एक बार जब विश्वामित्र भगवान राम व लक्ष्मण को धनुर्विद्या का ज्ञान दे रहे थे, तब उन्होंने उन दोनों राजपुत्रों को सर्वप्रथम काल (क्षण) का ज्ञान कराया, क्योंकि किसी भी कार्य की पूर्णता काल ज्ञान के बिना असम्भव है। उन्होंने बताया कि जीवन में विजय प्राप्ति तब तक सम्भव नहीं है जब तक तुम्हें समय का ज्ञान नहीं होगा, क्षण का ज्ञान नहीं होगा, क्योंकि प्रत्येक क्षण अपने आप में एक अलग महत्व लिये होता है।
लक्ष्मण ने विश्वामित्र से एक प्रश्न करते हुये कहा-क्या केवल निर्धारित क्षणों पर ही युद्ध किया जा सकता है, यदि क्षण विशेष नहीं हो तो युद्ध में विजय प्राप्त नहीं की जा सकती?
उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा कि विजय श्री अपने आप में अत्यंत कठिन एवं कठोर होती है इसकी अपेक्षा यदि क्षण विशेष का ज्ञान हो, तो वह विजय अपने-आप में पूर्ण सफलता दायक हो जाती है। फिर विश्वामित्र ने लक्ष्मण से कहा तुम अपने धनुष पर बाण चढ़ा दो, और ये जो सामने ताड़ के सात वृक्ष तुम्हें दिखाई दे रहे हैं। जिस क्षण मैं कहूं, तुम इन पर अपना बाण छोड़ देना और एक साथ सातों पेड़ो को बींध देना।
लक्ष्मण शर-संधान के लिये खड़े हो गये और विशेष दिवस के उस विशेष क्षण में जो एक स्वर्णिम क्षण कहलाता है, विश्वामित्र के कहने पर उन्होंने तीर से ताड़ के वृक्षों को बेंध दिया।
फिर विश्वामित्र ने लक्ष्मण से कहा ‘अब तुम स्वयं जाकर देख लो, उन ताड़ के वृक्षों को और निर्णय कर लो, तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा। लक्ष्मण ने पास जाकर देखा, कि पहला पेड़ स्वर्ण के समान अत्यंत कान्तिवान बन गया है, दूसरा पेड़ हल् के स्वर्णिम रंग का हो गया। तीसरा चांदी की तरह बना था, चौथा पेड़ ताम्र वर्ण का बना और सातवां पेड़ बिलकुल वैसा ही था, जैसा पहले था।
तब विश्वामित्र ने लक्ष्मण से पूछा तुम्हें बाण को छोड़ने में और बाण को सातों पेड़ो को बेधने में कितना समय लगा? उसने कहा मुश्किल से क्षणार्द्ध एक क्षण का भी आधा। फिर विश्वामित्र ने लक्ष्मण को समझाते हुये कहा क्षण विशेष की कितनी अधिक महत्ता है, कि पहला पेड़ स्वर्ण का बन गया और सातवां पेड़ वही ताड़ का पेड़ ही रहा या तो सातों के पेड़ स्वर्ण के ही बन जाते या फिर सातों पेड़ ताड़ के ही बने रहते, मगर वह पहला क्षण अधिक मूल्यवान था और दूसरा क्षण उससे न्यून, इसीलिये प्रत्येक क्षण का अपने-आप में महत्व है, यदि उस क्षण में किसी देवी या देवता को आबद्ध कर सकें। तो निश्चित ही साधना में पूर्णता प्राप्त होती ही है। जीवन की सार्थकता विशेष क्षणों में ही छुपी है इस विशिष्ट इन्द्रवत वैभव धनत्रयोदशी साधना के माध्यम से समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये यह प्रयोग सौ टंच खरा है, जिसे देवराज इन्द्र ने भी सिद्ध कर अपने राज्य में धन वर्षा की थी।
धन के बिना यह जीवन अपूर्ण है। आज के युग में जो अर्थहीन है, वह शक्तिहीन कहलाता है, बिना अर्थ के धर्म की अभ्यर्थना करना व्यर्थ है। आज के इस परिवर्तनशील युग में किसी ऐसे सक्षम उपाय की आवश्यकता प्रत्येक गृहस्थ व संन्यासी को पड़ती है, जिससे वे अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण कर जीवन की प्रत्येक समस्या से मुक्ति पा सकें, इसी लिये देवराज इन्द्र ने इस महत्त्वपूर्ण साधना को धन त्रयोदशी के दिन सम्पन्न कर अपने राज्य में धन की वर्षा की।
देवराज इन्द्रकृत यह साधना अचूक फलदायी है, इस साधना से शीघ्र धन-लाभ की प्राप्ति होती है। और जीवन की समस्त दरिद्रता, अभाव और विषाद की समाप्ति के साथ धनागम के नये स्रोत बनते ही हैं।
इस साधना को 09 नवम्बर धन त्रयोदशी सोम प्रदोष व्रत सोमवार की सांय 6-00 से 8-09 बजे के मध्य सम्पन्न करना ज्यादा श्रेयस्कर सिद्ध होगा, यदि इस दिन न कर सकें, तो किसी भी सोमवार को कर सकते हैं।
साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह कर पीले आसन पर बैठ जायें, तथा संक्षिप्त गुरू पूजन और गुरू मंत्र की 4 माला जप करें। अपने सामने बाजोट पर धनदायी कमला यंत्र व पारद लक्ष्मी चैतन्य गुटिका का स्नान कराकर उनका कुंकुंम, अक्षत, पुष्प, धूप व दीप से पूजन करें। फिर ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ मंत्र का जप करते हुये 108 बार कमला यंत्र पर गुलाब पंखुडि़यां व अक्षत चढ़ायें।
विनियोग
ऊँ अस्य श्री महालक्ष्मी कवच मंत्रस्य ब्रह्मा
ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री महालक्ष्मीः देवता, श्री
महालक्ष्मी प्रीतये पाठे विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास
ऊँ श्री ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, गायत्री
छन्दसे नमः मुखे, श्री महालक्ष्मी देवतायै नमः हृदये,
श्री महालक्ष्मी प्रीतये पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
कवच
शिरो में विष्णु-पत्नी च, ललाटे चक्षुषी
सु-विशालाक्षी,श्रवणे सागराम्बुजा घ्राणं पातु
महालक्ष्मीः कण्ठं बैकुण्ठ-वासिनी वक्षः पातु
च श्रीदेवी हृदयं हरि सुन्दरी। कुक्षिं च वैष्णवी
पातु, नाभिं भुवन-मातृका कटिं पातु वाराही,
सक्थिनी देव-देवता उरू नारायणी पातु,
इन्दिरा पातु जंघे मे, पादौ भक्त नमस्कृता
नखान तेजस्विनी पातु, सर्वांग करूणामयी।।
इस कवच का 5 पाठ कर दक्षिणा चढ़ायें।
इन्द्रवत वैभव मंत्र का धनत्रयोदशी माला से 5 माला जप करें।
लक्ष्मी आरती एवं गुरू आरती सम्पन्न करने से पूर्व घर के भीतर पांच दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित करें। साधना पूर्ण होने पर अमावस्या के दिन यंत्र व माला को नदी में प्रवाहित कर दें। और पारद गुटिका को लाल धागे में पिरोकर गले में धारण करें।
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