यह बहुत मजे की बात है कि शांति की जरूरत प्राथमिक है, ज्ञान को पाने में। ज्ञान पा लेने के बाद किसी चीज की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन वे बाद की बातें हैं। और बाद की बातें पहले कभी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो नुकसान होता है। नुकसान यह होता है कि हम सोचने लगते हैं कि जब बाद में कोई फर्क नहीं पड़ेगा तो अभी भी क्या हर्ज है। जैसे चाँद निकला हो और सागर में लहरें हों, तो चाँद का प्रतिबिंब तो बनेगा ही, लेकिन सागर में हजार चाँद के टुकड़े टूटकर फैल जाएंगे और अगर किसी ने आकाश का चाँद न देखा हो तो सागर में देखकर पता न लगा पाएगा कि चाँद कैसा है। हजार टुकड़े होकर चाँद लहरों पर फैल जाएगा; चांदी बिखर जाएगी उसकी, लेकिन चाँद का बिंब नहीं पकड़ में आएगा। एक दफा बिंब पकड़ में आ जाए कि चाँद कैसा है, फिर तो सागर में बिखरी हुई लहरों में भी हम पहचान लेते हैं कि तुम ही हो। लेकिन एक बार हम उसे देख तो लें। एक बार उसकी शक्ल हमारे खयाल में आ जाए, फिर तो सभी शक्लों में वह मिल जाता है। लेकिन एक दफा पहचान ही न हो पाए, तो वह कहीं भी हमें नहीं मिलता है। मिलता है रोज, लेकिन हम रिकग्नाइज नहीं कर पाते, हम पहचान नहीं पाते कि यही है।
असल में, जिसे हमने जीवन समझ रखा है, उस पूरे जीवन को ही खोने का खतरा है। जैसे हम हैं, वैसे ही हम कुंडलिनी जाग्रत होने पर न रह जाएंगे; सब कुछ बदलेगा-सब कुछ-हमारे संबंध, हमारी वृत्तियां, हमारा संसार, हमने कल तक जो जाना था वह सब बदलेगा। उस सबके बदलने का ही खतरा है। लेकिन अगर कोयला को हीरा बनना हो, तो कोयले को कोयला होना तो मिटना ही पड़ता है। खतरा बहुत है। कोयले के लिए खतरा है। अगर हीरा बनेगा तो कोयला मिटेगा तो ही हीरा बनेगा। शायद यह आपको खयाल में न हो कि हीरे और कोयले में जातिगत कोई फर्क नहीं है; कोयले और हीरा एक ही तत्व हैं। कोयला ही लंबे अरसे में हीरा बन जाता है। हीरे और कोयले में केमिकली कोई बहुत बुनियादी फर्क नहीं है। लेकिन कोयला अगर हीरा बनना चाहे तो कोयला न रह सकेगा। कोयले को बहुत खतरा है। और ऐसे ही मनुष्य को भी खतरा है- परमात्मा होने के रास्ते पर कोई जाए, तो मनुष्य तो मिटेगा। नदी सागर की तरफ दौड़ती है। सागर से मिलने में बड़ा खतरा है। नदी मिटेगी; नदी बचेगी नहीं। और खतरे का मतलब क्या होता है ? खतरे का मतलब होता है, मिटना।
तो जिनका मिटने की तैयारी है, वे ही केवल परमात्मा की तरफ यात्रा कर सकते हैं। मौत इस बुरी तरह नहीं मिटाती जिस बुरी तरह ध्यान मिटा देता है। क्योंकि मौत तो सिर्फ एक शरीर से छुड़ाती है और दूसरे शरीर से जुड़ा देती है। आप नहीं बदलते मौत में। आप वही के वही होते हैं जो थे, सिर्फ वस्त्र बदल जाते हैं। इसलिए मौत बहुत बड़ा खतरा नहीं है। और हम सारे लोग तो मौत को बड़ा खतरा समझते हैं। तो ध्यान तो मृत्यु से भी ज्यादा बड़ा खतरा है; क्योंकि मृत्यु केवल वस्त्र छीनती है, ध्यान आपको ही छीन लेगा। ध्यान महामृत्यु है।
कपड़े ही नहीं बदलते, सब बदल जाता है। लेकिन जिसे सागर होना हो जिस सरिता को, उसे खतरा उठाना पड़ता है। खोती कुछ भी नहीं है, सरिता जब सागर में गिरती है तो खोती कुछ भी नहीं है, सागर हो जाती है। और कोयला जब हीरा बनता है तो खोता कुछ भी नहीं है, हीरा हो जाता है। लेकिन कोयला जब तक कोयला है तब तक तो उसे डर है कि कहीं खो न जाऊं; और नदी जब तक नदी है तब तक भयभीत है कि कहीं खो न जाऊं। उसे क्या पता कि सागर से मिलकर खोएगी नहीं, सागर हो जाएगी। वही खतरा आदमी को भी है। यह भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है। जितना खतरा उठाते