अपराजेय होने का तात्पर्य है कि आपके दोष दूर हों जाये, आप स्वयं को पहचान सकें, अपने संकल्प के अनुसार कार्य कर सकें, आपके शत्रु यदि आपको हानि पहुंचाने का प्रयास करें तो आपको हानि न पहुंचे, जो भी शत्रु ऐसा करने का प्रयास करें वह स्वयं में ही इतना पीडि़त हो जाये कि उसका ध्यान ही आप पर ना जाये।
प्रत्येक व्यक्ति को सफलता नहीं मिल पाती, वह जी तोड़ परिश्रम करने के बाद भी जीवन में सफल नहीं हो पाता। जिस हिसाब से प्रति वर्ष उन्नति होनी चाहिये, नहीं हो पाती है, केवल व्यापार प्रारंभ कर देने से या नौकरी पर जाने से ही भौतिक संपदा नही आती है। इसके लिये किसी दैवीय ऊर्जा शक्ति की भी आवश्यकता पड़ती है।
मनुष्य को यह जीवन इसलिये प्राप्त हुआ है, कि वह इस जीवन में पूर्णता प्राप्त करें, अपने जीवन में इन्द्रधनुष के समान सभी रंगों को देखे, उन्हें अनुभव करे और इन अनुभवों को ग्रहण करने के पश्चात् जीवन में प्रगति के उस स्तर पर पहुंच जाये कि उसे पूर्ण संतुष्टि प्राप्त हो सके। जीवन इसलिये नहीं मिला है, कि आप एक लीक पर चलते जायें, अपितु कुछ ऐसा करने को जिससे कि आगे बढ़ने का मार्ग निरंतर खुलता रहे। उस सफल मार्ग पर जो केवल उन्नति की ओर ले जाता है, उसका आधार निश्चय ही कुछ सहयोगी, कुछ प्रेरणा प्रभूत व्यक्तित्व अवश्य होते हैं, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति यह पहचान नहीं पाता है कि कौन उसके लिये कितना सहयोगी है कौन उसका भला कर सकता है, उसे किसको कितना सहयोग देना है, किसके प्रति पूर्ण आस्था से कार्य करना है। साधारण व्यक्ति तो कोल्हू के बैल की तरह एक ही लीक पर चक्कर लगाता रहता है और उसका जीवन पूरा हो जाता है, तब बुढ़ापे में वह सोचता है, चिन्ता करता है कि यह जीवन तो पूरा होने को आ गया, कुछ कर ही नहीं पाया।
ऐसे ही पूर्ण फलदायी ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, नीति, प्रेम, गुरू-भक्ति, शत्रु दमन, षोड़श शक्तियों से युक्त कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व निश्चित रूप से आपके भीतर पूर्ण आत्मविश्वास भरने में सहायक है, आपके एक-एक अणु को क्रियाशील करने में समर्थ है और योगेश्वरमय चेतना शक्ति का सही उपयोग आपको पूर्ण क्रियाशील बनाकर उन्नति के विशेष मार्ग की ओर ले जाता है। आप गृहस्थ जीवन के कुरूक्षेत्र में अर्जुन रूपी कर्म शक्ति से युक्त जीवन में रोग-शोक, संताप, दुःख को समाप्त करने और शुद्धता, पवित्रता, सत्यता एंव षोड़श शक्ति युक्त तारा धनदा लक्ष्मी शक्ति से प्रगति के नये मार्ग की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर ‘षोड़श कला पूर्ण तारा धनदा लक्ष्मी दीक्षा’ उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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