जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा एक लाइन में आते हैं तो चन्द्र ग्रहण की स्थिति बनती है। जब भी ऐसी स्थिति बने तब साधक के लिये आवश्यक है कि वह इन क्षणों की चेतना पूर्ण रूप से आत्मसात कर अपने जीवन के कमजोर पक्षों को और अधिक सशक्त बनाने हेतु विशिष्ट साधनायें सम्पन्न करें ।
चन्द्रमा अपनी शीतलता, कोमलता, सौम्यता और सौन्दर्य के लिये प्रसिद्ध है, चन्द्रमा साधक को स्वयं की ही भांति सौन्दर्य और सौम्यता के साथ ही साथ समस्त भौतिक व गृहस्थ सुखों को देने वाला है, इसीलिये चन्द्र ग्रहण के दिन का विशेष समय शक्ति को स्वयं में समाहित करने की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इन क्षणों में शक्ति धारण करने पर साधक की अन्तः स्थिति विशेष तरंगों द्वारा ग्रहों से जुड़ जाती है और जो भी साधक इन तरंगों से सामंजस्य स्थापित कर पाता है। वह अपने जीवन में निश्चित ही सफल होता है।
सामान्य रूप से ग्रहण के महत्व को प्रत्येक साधक समझता है। परन्तु इन क्षणों का उपयोग तो सिर्फ चेतनावान साधक ही कर पाते हैं। जिन्हें अपने जीवन में विजय व सफलता प्राप्त करनी होती है, वे हर परिस्थिति में इन क्षणों का उपयोग करते ही हैं।
प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि वह इन विशेष क्षणों का उपयोग अपने जीवन में अभिवृद्धि प्राप्त करने के लिये करें। क्योंकि किसी भी स्थिति पर विजय प्राप्त करने या किसी भी कार्य को पूर्ण सफलता युक्त बनाने के लिये यह सबसे उपयुक्त व चैतन्य समय है। जिन क्षणों में कोई भी पूजा, आराधना, साधना व दीक्षा का अक्षुण्ण लाभ प्राप्त होता है।
सांसारिक जीवन में समस्यायें व परेशानियां अधिक रहती हैं। सांसारिक व्यक्ति के जीवन में तनाव व दुख अत्यधिक दृष्टिगोचर होती हैं। ऐसे साधक, व्यक्ति को इन दिवसों पर विशिष्ट शक्तिपात दीक्षायें अनिवार्य रूप से ग्रहण करनी ही चाहिये।
किसी भी ग्रहण पर कोई भी साधना या दीक्षा प्राप्त की जा सकती हैं, लेकिन भौतिक जीवन की प्राथमिक व अनिवार्य सम्मोहन दीक्षा जिसकी आवश्यकता प्रत्येक साधक को भौतिक जीवन में सबसे अधिक होती ही है।
सम्मोहन भौतिक जीवन की अनिवार्यता तंत्र शास्त्र में 6 प्रकार के कर्म का विशेष उल्लेख आता है। यह कर्म तांत्रोक्त षट्कर्म कहे जाते हैं। 1- शांति कर्म 2- सम्मोहन 3- स्तम्भन 4- विद्वेषण 5- उच्चाटन 6- मारण तंत्र शास्त्र में जो ज्ञान है, उसमें सबसे पहले यही उल्लेख आया है कि प्रत्येक जीव के भीतर एक आकर्षण शक्ति है, प्रत्येक जीव के भीतर एक वशीकरण चेतना है। इसी आकर्षण शक्ति के आधार पर, जीवात्माओं में स्त्री-पुरूष का संयोग होता है, अर्थात् विपरीत रति के प्रति आकर्षण का जन्म होता है। यह क्रिया ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक वरदान है। पक्षियों में पशुओं में अर्थात् चींटी से लेकर हाथी तक सब में आपस में आकर्षण की क्रिया रहती है।
यह सृष्टि आपस में आकर्षण के द्वारा ही बंधी हुयी है और जब तक यह क्रिया रहती है, तब तक ही जीव संसार में चलता रहता है। यह आकर्षण एक पक्षी का एक पक्षी के प्रति, एक जानवर का जानवर के प्रति और एक मनुष्य का मनुष्य के प्रति ही सामान्य रूप से दिखाई देता है, लेकिन इसका क्षेत्र इससे अधिक विशाल है। सारे प्राणी एक दूसरे के आकर्षण में बंधे हुये हैं और इन सब प्राणियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है। मनुष्य में वह शक्ति है कि वह केवल अपनी ही विपरीत रति के अलावा अन्य प्रकार के जीवों को भी अपने वश में कर सकता है। यह वश में करने की क्रिया आकर्षण कहलाती है, सम्मोहन कहलाती है, वशीकरण कहलाती है।
