इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि ग्रहों का प्रभाव मनुष्य तो क्या देवताओं पर भी पड़ता हैं और देवता भी उन ग्रहों के प्रभाव से सुख और दुःख को भोगते ही है। वैज्ञानिको ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि आकाश मण्डल में स्थित ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता ही है। और उसकी वजह से मानव को विविध प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते है। जब भी शनि ग्रह का प्रभाव मनुष्य जीवन में आता है तो उसका घर, उसका परिवार, उसका कुटुम्ब उसका दाम्पत्य जीवन तहस-नहस हो जाता है, उसका आर्थिक स्त्रोत समाप्त हो जाता है और उसके जीवन में कुछ नही बचता और एक प्रकार से वह गरीब बनकर दर-दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर हो जाता है। जब साढ़े साती प्रारम्भ होती है, तो प्रथम ढ़ाई वर्ष में यह सिर पर द्वितीय ढाई वर्ष में हृदय स्थान पर और अंतिम ढाई वर्ष में उदर के नीचे के भाग पैरों तक प्रभाव डालती है।
जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य का जीवन ग्रहों के अधीन होता है। सभी ग्रहों में से शनि को प्रबल ग्रह माना गया है। शनि जीवन की विषम स्थितियों का नियता कर्ता हैं। शनि की महादशा से ही जीवन में दरीद्रता, कलिष्ट रोग, मानसिक तनाव, कष्ट, क्लेश, कुसंस्कारी संतान, पारिवारिक मतभेद, शत्रु बाधा, डर-भय, अकालमुत्यु जैसे विषम स्थितियाँ जीवन में व्याप्त हैं तो यह शनि संताप का ही प्रभाव है। इसी के फलस्वरूप जीवन में किसी भी प्रकार का नूतन सृजन, सुमंगलमय कार्य नहीं हो पाता।
जहाँ एक ओर शनि देव मृत्यु प्रधान ग्रह तथा अत्यन्त क्रोधी माने गये है, वहीं शनि देव दूसरी ओर शुभ-श्रेष्ठ दयालुतामय हैं। जब यह क्रोधित होते हैं तो सर्वनाश कर देते है और जब प्रसन्न होते हैं, तो रंक से भी राजा बना देते हैं। इनकी कृपा का पात्र बनने हेतु शनि जयंती के शुभ अवसर पर यह ‘शापोद्धार-शनि दोष शमन बाधा निवारण दीक्षा’ ग्रहण करने से समस्त प्रकार की बाधाऐं एवं भय दूर हो जाते हैं और व्यक्ति पूर्ण सुरक्षित हो जाता है। साथ ही शतायु जीवन, सुसंस्कारमय संतान, कार्य-व्यापार, धन लक्ष्मी आदि सुस्थितियां प्राप्त होती रहती हैं।
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