नचिकेता ने पिता की आज्ञा को स्वीकार करते हुए उनसे विदा ली और मृत्युदेव के लोग यमलोक सशरीर पहुँचा। उस समय यमराज कहीं अन्यत्र गये हुए थे। लेकिन नचिकेता ने तीन दिन तक बिना खाए-पिए उनकी प्रतीक्षा की और जब तीन दिन बाद यमराज आए और अपने द्वार पर बालक को प्रतीक्षारत पाया तो बड़ी ही ग्लानि हुई और उन्होंने उससे आने का कारण पूछा तथा तीन दिन प्रतीक्षा के कारण तीन वर मांगने को कहा-
नचिकेता के इन प्रश्नों से एक बात स्पष्ट होती है कि मृत्युलोक ही नरकलोक है, जहां प्राणी विभिन्न प्रकार के दुःख, कष्ट, पीड़ा, उठाता है और उन्हें भोगता है और जब उसके जीवन में अग्नि अर्थात् प्रकाश जाग्रत हो जाता है वह इन सारे संशयों से मुक्त हो जाता है।
इसी विवेचन से यह भी स्पष्ट होता है कि धर्मराज यमराज मूल रूप से धर्म के अधिपति धर्मराज है जो मनुष्य के भीतर वास्तविक ज्ञान, धर्म का जागरण करते है। इसीलिये इन्हें मृत्यु का अधिपति कहा गया है अर्थात् जो मनुष्य के जीवन में मृत्युभाव को समाप्त कर सकें।
मृत्यु के अधिपति यमराज को धर्मराज भी कहा जाता है क्योंकि रोग, शोक, दुःख, पीड़ा, और मृत्यु का धर्म के अनुसार निर्णय करने वाले प्रधान यमराज ही है, इन्हीं विपदाओं के रहते कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण उन्नति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता है, मानसिक बाधा के प्रभाव स्वरूप उसके जीवन की शक्तियों का हास होता है, अतः जहां देवताओं का पूजन मनन आवश्यक है, वहीं धर्मराज यमराज की पूजा भी अत्यन्त आवश्यक है।
इस विशिष्ट साधना हेतु विशेष सामग्री की आवश्यकता रहती है और इस सामग्री में 11 गोमती चक्र, 11 हकीक पत्थर तथा एक ऋतु फल आवश्यक है। यदि तरबूज का फल प्राप्त हो सके, तो अत्यन्त उत्तम है, इसके अलावा काजल, धूप, दीप, नैवेद्य, कुंकुम, धूप, दीप, नैवेद्य, कुंकुम, लाल चंदन, पुष्प इत्यादि पहले से लाकर रखें।
सर्व प्रथम स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर, अपने पूजा स्थान में रात्रि को बैठें, लकड़ी के बाजोट (चौकी) पर लाल वस्त्र बिछाकर काजल से एक त्रिकोण के सबसे ऊपर वाली भुजा पर ‘3 गोमती चक्र’ तथा ‘3 हकीक पत्थर’ तथा त्रिकोण की दूसरी दोनों भुजाओं पर ‘3 गोमती चक्र’ तथा ‘3 हकीक पत्थर’ रखें, सबसे नीचे त्रिकोण के नीचे पर ‘2 गोमती चक्र’ तथा ‘ 2 हकीक पत्थर’ रखें, इस प्रकार प्रत्येक भुजा पर तीन-तीन बिन्दु हो जायेंगे, त्रिकोण के मुंह के पास दो-दो गोमती चक्र तथा उस पर दो हकीक पत्थर रखें, ये दोनों यमराज के द्वारपाल है, त्रिकोण के मध्य में एक ऋतुफल रखें।
इस साधना को रात्रि को ही सम्पन्न करना आवश्यक है, साधना के समय तेल का दीपक तथा धूप अवश्य चलायें, उपरोक्त तिथि को अथवा किसी भी रविवार को साधना प्रारम्भ करने से पहले संक्षिप्त रूप से गुरू पूजन करें, और उसके पश्चात् साधना सामग्री ऊपर दिये गये वितरण के अनुसार रखकर धर्मराज यमराज साधना प्रारम्भ करें, साधना प्राप्त करते समय निम्न लिखित मंत्र पढ़कर यमराज का ध्यान करें, यह साधना का संकल्प है-
इसके पश्चात् इस लेख में दिये गये ध्यान मंत्र का जप 11 बार करें और यदि संस्कृत में जप संभव न हो तो उसके हिन्दी अनुवाद का जप करें, प्रत्येक बार मंत्र जप के साथ ही एक गोमती चक्र पर अपने हाथ रखें, इस प्रकार सामने बाजोट पर बनाये गये प्रत्येक बिन्दू पर एक-एक बार हाथ रखकर ध्यान आवश्यक है।
प्रत्येक बार ध्यान मंत्र का जप करते हुए मानसिक रूप से संकल्प आवश्यक है और जिस प्रकार की बाधाओं के निराकरण हेतु ये साधना की जा रही है, उन विशेष साधनाओं का नाम लेकर ‘मेरा कार्य सफल करों’ यह कहना आवश्यक है, इसके पश्चात् ‘काली हकीक माला’ से निम्न मंत्र की 11 माला जप वहीं आसन पर बैठ कर करें।
इस मंत्र का जप नियमित रूप से किया जा सकता है, सात दिन नियमित रूप से इस मंत्र का जप करने से परिणाम सामने दिखाई देते है।
मंत्र समाप्ति के पश्चात् त्रिभुज के बीच में रखे हुए ऋतुफल को कांटे, और उसमें से कुछ हिस्सा धर्मराज को अर्पित करें, यह बलि विधान है, शेष ऋतुफल उसी स्थान पर बैठे स्वयं ग्रहण करें।
साधना की पूर्णता के पश्चात् सब सामग्री तथा वस्त्र किसी पीपल के वृक्ष अथवा नदी में अर्पित कर दें।
उड्डीस मंत्र में लिखा है कि –
अर्थात् जो व्यक्ति प्रति दिन धर्मराज यमराज मंत्र का जप करता है, उसके सभी रोग नष्ट हो जाते है, और वह दीर्घायु तथा समस्त सुखों के साथ प्राप्त करता है, धर्मराज यमराज सूर्य के पुत्र है, तथा शुक्र के भ्राता है, शुक्र मनुष्य के जीवन में ऐश्वर्य, भोग, सांसारिक सुख एवं कामनाएं देने वाला ग्रह है अतः धर्मराज की पूजा करने से शुक्र पूजा का लाभ भी प्राप्त होता है, यह भी निश्चित है, कि जब दुःखों का व बाधाओं का अन्त होता है, तभी सुखों का प्रारम्भ होता है, बाधाओं के रहते, सुखों का पूर्ण आनन्द लिया ही नहीं जा सकता है।
वर्तमान युग में समय, देश, काल को देखते हुए यह मंत्र विधान तथा पूजा अत्यन्त ही आवश्यक एवं लाभकारी है, प्रत्येक साधक को अपने कार्यो में अनुकूलता पूर्ण रूप से प्राप्त करने हेतु यह साधना अवश्य सम्पन्न करनी चाहिए यदि संभव हो सके तो नियमित रूप से सोते समय यम मंत्र का जप अवश्य करें।
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