मंगल सूर्य का मित्र तथा शनि का दुष्प्रभाव नाशक, तेजस्वी, हिंसक ग्रह देव हैं, यदि मंगल प्रबल हो जाय तो मनुष्य की इच्छायें, आकांक्षायें अत्यन्त बढ़ जाती हैं, और प्रबल ग्रह मंगल उन इच्छाओं को पूर्ण कर उसे हर दृष्टि से तेजस्वी ऐश्वर्यशाली तथा सफल बना देता है, इसके विपरीत कमजोर मंगल होने पर व्यक्ति के जीवन में निरन्तर बाधायें, आर्थिक हानि, निरन्तर ऋण की स्थिति, गृह क्लेश, मानसिक चिन्तायें देता है। यदि मंगल को प्रबल और अनुकूल बना लिया जाये तो वह अपने तीव्र प्रभाव के स्वरूप अपने मित्र ग्रहों गुरू और सूर्य जो कि विद्या, ज्ञान, बुद्धि चातुर्य एवं व्यक्तित्व आदि के ग्रह हैं, उन्हें भी प्रभावशाली बना देता है, तथा अपने शत्रु ग्रह शनि शोक, दुःख, पीड़ा, मृत्यु, भय, अकारण बाधा कारक ग्रह है, उनका दुष्प्रभाव समाप्त कर देता है, मंगल को प्रबल प्रभावशाली बना लेने से व्यक्ति के व्यक्तित्व में अग्नि के समान तेज आ जाता है तथा उसके कार्य एक ही बार के प्रयत्न से पूर्ण हो जाते हैं, जीवन में हर समय आगे बढ़ने की इच्छा का विकास होता रहता है, और शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से दृढ़ता आ जाती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि मंगल ऐसा कारक ग्रह है जिसकी नियमित पूजा से ऋण, दुर्भाग्य और दरिद्रता नष्ट हो जाती है तथा आकस्मिक धन, वंश कीर्ति, यश को बढ़ाने वाले पुत्र तथा भूमि, भवन लाभ प्राप्त होता है, शास्त्रोक्त कथन है कि आर्थिक दृष्टि से क्षीण एवं ट्टणी व्यक्ति सर्वाधिक दुःखी व्यक्ति कहा जा सकता है, उसे न तो दिन में ही चैन पड़ता है, और न ही रात्रि को सुख पूर्वक नींद ले सकता है, चिन्तायें उसे क्षीण बनाती रहती हैं, ऋण और ब्याज ऐसा चक्र है, दिन-रात चलता रहता है, ऋण ग्रस्त व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियां क्षीण होती जाती हैं और उसका जीवन एक अत्यन्त साधारण व्यक्ति का जीवन रह जाता है।
समस्त ग्रहों में शनिदेव ही ऐसे ग्रह हैं, जो अत्यन्त क्रोधी होते हुये भी अत्यन्त दयालु कहे गये हैं, इनके विषय में कहा गया है, कि जब ये किसी पर क्रोधित होते हैं, तो उसका सर्वनाश कर डालते हैं। इसी प्रकार जब ये किसी से प्रसन्न होते हैं, तो रंक से राजा भी बना देते हैं।
शनि सभी ग्रहों में महाशक्तिशाली और घातक हैं। कहते हैं कि सांप का काटा और शनि का मारा पानी नहीं मांगता। जब शनि का प्रभाव पड़ा, तो कृष्ण को द्वारिका में शरण लेनी पड़ी भीलों के देश में और राम को, जिनका राज तिलक होने वाला था, सब छोड़कर नंगे पावों वन में दर-दर भटकने को विवश होना पड़ा। शनि के प्रभाव से जब अवतारी पुरूष नहीं बच सके, तो भला सामान्य लोगों का शनि के प्रकोप से बच पाना सम्भव कहां हैं? ये बातें एक सीमा तक सत्य हैं, परन्तु इनके आधार पर भ्रमित हो जाना विद्वता नहीं होगी। वस्तुतः शनि ग्रह की व्याख्या ही अधूरी है। शनि का तात्पर्य है। ‘जीवन की गति’ शनि पीड़ादायक हो सकता है, लेकिन यदि शनि को अनुकूल बना लिया, तो यह सर्वोच्चता भी प्रदान कर सकता है।
इन ग्रहों के वक्री दोष के निवारण के बिना जीवन में सफलता प्राप्त करने की सोचना भी व्यर्थ है। गुरू परम्परा से प्राप्त ऐसी दुर्लभ दीक्षायें जिनसे इन दोनों ग्रह को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है, जितनी तीव्रता से ये विध्वंसकारी सिद्ध होते हैं, उतनी ही तीव्रता से इस दीक्षा के माध्यम से कल्याणकारी भी होते हैं। इन दीक्षाओं को सामान्य साधक भी जिनके ग्रह अनुकूल हों, वे भी ऐसी दीक्षा प्राप्त कर अपने जीवन को सुरक्षित ही नहीं जबकि तीव्र गति से विकास की ओर अग्रसर होता है।
साधक तो वही है, जो समय को देखते हुये निर्णय लें, जो आने वाली समस्याओं का पहले से ही समाधान ढूंढ ले, जिससे बाद में समस्या आने पर स्वतः ही समाप्त हो जाये। और ग्रहों की अनुकूलता बनी रहती है, जिससे जीवन में बाधाओं और समस्याओं का आगमन हो ही नहीं। शनि मंगल वक्री दोष निवारण दीक्षा प्राप्त कर साधक व्यवसाय वृद्धि, नौकरी पदोन्नति, विद्यार्थियों में एकाग्रता और उच्च अंक से उत्तीर्ण होना, पति-पत्नी और परिवार में सामंजस्य, कर्ज से मुक्ति, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। साधक सभी भौतिक सुखों से युक्त होता है।
क्रूर ग्रह मंगल और शनि की वक्री दृष्टि और युति को न्यून करने हेतु जो भी साधाक शिष्य अपने जीवन को सुरक्षित व तीव्र गति से विकास की ओर अग्रसर करना चाहते है वे सद्गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी से उक्त दीक्षा को अवश्य ही प्राप्त करें। 9-10 जुलाई को सिद्धाश्रम शक्ति दिवस कैलाश सिद्धाश्रम दिल्ली में ग्रहण करें।
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