हैं हम, उतने ही जीवित हैं; और जितना खतरे से भयभीत होते हैं, उतने ही मरे हुए हैं। असल में, मरे हुए को कोई खतरा नहीं होता। एक तो बड़ा खतरा यह नहीं होता कि मरा हुआ मर नहीं सकता है अब। जीवित जो है वह मर सकता है। और जितना ज्यादा जीवित है, उतनी ही तीव्रता से मर सकता है। एक पत्थर पड़ा है और पास में एक फूल खिला है। पत्थर कह सकता है फूल से कि तू नासमझ है! क्यों खतरा उठाता है फूल बनने का? क्योंकि सांझ न हो पाएगी और मुरझा जाएगा। फूल होने में बड़ा खतरा है, पत्थर होने में खतरा नहीं है। पत्थर सुबह भी पड़ा था, सांझ जब फूल गिर जाएगा तब भी वहीं होगा। पत्थर को ज्यादा खतरा नहीं है, क्योंकि पत्थर को ज्यादा जीवन नहीं है। जितना जीवन, उतना खतरा है। इसलिए जो व्यक्ति जितना जीवंत होगा, जितना लिविंग होगा, उतना खतरे में है। ध्यान सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि ध्यान सबसे गहरे जीवन की उपलब्धि में ले जाने का द्वार है।
एक सम्राट ने एक महल बना लिया और उसमें सिर्फ एक ही द्वार रखा था कि कहीं कोई खतरा न हो। कोई खिड़की-दरवाजे से आ न जाए दुश्मन। एक ही दरवाजा रखा था, सब द्वार-दरवाजे बंद कर दिए थे। मकान तो क्या था, कब्र बन गई थी। एक थोड़ी सी कमी थी कि एक दरवाजा था। उससे भीतर जाकर उससे बाहर निकल सकता था। उस दरवाजे पर भी उसने हजार सैनिक रख छोड़े थे। पड़ोस का सम्राट उसे देखने आया, उसके महल को। सुना उसने कि सुरक्षा का कोई इंतजाम कर लिया है मित्र ने, और ऐसी सुरक्षा का इंतजाम किया है जैसा पहले कभी किसी ने भी नहीं किया होगा। तो वह सम्राट देखने आया। देखकर प्रसन्न हुआ। उसने कहा कि दुश्मन आ नहीं सकता, खतरा कोई हो नहीं सकता। ऐसा भवन मैं बना लूंगा। फिर वे बाहर निकले। भवन के मालिक ने बड़ी खुशी विदा दी। और जब मित्र सम्राट अपने रथ पर बैठ रहा था तो उसने फिर दुबारा कहाः बहुत सुंदर बनाया है, बहुत सुरक्षित बनाया है; मैं भी ऐसा ही बना लूंगा बहुत-बहुत धन्यवाद। लेकिन सड़क के किनारे बैठा एक भिखारी जोर से हंसने लगा। तो उस भवनपति ने पूछा कि पागल, तू क्यों हंस रहा है? तो उस भिखारी ने कहा कि मुझे आपके भवन में एक भूल दिखाई पड़ रही है। मैं यहां बैठा रहता हूँ , यह भवन बन रहा था तब से। तब से मैं सोचता हूँ कि कभी मौका मिल जाए आपसे कहने का तो बता दूंः एक भूल है। तो सम्राट ने कहा, कौन सी भूल? उसने कहा, यह जो एक दरवाजा है, यह खतरा है। इससे और कोई भला न जा सके, किसी दिन मौत भीतर चली जाएगी। तुम ऐसा करो कि भीतर हो जाओ और यह दरवाजा भी बंद करवा लो, ईंटें जुड़वा दो। तुम बिलकुल सुरक्षित हो जाओगे। फिर मौत भी भीतर न आ सकेगी। उस सम्राट ने कहा, यह दरवाजा बंद हुआ तो मैं मर ही गया; वह तो कब्र बन जाएगी। उस भिखारी ने कहा, कब्र तो बन ही गई है, सिर्फ एक दरवाजे की कमी रह गई है। तो तुम भी मानते हो, उस भिखारी ने कहा कि एक दरवाजा बंद हो जाएगा तो यह मकान कब्र हो जाएगा? उस सम्राट ने कहा, मानता हूँ, तो उसने कहा कि जितने दरवाजे बंद हो गए, उतनी ही कब्र हो गई है; एक ही दरवाजा और रह गया है।
सब बंद होने से मौत हो जाएगी-सब खुले होने से जीवन हो गया है। मैं तुमसे कहता हूँ कि सब खुले होने से जीवन हो गया है। खतरा बहुत है, लेकिन सब जीवन हो गया है। खतरा है, इसीलिए निमंत्रण है; इसीलिए जाएं। और खतरा कोयले को है, हीरे को नहीं; खतरा नदी को है, सागर को नहीं; खतरा आपको है, आपके भीतर जो परमात्मा है उसको नहीं। अब सोच लेंः अपने को बचाना है तो परमात्मा खोना पड़ता है; और परमात्मा को पाना है तो अपने को खोना पड़ता है।
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