ये सभी क्रियायें, ये सभी स्थितियां केवल मातंगी साधना की सिद्धि से ही प्राप्त हो सकती है। यदि हम मातंगी साधना को भली प्रकार से सम्पन्न कर लें, तो निश्चय ही ये सारी स्थितियां स्वतः ही प्राप्त हो जाती हैं। विश्वामित्र ने कहा है- बाकी नौ महाविद्याओं का भी समावेश मातंगी साधना में स्वतः ही हो गया है। चाहे हम बाकी नौ साधनायें नहीं भी करें और केवल मातंगी साधना को ही सम्पन्न कर लें, तो भी अपने आप में पूर्णता प्राप्त होती है। शास्त्रों में मातंगी साधना को सर्वोच्चता और श्रेष्ठता दी गई है।
मातंगी साधना को सम्पन्न करने के बाद साधक शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तीनों ही दृष्टियों से पूर्ण स्वस्थ, सुखी और सम्पन्नता से राज-राजेश्वरी युक्त जीवन प्राप्त कर सकता है और गृहस्थ जीवन भी पूर्णतः सुखमय होता है, अतः इस प्रयोग के द्वारा साधक सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति करनें में सक्षम हो जाता है।
किसी भी मंगलवार या रविवार के दिन इस साधना को सम्पन्न कर सकते हैं। इस साधना को कोई भी स्त्री या पुरूष सिद्ध कर सकता है।
साधक को चाहिये कि वह सूर्योदय से पूर्व भोर काल में स्नान आदि से निवृत्त हो, उत्तर दिशा की ओर मुंह कर, आसन पर बैठ जाये और अपने सामने गुरू चित्र और राज-राजेश्वरी दरिद्रता विनाशक मातंगी यंत्र एक लकड़ी के बाजोट पर स्थापित कर दे तथा उसका कुंकुम, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से पूजन सम्पन्न करें।
फिर साधक वैभव लक्ष्मी जीवट को आसन के नीचे दबाकर 1 माला गुरू मंत्र जप सम्पन्न करें तथा राज-राजेश्वरी माला से 25 मिनट तक निम्न मंत्र का जप करें-
ऐसा तीन दिन तक करें, तीन दिन बाद मंत्र जप सम्पन्न होने के पश्चात् गुटिका, यंत्र एवं माला को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। इसमें साधक पीले वस्त्र धारण करें। इस प्रकार यह प्रयोग पूर्ण हो जाता है और साधक को यथा शीघ्र अनुकूल फल प्राप्त होने लगते हैं, आवश्यकता है, तो साधना में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ मंत्र-जप सम्पन्न करने की।
राज-राजेश्वरी वैभव लक्ष्मी मातंगी दीक्षा प्राप्त करने से सांसारिक जीवन में लक्ष्यों की प्राप्ति और शारीरिक बल, शक्ति, ऊर्जा और चेतना की प्राप्ति होती है। इस दीक्षा के माध्यम से कार्य सुगम और सरलता से बन जाते हैं। आप स्वयं अनुभव करेंगे कि जो काम आप पिछले कई वर्षां में नही कर सकें, वो कुछ ही दिनों में पूर्ण करने में सफल हो जाते हैं।
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