दैवीय संरक्षण कैसे प्राप्त हो, इसके लिए साधक को थोड़ा सा प्रयास करने की एवं उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है। इन दोनों की समन्वित क्रिया से साधक दैवीय कृपा प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है। वैसे भी प्रत्येक देवी, देवता मनुष्य को हर पल, हर क्षण, आवश्यकता केवल इस बात की है, कि हम इनकी कृपा के अधिकारी बने। आवश्यकता इस बात की है कि हम उनसे सहयोग एवं आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रबल भावना एवं पात्रता रखें। जीवन में चाहे भौतिक पक्ष में उन्नति की बात हो अथवा आध्यात्मिक उन्नति एवं पूर्णता प्राप्त करने की बात हो, उसमें महाविद्या साधना का महत्त्व सर्वोपरि है। अलग-अलग कार्यो हेतु शिव को वरदान स्वरूप उनकी शक्ति स्वरूप से इन दस महाविद्या की उत्पति मानी गयी है, जिनकी साधना साधक अपनी समस्या के निवारण के लिए उचित मुहुर्त पर सम्पन्न कर सफल व्यक्ति बन सकता है।
दस महाविद्याओं में भगवती धूमावती साधना स्थायी सम्पति की प्राप्ति, प्रचण्ड शत्रुनाश, विपत्ति निवारण, संतान की रक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण साधना है। वास्तव में इस साधना को सम्पन्न करना जीवन की अद्वितीयता है। इस साधना को सम्पन्न करने के उपरान्त व्यक्ति भौतिक समृद्धि के साथ-साथ जीवन में पूर्णता प्राप्त कर लेता है। शत्रु बाधा व अन्य कोई भी बाधा उसके सम्मुख टिक नहीं पाती है।
धूमावती साधना मूल रूप से तांत्रिक साधना है। भूत-प्रेत, पिशाच तो धूमावती साधना से इस प्रकार गायब होते है, जैसे जल को अग्नि में देने पर जल वाष्प रूप में विलिन हो जाता है। क्षुधा स्वरूप होने के कारण अर्थात् भूख से पीड़ित होने के कारण इन्हें अपने भक्षण के लिए कुछ न कुछ अवश्य चाहिए। अतः जब साधक इनकी साधना करता है, तो प्रसन्न होकर साधक के समस्त बाधारूपी शत्रुओं का भक्षण कर लेती है।
विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा।
विपुला कुन्तला रूक्षा विधवा विरलद्विज।।
काक ध्वजरथारूढ़ा विलम्बित प्योधरा।
सूर्य हस्ताति रक्ताक्षी वृतहस्ता परान्धिता।।
वृद्ध धोणा तु श्रुषं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा।।
अस्य धूमावती मंत्रस्य पिप्पलाद ऋषिः
विवृच्छन्दः जेष्ठा देवता धूं बींज, स्वाहा शक्तिः
धूमावती कीलकम् ममाभीष्ट सिद्धद्धयेयर्थे
(शत्रुहनने ) जपे विनियोगः।।
धूं धूं हृदयाय नमः।। (हृदय को स्पर्श करें)
धूं षिरसे स्वाहा।। (सिर को स्पर्शकरें।
मां शिखायै वषट्।। (शिखा को स्पर्श करें)
वं कवचाय हुं।। (पूरे शरीर का स्पर्श करें)
तीं नेत्रत्रयाय वौषट्।। (नेत्रों का स्पर्शकरें)
स्वाहा अस्त्राय फट्।। (पूरे शरीर का स्पर्श करें)
इसके पश्चात कर न्यास सम्पन्न करें-
धूं धूं अंगुष्ठाभ्यां नमः।।
धूं तर्जनीभ्यां नमः।।
मां मध्यमाभ्यां नमः।।
वं अनामिकाभ्यां नमः।।
तीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।।
स्वाहा करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः।।
प्रयोग सम्पन्न होने के पश्चात् यंत्र तथा माला नदी में प्रवाहित कर दें
धूमावती साधना का यह विधान अत्यन्त विलक्षण एवं विशिष्ट फल प्रदायक विधान है, बाधाएं चाहे कितनी ही विकराल अथवा विशाल हो, धूमावती साधना से बाधाओं पर विजय प्राप्त होती है। साधना का प्रयोग गलत कार्यो के लिए न करें, इसमें लाभ के स्थान पर हानि भी उठानी पड़ सकती है।
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