यन्त संशयात्मक स्थिति में रहते हैं, कि जिस व्यक्ति के साथ वे व्यापार करना चाह रहे हैं या जिस व्यक्ति को यह कार्य सौंप रहे हैं, वह मेरे लिये अनुकूल है, कि नहीं, धोखा तो नहीं दे देगा या बीच में लालच में फंस जायेगा या किसी लालचवश यह काम कर रहा हो या किसी विरोधी पक्ष का व्यक्ति हो और भेद लेने आया हुआ हो। इतनी सारी बातों की दुविधा में फंसे हुये, प्रत्येक स्थिति में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये ही वह किसी कार्य में हाथ डाल पाता है।
इतना होने पर भी वह निश्चिंत नहीं हो पाता, क्योंकि वह सोचता रहता है, कि काश! मैं उसके विषय में पूर्ण रूप से जान पाता, उसके अतीत को देख पाता, कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है, तो अपने कार्य के प्रति सजग हो सकता, सचेष्ट हो सकता।
दुर्घटना भरे क्षणों के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता, जिससे पूरा जीवन क्रम परिवर्तित हो जाय, न जाने कब, कहां, कौन सी घटना घटित हो जाय, जो उसके अनुकूल न हो। मानव हर क्षण यही प्रयत्न करता है, कि वह अपने जीवन को सफलतापूर्वक सुरक्षित रूप से व्यतीत कर सके और साथ ही प्रयासरत रहता है, कि वह ऐसे कार्य को सम्पादित करे, जिससे वह सुखी रह सके।
इसी प्रकार की क्रिया वैवाहिक परिस्थितियों में भी होती है, कि जिससे मेरा विवाह हो रहा है वह लड़की या लड़का किस प्रकार का होगा या पिता अपनी पुत्री का हाथ जिसको सौंप रहा है, वह उसका साथ निभा सकता है या नहीं, जिस लड़की को बहू बना कर घर ला रहा है, वह परिवार के अनुकूल है या नहीं?
यह सब कुछ ज्ञात कर सकते हैं आप, यदि आपके पास हो ‘भूत-भविष्य ज्ञान सिद्धि’ और सम्पन्न कर सकते हैं उन सभी कार्यों को, जिनमें आप संशय में पड़ जाते हैं। भूत-भविष्य के बारे में अनेक क्रियायें प्रचलित हैं साधनात्मक क्षेत्र में। जहां ज्योतिष द्वारा हस्त रेखा तथा कुण्डली आदि के द्वारा इसके बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है, वहीं काल साधना, भविष्य सिद्धि, पंचांगुली साधना, कर्ण पिशाचिनी व कई अन्य साधना विधियां हैं, जिनके द्वारा यह ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
इन साधनाओं से मात्र एक ही क्रिया सिद्ध हो सकती है, जैसे कर्ण पिशाचिनी साधना सिद्ध करने से व्यक्ति सिर्फ अतीत को ही जान सकता है या भविष्य साधना से वह सिर्फ भविष्य का ही ज्ञान कर सकता है, अतीत के विषय में उसे कुछ भी भान नहीं रहता है।
परन्तु विन्ध्यवासिनी साधना द्वारा व्यक्ति दोनों क्रियाओं, भूत-भविष्य देखने की क्षमता इस एक ही साधना द्वारा प्राप्त कर लेता है। उसे किसी अन्य प्रकार की साधना सम्पन्न करने की आवश्यकता नहीं होती है।
पत्रिका का उद्देश्य यही है, कि काल के गर्भ में छिपी जो भी साधना विधियां हैं, जो कि जन-सामान्य के लिये उपयोगी हो सकती हैं, उसका प्रकाशन करना। प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति एक दूसरे से अलग होती है, इसलिये एक क्रिया किसी व्यक्ति के लिये लाभदायक है, तो दूसरे को उससे कोई लाभ नहीं भी मिल पाता है। हालांकि कार्य एक ही जैसा है, फिर भी दूसरे व्यक्ति के लिये किसी अन्य साधना को अपनाना पड़ता है। इसी बात को ध्यान में रख कर भूत-भविष्य और वर्तमान को जानने की सर्वथा प्रथम बार यह अद्वितीय साधना प्रस्तुत की जा रही है।
भगवती विन्ध्यवासिनी अपने भक्तों के सुख-दुःख दोनों ही स्थितियों में सहायक होती हैं, वहीं उनकी आराधना कर साधक में भूत-भविष्य तथा वर्तमान को जानने की क्षमता आ जाती है, वह जिसका भी भूत-भविष्य जानना चाहेगा उसके बारे में साधक के सामने टेलीविजन की स्क्रीन की भांति चित्र स्पष्ट होने लगता है, क्षण-क्षण की घटना उसकी आंखों के सामने स्पष्ट रूप से दिखाई और सुनाई देने लग जाती है।
किसी सिद्धि को प्राप्त कर वह साधक शारीरिक रूप से सामान्य अवस्था में ही रहता है। अपितु आन्तरिक रूप से उसमें अलौकिक क्षमता का विकास हो जाता है, कई तथ्यों से यह तो स्पष्ट हो गया है, कि यदि मानव के जीवन में इस प्रकार से कोई अद्वितीय घटना घटित होती है, तो यह उसके जीवन का सौभाग्य ही होता है।
यदि द्वापर युग में, त्रेता युग में या सतयुग में लोगों के पास इस प्रकार की क्षमता थी, तो वर्तमान युग में भी कोई भी व्यक्ति इस क्षमता को प्राप्त कर सकता है। इस साधना क्रम को अपना कर आप भी इस प्रकार की क्षमता से युक्त हो सकते है।
यंत्र के ऊपर दृष्टि स्थिर करें तथा खड़े होकर निम्न मंत्र की 3 माला मंत्र जप करें और भावना करें, कि ब्रह्माण्ड से आपके अन्दर ऐसी रश्मियां समाहित हो रही हैं, जिसके कारण आप भूत तथा वर्तमान व भविष्य को देखने में समर्थ हो जायेंगे।
उपरोक्त मंत्र की 3 माला मंत्र जप के पश्चात् विन्ध्यवासिनी यंत्र को गले में धारण कर लें तथा प्रतिदिन एक माला मंत्र जप 11 दिन तक करें।
यह साधना अत्यन्त विशिष्ट, सरल और सहज है।
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