यदि मनुष्य जीवन पर विचार किया जाये तो जीवन की मूल शक्ति ही आकर्षण, सम्मोहन और वशीकरण है। जिसमें इस शक्ति का अभाव होता है, वह अपना जीवन सही रूप से गतिशील नहीं कर पाता है और जिसमें यह शक्ति विशेष रूप से होती है, वे अपने जीवन को श्रेष्ठ रूप से जीते हैं, पशु, मनुष्य और देवता में भी अन्तर सम्मोहन का ही है। मनुष्यों में कुछ व्यक्ति जीवन में उच्च पद, उच्च स्थिति प्राप्त करते हैं और कुछ सामान्य रूप से जीवन जीते रहते हैं, कुछ स्थिति इससे भी भयावह होती है, अर्थात् सामान्य से भी निचले स्तर का जीवन यापन करने को विवश होते हैं। इसके मूल में आकर्षण, सम्मोहन क्रिया ही है। ऋषि दत्तात्रेय ने अपने तंत्र सिद्धान्त में कहा है कि यदि मनुष्य तांत्रिक षट्कर्म का उचित उपयोग करता है तो वह मनुष्य क्या, देवता को भी अपने वश में कर सकता है। जीवन में तीव्र गति से उन्नति करने में समर्थ होता है।
प्रथम क्रिया मनः शक्ति को उच्च स्तर पर ले जाने वाली स्वः सम्मोहन है, दूसरी आकर्षण है। जब इन दोनों शक्तियों का सहयोग होता है तो जीवन परिवर्तित होने लगता है। यह कहा जा सकता है कि मनुष्य मृत्यु से अमृत्यु की ओर, वृद्धावस्था से युवावस्था की ओर, निस्तेज से तेजस्विता की ओर, अवनति से उन्नति की ओर जाने लगता है। सामान्य रूप में जैसे नदी ऊपर से नीचे की ओर जाती है। यदि ऊपर की ओर ले जाना हो तो एक महती क्रिया सम्पन्न करनी पड़ती है। जिसे बांध कहा जाता है, तब वह अपनी क्षमता से विद्युत ऊर्जा प्रदान करती है। इसी तरह जीवन में भी साधनात्मक क्रिया सम्पन्न कर उच्चता की ओर जा सकते हैं। सम्मोहन शक्ति प्रत्येक स्त्री, पुरूष, बालक, वृद्ध के लिये उपयोगी है। यह क्रिया जीवन को उच्चतम स्थिति में ले जाने की क्रिया है।
चन्द्रमा तो शीतलता, सम्मोहन, आकर्षण का प्रतिमूर्त है। जिसकी चांदनी में सम्पूर्ण भू-मण्डल के प्रत्येक जीव में एक अनोखी चेतना जाग्रत होती है। सभी के मन में उमंग, जोश, उत्साह उत्पन्न होने लगता है। चांदनी रात में मन की भावनायें साकार रूप लेने के लिये उल्लसित होने लगती हैं। ऐसी सम्मोहन शक्ति केवल चन्द्रमा में ही होती है।
चन्द्र ग्रहण के चैतन्य क्षणों में ऐसी ही विशिष्ट चेतना शक्ति परम पूज्य सद्गुरुदेव टैलीपैथी के माध्यम से सभी साधक-साधिकाओं के देह में स्थापित करेंगे। जिससे साधक को अपने जीवन में तीक्ष्ण सम्मोहन, आकर्षण, वशीकरण, रस, कामना, भोग, ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी। साथ ही चन्द्र की ही भांति शीतलता, सौम्यता व सौन्दर्य से युक्त हो सकेंगे। साधक सम्मोहन शक्ति के माध्यम से जीवन के प्रत्येक कार्य में सफलता अर्जित करने में सफल होगें।
परिवार, समाज में मान-सम्मान की वृद्धि के साथ प्रेमी-प्रेमिका में आत्मीयता का भाव जाग्रत होगा। दीक्षा प्राप्त करने हेतु अपनी फोटो कैलाश सिद्धाश्रम-जोधपुर में मेल, वाट्सअप अथवा पत्र द्वारा भेज दें। सुबह 7:30 से 8:00 के मध्य अपने पूजा स्थान में ध्यान मुद्रा में बैठें। इस बीच किसी भी तरह की गतिविधि ना करें, इन्हीं चैतन्य क्षणों में सद्गुरुदेव टैलीपैथी दीक्षा की दुर्लभ क्रिया सम्पन्न करेंगे।
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