जीवन की सफलता इसी में है कि हम सामान्य मनुष्य या साधारण साधक होकर भी उस ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझें, ब्रह्माण्ड का एक भाग बनें और ब्रह्माण्ड में निहित अन्य लोकों की यात्र कर उसके रहस्यों को समझें, और यह सब कुछ संभव है, यह विद्या आसान और सरल है, कुछ विशेष दीक्षाओं के माध्यम से ऐसा सम्भव हो सकता है। ध्वनि कभी भी समाप्त नहीं होती, एक बार हम जिस शब्द का उच्चारण कर लेते हैं, वह पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाता है और फिर कभी वह समाप्त नहीं होती, अपितु ब्रह्माण्ड में वह ध्वनि फैली हुई होती है और हजारों-हजारों वर्षो तक बनी रहती है।
जीवन का मतलब सुख और शांति के साथ समय व्यतीत होना होता है, हम अपने जीवन में प्रयत्न और परिश्रम इसीलिये तो करते हैं कि हमारा जीवन सुखमय हो, हम अपने जीवन में जितना परिश्रम करें, उतना फल हमें मिल जाय, हम अपने जीवन में जो कुछ करें उसका परिणाम प्राप्त हो। पर अधिकतर ऐसा नहीं होता, हम अपने जीवन में देखते हैं कि बहुत अधिक परिश्रम करने के बाद भी बहुत कम सफलता हमें मिल पाती है। व्यापार में हम दिन रात मेहनत करते रहते है और समय आने पर उसका जो लाभ होना चाहिए, वह लाभ नहीं हो पाता, हम अपनी तरफ से परिवार में कोई कलह या मन मुटाव नहीं चाहते, परन्तु फिर भी प्रयत्न करने के बावजूद भी परिवार में जो सुख शांति और आनन्द होना चाहिये वह नहीं हो पाता। तब एक चिंतन आता है कि ऐसा क्या कारण है कि थोड़ा सा परिश्रम करने पर भी लोग अधिक लाभ उठा लेते है और थोड़ी सी मेहनत करने पर भी दूसरे व्यक्ति व्यापार में लक्ष्मी प्राप्त करके आराम की जिन्दगी व्यतीत करने में सफल हो जाते है और हम नहीं कर पाते, जरूर इसके पीछे कोई न कोई रहस्य है, कोई न कोई कारण है, जिसे हम भली प्रकार से समझ नहीं पा रहे हैं।
महाशिवरात्रि का पर्व तो महत्वपूर्ण होता ही है, यदि उस दिन कोई विशेष साधना सम्पन्न करे या अपने गुरु से दीक्षा प्राप्त करे तो उसके जीवन में उज्ज्वलता और श्रेष्ठता जीवन में आती ही है क्योंकि महाशिवरात्रि के दिन भगवान सदाशिव पूर्ण रूप से सद्गुरू रूप में विद्यमान् होते है और अपने शिष्य का कल्याण कर उसको सभी विपदाओं से मुक्त कर सौभाग्य का वरदान प्रदान करते है जिससे उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई बाधा उत्पन्न न हो सके।
जीवन में सब कुछ तो दुबारा भी प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु क्षण जो बीत गया उसे दुबारा वापस नहीं लाया जा सकता, नक्षत्रों का जो संयोग, ग्रहण का जो प्रभाव जैसा इस बार बन रहा है, वह एक बार बीत गया तो दुबारा नहीं आ सकेगा। सूर्य ग्रहण तो आयेगा परन्तु शिवरात्रि की पूर्णता पर जो नक्षत्र संयोग इस बार हैं, वे ठीक उसी प्रकार नहीं होंगे। आपको अपने जीवन काल में दस सूर्य ग्रहण का लाभ उठाने का अवसर मिले, परन्तु जो अवसर एक बार चूक गये तो जीवन में मात्र नौ ही ग्रहण बचेंगे और कौन जाने कल कैसी परिस्थिति हो, साधना कर सकें या नहीं कर सकें। इसलिये श्रेष्ठ साधक वही है, जो क्षण के महत्व को पहिचान कर निर्णय लेने में विलम्ब नहीं करते हैं। सूर्य में अद्भुत शक्तियां निहित हैं और ग्रहण काल में सूर्य अपनी पूर्ण क्षमता से इन शक्तियों, रश्मियों को विकीर्णित करता है, जिसे साधनात्मक विधि द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है, उतना कि जितना हमारे शरीर में क्षमता है।
साधना की प्रक्रिया उतनी कठिन या जटिल नहीं होती, महत्व तो क्षण विशेष का होता है, भारतीय ऋषियों ने काल ज्ञान और ज्योतिष पर इतने अधिक ग्रंथ लिखे हैं, तो उसके पीछे मंतव्य ही यही है कि काल बहुत बलवान होता है। अवतारों के जीवन में भी ग्रहण की महत्ता के प्रसंग देखने को मिलते हैं। भगवान राम ने अपने गुरू से दीक्षा ग्रहण के समय ही प्राप्त की थी, इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने भी सान्दीपन ऋषि से दीक्षा जब प्राप्त की थी, तो उस समय ग्रहण काल चल रहा था। क्योंकि ग्रहण के समय ही तपस्यांश को, दीक्षा या साधनात्मक प्रवाह को पूरी तरह से ग्रहण किया जा सकता है।
महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने पर विजय श्री पाण्डवों के हाथ लगी। उसी प्रकार साधक के जीवन में भी नित्य नूतन महाभारतरूपी स्थितियां आती ही रहती है, जीवन में प्रत्येक को आवश्यकता होती है, धन एवं आयु की यदि किसी के पास धन बहुत है, उसके उपयोग के लिए आयु पर्याप्त नहीं है तो धन व्यर्थ है, और आयु लम्बी होते हुये भी यदि दरिद्रता है तो जीवन अभिशाप बन जाता है, अतः हमारे सुखी एवं स्वस्थ जीवन के लिए इन साधनाओं की नितान्त आवश्यकता बनी रहती है। इसी हेतु सद्गुरुदेव जी ने 8-9 मार्च को कैलाश नारायण धाम में सर्वदाय महादेवोहऽम् दीक्षा प्राप्त करने का सुअवसर साधकों को दिया है सद्गुरुदेव की इच्छा है कि यह अद्वितीय दीक्षा प्रत्येक साधक प्राप्त करें व्यक्तिगत रूप से कैलाश नारायण धाम दिल्ली में दीक्षा प्राप्त कर सकते है और आप अपना वर्तमान फोटो भेज कर टैलीपैथि के माध्यम से भी आप यह विशिष्ट दीक्षा प्राप्त कर सकते है।
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