यदि मैं तुम्हारा हाथ पकड़ुंगा तभी तुम पूर्णता तक पहुंच पाओगे नहीं तो तुम भटक जाओगे, बीच रास्ते में ही मार्ग बदल दोगें। इसलिए मुझे तुम्हारा हाथ पकड़ कर रखना पड़ेगा और तुम चाहों भी तो उसे छुड़ा नहीं सकतें।
मे तुम्हें जीवन का वह रास्ता दिखाने आया हुं जहां ठोकर पर सारी दुनिया को रखा जाता है, जहां संसार को ठोकर मारकर अपने आपको पूर्णता की ओर अग्रसर करने की क्रिया होती है। यह दीन-हीन शिष्य बनने की क्रिया नहीं है। तुम्हें तो एक ऐसा विस्फोट करना है कि जीवन अद्वितीय बन सकें।
में उस प्रकार का गुरू नहीं हुं कि तुम्हें सदा उपदेश देता रह। मैं तो तुम्हे सही रास्ते पर अग्रसर करने की क्रिया कर रहा हूं। तुम नहीं भी चाहोगे तो भी में तुम्हें घसीट कर उस् मार्ग पर खड़ा करूंगा ही जिस पर अग्रसर होने पर पूर्णता प्राप्त हो सकती है।
में हजारों सालों में पहली बार एक नवीन चेतना दें रहा हूं, एक नवीन ज्ञान दें रहा हुं, नवीन भावना दें यहा हुं कि इस बार तुम्हें रूकना नहीं है, मोह में नहीं पडना है इस बार पहाड़ से टकराना है हिमालय से टकराना है। इस बार मैं तुम्हें उस घटिया रास्तें पर बठने ही नहीं दूंगा क्योंकि मैं तुम्हारे पूर्ण रक्त को शुद्ध कर रहा हूं।
तुम्हारा मेरा संबंध इस जीवन का नहीं है पूरे पच्चीस जन्मों का संबंध है और पिछले पच्चीस जन्मों से तुम्हारी बागडोर मैंने अपने हाथ में पकड़ रखी है।
हों सकता है इस संसार के माया जाल में तुम फंस जाओ मगर फंसने के बावज़ूद भी तुम्हारे और मेरे प्राणों के संबंध रहेंगें। उसको तुम भूल नहीं सकोंगे क्यों कि हर क्षण, हर ध्वनि में तुम्हें मेरा हीं स्वरूप दिखाई देगा। जब तुम दर्पण में अपने चेहरे को देखोगे तो उसमें भी तुम्हें मेरा हीं प्रतिबिम्ब दिखाई देगा।
इस ढंग से कोई हीरे नहीं लुटाता, जिस ढंग से मैं ज्ञान आप पर लुटा रहा हूं। यह आपका सौभाग्य है, कि में आपको उस जगह तक ले जाना चाहता हुं कि परे विश्व में आप विजयी हों, आप सफलता युक्त बन सकें और मैं अपने शब्दों पर दृढ हुं और में आपको अद्वितीय बना रहा हूं।
जो भी बने अद्वितीय बने, सामान्य जीवन जीना तुम्हारे लिए उचित नहीं है। सामान्य जीवन जीकर तुम अपना नाम तो डुबोते ही हो, मेरा नाम भी डुबोतें हो। कोई देवता या भगवान पैदा नहीं होते, बनते हैं। जन्म आपके हाथ में नहीं था, लेकिन अगर जन्म लेकर आपको गुर मिल जाए, तो फिर आप अद्वितीय बन सकते हैं, राम बन सकते हैं, क़ष्ण बन सकते हैं।
समुद खुद आगे चलकर गंगोत्री कें पास नहीं जाता, गंगोत्री से गंगा खुद उतर कर समुद तक जाएगी। उस गंगा को जाना है समुद्र तक, यदि गंगा नहीं जाएगी, बीच में सूख जाएगी तब भी समुद्र अपनी जगह को नहीं छोडेगा। समर्पण तो शिष्य को हीं करना पडेगा।
अगर भगवान को साक्षात देखना है, प्रभु के सामने साक्षात॒ नृत्य करना है, उस प्रभु को अपनी आंखो में बसा लेने की क्रिया करनी है, तो स्त्री हठ को धारण कर हीं देखा जा सकता है। स्त्री का अर्थ है, जिसका हठ पक्ष जाग्रत हो, क्योंकि हठ पक्ष को जाग्रत करने की क्रिया प्रेम है।
शिष्य जितना गुरू में एकाकार होता है उतना ही गुरू उसको धकेलता रहता है। यह शिष्य पर निर्भर है कि वह अपने आप को पूर्ण समर्पित करता है या अधूरा समर्पित करता है।
शिष्य ऐसा हो, जो कफन बांध कर निकले, जो समाज की परवाह नहीं करे, जो चुनौतियों को होल सके, जिसकी आंखों में तेवर हों….. अग्लि स्फूलिंग हो, जिसके हाथों में वज़ हीं तरह प्रहार करले कीं क्षमता हो, और जो सहीं अर्थों में गुरू चरणों में समर्पित होने की भावना रखता हो।
मैं पूर्ण हुं और तुम मेरे सामने पूर्ण होने के लिए बैठे हो। आवश्यकता इस बात कीं है कि तुम इस जगह खड़े रह सको जहां से छलांग लगानी है। ज्यों ही छलांग लगाई तुम समुद्र में विसर्जित हों जाओगे और समुद्र बाहें फैलाकर तुम्हें अपनी सीने में समेट लेगा, क्योंकि मैं तो प्रत्येक स्थिति में तुम्हारे सामने हूं।
अणु से विराट बनाने की क्रिया केवल गुरू जानता है, मनुष्य से देवता बनाने कीं क्रिया केवल गुर जानता है, मूलाधार से सहस्त्रार तक पहुंचने की क्रिया केवल गुरू जानता है और इसीलिए जीवन का आधार केवल और केवल गुरू रूपी ज्ञान का होता है।
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