अक्षय तृतीया वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिवस है, इस दिन चन्द्रमा और सूर्य अपनी आभा के उच्चतम स्तर पर होते हैं। वैदिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन ऋषियों ने सृष्टि का प्रथम यज्ञ प्रारम्भ किया था। इस कारण यह दिवस मानव सृष्टि के लिये सुनहरा दिवस है। पूरे वर्ष में कोई भी तिथि क्षय हो सकती है लेकिन यह तिथि अर्थात् वैशाख शुक्ल पक्ष की यह तृतीया कभी भी क्षय नहीं होती।
अक्षय यानी कि जिसका क्षय न हो, जो चिर स्थायी हो, नित नूतन हो, यौवन से भरा हो, तपन से भरे हुये दिनों में यह माँ भगवती अन्नपूर्णा के ही स्वागत का एक अवसर है, यही फसल कटने का समय भी है और घर में धन-सम्पदा आने का भी। जो लक्ष्मी सैकड़ों – सैकड़ों दानों में खनकती हुई घर में ऐश्वर्य और लावण्य बिखेरती हुई आती हैं, यह उन्हीं के स्वागत का पर्व है, यह उन्हीं को चिरस्थायित्व भी देने का पर्व है, यह उन्हीं को अक्षय कर लेने का पर्व है। इसे नवान्न पर्व भी कहा जाता है।
गृहस्थ व्यक्ति के जीवन का आधार लक्ष्मी होती है, जिसका तात्पर्य है- सौभाग्य, समृद्धि, धन-यश, संतान सुख, शतायु जीवन, सम्पन्नता, लावण्य, आभा, कान्ति तथा राजकीय शक्ति ये सब अक्षय लक्ष्मी के स्वरूप हैं। सांसारिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा रहती है कि उसके पास लक्ष्मी का स्थायी वास हो और उसे हर प्रकार से आर्थिक दृष्टि से पूर्ण सिद्ध् हो समृद्ध, सम्पन्न हो।
मनुष्य को भाग्य और कर्म के अधीन बताया गया है और लक्ष्मी को कर्म प्रभाव प्रकाशिन कहा गया है, तात्पर्य भाग्य उसका साथ देता है जो कर्मशील है और इन दोनों-कर्म और भाग्य के संयोग से ही जीवन में अभूतपूर्व उन्नति होती है। अक्षय तृतीया-जिसे लक्ष्मी सिद्धि का सर्वश्रेष्ठ दिवस माना गया है, अतः इस महापर्व पर रिद्धि-सिद्धि सुख समृद्धि अक्षय स्वर्ण खप्पर दीक्षा ग्रहण करने से व्यक्ति के रोम-रोम में अक्षय लक्ष्मी तत्व समाहित होता है। जीवन में चिर स्थायी लक्ष्मी का वास होता है और व्यक्ति आर्थिक, भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करता है।
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