यदि किसी को मंजिल नहीं मिली तो इसका यह अर्थ नहीं है, कि मंजिल है ही नहीं। हाँ यह अवश्य सत्य है, कि मंजिल तक का रास्ता लम्बा है और वहाँ तक पहुँचते-पहुँते व्यक्ति निराश हो जाता है। दैविय कृपा अथवा हृदय भाव में देवतत्व जागरण नहीं होने के कारण ऐसी स्थितियाँ आती है। जो रास्ता मंजिल तक जाता हो, वह किसी कारण देव कृपा से बंद पड़ा हो। मनुष्य के मस्तिष्क तन्तुओं में स्वयं के ही विकारों के फलतः कई ऐसी ग्रंथियां पड़ जाती है, जो साधनाओं में सिद्धि मार्ग को अवरूद्ध कर देती है।
ऐसी दारूण स्थिती के निवारण हेतु, सिद्धाश्रम की उसी दैविक चेतना से परम पूज्य सद्गुरूदेव कैलाश श्रीमाली जी सिद्धाश्रम चेतना दिवस पर सभी साधकों को यह विशेष ‘दिव्याभिषेक युक्त सिद्धाश्रम शक्ति चेतना दीक्षा’ प्रदान करेंगे। यह दीक्षा ग्रहण करने से साधक कोई सामान्य व्यक्तित्व रह ही नहीं सकता, उसके अन्दर राम, कृष्ण, इन्द्र, कुबेर, गणेश, देवताओं के गुण स्वतः ही फलने-फूलने लगते हैं। जिससे साधक का दिव्याभिषेक होने के साथ-साथ सिद्धाश्रम के अलौकिक गुणो से परीपूर्ण तथा सिद्धाश्रम दर्शन के योग्य हो जाता है।
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