वैसे तो सम्पूर्ण संसार पंचतत्वों के वश में है, किन्तु राम-कार्य अथवा राष्ट्रकार्य के लिये सर्वस्व-समर्पण करने की दृढ़ भावना रखने वाला साधक इन पंचतत्वों को अपने वश में कर लेता है। वायु, आकाश पृथ्वी, अग्नि और जल इन सभी ने हनुमान जी को समयोचित योगदान दिया। पवनदेव ने उनचास पवन चलाकर, आकाश ने हनुमान जी की गर्जना के स्वर को और अधिक गंभीर एवं भयानक बनाकर पृथ्वी ने देह की गरूता को हल्का करके अग्नि ने हनुमान जी की रक्षा करते हुये लंका को जलाकर तथा जल ने आग बुझाने और श्रम दूर करने में उनका पूर्ण सहयोग दिया।
आठ यौगिक सिद्धियां- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व व शिवत्व, ये आठों सिद्धियां श्री हनुमान जी में सम्यक् रूप से प्रतिष्ठित हैं और जैसा कि शास्त्रेक्त कथन है कि जैसे देव की पूजा साधना करते हैं, वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती है, इसलिये इन आठ योगिक सिद्धियों की प्राप्ति भी श्री हनुमान साधना से ही सम्भव है, इसमें कोई संदेह नहीं।
तारसारोपनिषद में लिखा है-
ऊँ यो ह वै श्री परमात्मा नारायणः स भगवान् मकारवाच्यः शिवस्वरूपो हनुमान् भूर्भुवः स्वः तस्मै वै नमो नमः।
अर्थात् परब्रह्म नारायण शिव स्वरूप हनुमान ही हैं, श्री शिव के ग्यारह रूद्र स्वरूपों में ग्यारहवें रूद्र श्री हनुमान हैं, जो कि शत्रु संहारकर्त्ता, अति बलशाली और इच्छानुसार कार्य करने वाले हैं।
श्री हनुमान की मानस साधना भी सम्भव है, मूर्ति साधना भी की जा सकती है, मान्त्रिक साधना और तान्त्रिक साधना भी हैं, इसी कारण रामायण में लिखा है कि परब्रह्म रूद्र हनुमान की महिमा उन्हीं की कृपा से समझ में आ सकती है, वे सर्व मंगल निधि, सच्चिदानन्द धन परमब्रह्म रूद्र रूप हनुमान तो ओंकार स्वरूप पूर्ण ब्रह्म हैं।
श्री हनुमान जन-जन के देव अपनी सरलता और भक्तों पर सहज कृपा कर देने के कारण ही बने हैं, साधक चाहे किसी भी मत का हो, कोई भी उपासना अपनाता हो, वह श्री हनुमान की साधना सम्पन्न कर सकता है। जीवन में सबसे बड़ा दुःख ‘भय’ है और जो साधक श्री हनुमान का नाम ही स्मरण कर लेता है, वह भय पर विजय प्राप्त कर लेता है।
विशेष बात यह है कि श्री हनुमान अपने भक्त को, अपने साधक को बुद्धि, बल, वीर्य प्रदान करते हैं, अर्थात् मानसिक दुर्बलता हो या शारीरिक दुर्बलता, रोग हो अथवा शोक, श्री हनुमान साधना से इस पर विजय प्राप्त होती है, चरित्र रक्षा, बल बुद्धि का विकास, निष्काम भाव से कार्य करने की प्रेरणा श्री हनुमान चरित्र से ही प्राप्त होती है, वर्तमान युग में तो श्री हनुमान साधना पूर्ण साधना मानी जा सकती है। यह दीक्षा ग्रहण करने से साधक में स्वतः ही महावीरमय चेतना व शक्तियां व्याप्त होने लगती हैं।
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