तन्त्र और लक्ष्मीः- लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु सब धर्मों में और यहां तक कि हमारे अपने हिन्दु धर्म में भी कहा गया है कि जीवन का अर्थ भगवान का जप करना है, घर छोड़ कर संन्यासी बन जाओं, यह सब संसार माया जाल है, किन्तु हिन्दु धर्म में ही लक्ष्मी के सम्बन्ध में जितने ग्रन्थ लिखे गये हैं, उतने किसी अन्य विषय पर नहीं लिखे गये, यहां तक कि हमारे यहां भारत में तो पत्नी को लक्ष्मी कहा जाता है, और जब घर में कन्या होती है तो कहा जाता है कि लक्ष्मी का आगमन हुआ है, फिर आप विचार कीजिये कि यह विरोधाभास कैसा है?
वास्तव में सत्य यह है कि विरोध गलत रूप से उत्पन्न किया गया है, और इस विरोध के पीछे कोई ठोस आधार नहीं है, क्योंकि हमारे यहां तो विष्णु की पूजा लक्ष्मी के साथ की जाती है, शंकर की पूजा पार्वती के साथ, राम की पूजा सीता के साथ, कृष्ण की पूजा राधा के साथ, और लक्ष्मी, राधा, पार्वती, सीता ये सब लक्ष्मी के ही स्वरूप हैं, यह सबसे श्रेष्ठतम तत्व है, क्या लक्ष्मी के इन स्वरूपों के बिना भगवान की कल्पना की जा सकती है? क्या कोई पार्वती, लक्ष्मी, सीता और राधा का तिरस्कार कर भगवान की कृपा प्राप्त कर सकता है? अतः वास्तविक अर्थों में तो लक्ष्मी की साधना करना भगवान की साधना करने के समान ही फ़लप्रद है।
इस साधना के माध्यम से शत्रु भय पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है व्यक्ति रोग मुक्त होकर दीर्घायु जीवन प्राप्त करता है, घर का कलह और तनाव समाप्त हो जाता है, खोया हुआ बालक शीघ्र ही घर आ जाता है इसके प्रभाव से सुयोग्य कन्या का विवाह जल्दी सम्पन्न हो जाता है और सबसे बड़ी बात यह है कि सकल कार्य सिद्धि वैभव लक्ष्मी दीक्षा ग्रहण कर साधना को पूरी करते करते ही लक्ष्मी का आगमन हो जता है और साधना समाप्त होने से पहले ही उसको आकस्मिक धन लाभ, जुए में सफलता तथा आर्थिक लाभ होने लग जाता है, यदि वह कोई विशेष इच्छा लेकर इस साधना में बैठता है तो उसकी यह इच्छा पूर्ति अवश्य ही पूर्ण होती है और जीवन में सौभाग्य का उदय होकर भौतिक जीवन में उन्नति और प्रगति निरन्तर होनी प्रारम्भ हो जाती है।
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