जब साधक साधना पथ पर अग्रसर होता है, तो वह अपने ही दोषों के कारण सफलता नहीं प्राप्त कर पाता और गुरु के प्रति संशय करने लगता है-‘मैंने तो दीक्षा ली है, फिर भी मेरा कार्य सम्पन्न नहीं हो रहा है’? वह यह नहीं समझ पाता है, कि जंग लगी मशीन अचानक ही नहीं कार्य करने लग जाती है अपितु पहले उसकी जंग समाप्त करनी पड़ती है। फिर वह उपयोग के लिए तैयार होती है। इसी प्रकार से दीक्षा द्वारा प्राप्त ऊर्जा उसके अवरोधों को समाप्त करने में ही क्षय हो सकती है।
अगर आपने पूर्ण मनोयोग से दीक्षा ली है, तो उसका परिणाम अवश्य ही प्राप्त होगा, ऐसा हो ही नहीं सकता, कि आप कार्य सम्पन्न करें और उसका फल प्राप्त न हो, आवश्यकता है धैर्य, श्रद्धा, विश्वास और समर्पण की। दीक्षा आज के भौतिकता के युग में अमृत के समान है, जिसे व्यक्ति यदि पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और समर्पण के साथ ग्रहण करता है, तो यह सम्भव ही नहीं है, कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो।
दीक्षा जीवन का सबसे बड़ा वरदान है, सम्पूर्ण जीवन में समस्त प्रकार से पूर्णत्व के सम्पूर्ण विधान से युक्त है, गुरु द्वारा शिष्य को दिया गया उपहार है, जीवन को गतिशील करने के लिए ठोस नीव का निर्माण है। बुद्ध पूर्णिमा के इस विशेष अवसर पर परम पूज्य गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी ‘चन्द्र प्रदीप्त अन्तः मन ऊर्जा जागरण बुद्धत्व दीक्षा’ प्रदान करेंगे। जिससे साधक के चेहरे का तेज तो बढ़ता ही है क्योंकि जब आंतरिक परिवर्तन होता है, तो उसका असर बाहर भी पड़ता ही है। साधक को दिव्य आनन्द का जब एक बार स्वाद लग जाता है, तो उसका जीवन धन्य धन्य हो जाता है। इस दीक्षा को प्राप्त करना अपने जीवन में आनन्द और परमानन्द को स्थापित कर लेने जैसा ही है।
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