संस्कृत में जो शब्द है ‘वेदना’ दुख के लिए वह बहुत अद्भुत है। दुनिया की किसी भाषा में वैसा शब्द नहीं है। वेदना के दो अर्थ होते हैं। वेदना का एक अर्थ तो होता है ज्ञान क्योंकि वह वेद से ही बना है और दूसरा अर्थ होता है दुख। दुख में भी ज्ञान होता है आपको शरीर का, कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों के हाव-भाव में ही सुख-दुःख का एहसास होता है। जो पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति है, विदेह की अवस्था में होता है। इसलिए हमारा शब्द ‘स्वस्थ’ भी बहुत अदभुत है। स्वस्थ का मतलब हैः स्वयं में स्थित। अंग्रेजी का शब्द ‘हेल्थ’ का अनुवाद नहीं हो सकता। स्वस्थ का अर्थ हैः स्वयं में स्थित।
अग्नि शब्द से अग्नि पैदा नहीं होती है और आप कितना ही चिल्लाएं-आग, आग, आग-कोई आग पैदा नहीं होती। फिर भी आग शब्द का आग से संबंध है और पैदा बिल्कुल नहीं होती। फिर भी संबंध है, प्रतीक का संबंध है, सिंबल का संबंध है। अभी यहां कोई जोर से चिल्ला दे- आग लग गई! तो कुछ लोग भागना तो शुरू करेंगे और अगर आस-पास धुआं भी दिखाई पड़ जाए, चाहे आग न भी लगी हो, तो भी भगदड़ तो हो जाएगी। आग शब्द भी आपको दौडा़ सकता है।
अन्दर मन है। उसके अपने राग हैं, अपने रंग है, दूसरे को तो दिखाई नहीं देता, तुम्हीं को दिखाई पड़ेगा। तुम्हारा मन दूसरों को दिखाई भी कैसे पड़ सकता है? तुम किस दुनिया में रहते हो वह किसी को भी पता नहीं चलता। तुम थोड़े होश से रहो, तो तुम्हीं को पता चलना शुरू होगा और तुम्हारा मन सारी चीजों को रंग डालता है। किसी को तुम कहते हो की यह मेरा अपना है और यह पराया। किसी को मित्र, किसी को शत्रु। कौन है मित्र? कौन है शत्रु? जो तुम्हारी वासनाओं के अनूकूल पड़ जाए, वह मित्र। जो तुम्हारी वासनाओं के प्रतिकूल पड़ जाये, वह शत्रु। कोई अच्छा लगता है, कोई बुरा लगता है। किसी के तुम पास होना चाहते हो। किसी से तुम दूर होना चाहते हो। यह सब तुम्हारे मन का ही खेल है।
सुन्दर स्त्री जो एक दफ्रतर में जाती है। सावन का महीना आया, तो उसने दफ्रतर में पुराने नौकर ने कहा साहब यहां और तो कोई दिखाई नहीं पड़ता, जिसे मैं राखी बांधू और मेरा कोई भाई नहीं है। बस आप ही एक सरल व्यक्ति दिखाई पड़ते हैं। तो परसों राखी का त्यौहार आता है। मैं आपको राखी बांधूंगी। लेकिन ध्यान रहे, इक्कीस रूपये और एक साड़ी आपको देनी पडे़गी। व्यक्ति थोड़ा चिंतित हुआ। माथे पर चिन्ता की रेखा आई। तो शायद उस स्त्री ने सोचा कि इक्कीस रूपये और साड़ी महंगी ज्यादा तो नहीं हो गई। तो उसने कहा कि नहीं नहीं, उसकी फिक्र मत करिये। वह तो मैं मजाक कर रही थी। उसने कहा, वह सवाल नहीं है। आप गलत समझीं। इक्कीस की जगह बयालीस रूपये ले लेना। एक साड़ी की जगह दो साड़ी ले लेना, लेकिन कम से कम रिश्ता तो मत बिगाड़ो। स्त्रियां सदा ही पुरूषों से ज्यादा निष्ठावान रही हैं। यह कोई एक पुरूष के संबंध में सच नहीं, यह समस्त पुरूषों के संबंध में सच है। पुरूष होने का ढंग ही निष्ठा का नहीं है। स्त्री के होने का ढंग ही निष्ठा है। स्त्री एक पुरूष को प्रेम कर लेती है और जीवन भर के लिए काफी मानती है। जीवन भर के लिए ही नहीं, मन्दिरों में प्रार्थना करती है कि बार-बार यही पति मिले। और पुरूष? पुरूष कहता है- हे प्रभु, कब इससे छुटकारा हो!
जहां धन धोखा है, वहां उसी को सब कुछ मान कर जी लेता है। जहां देह आज है और कल नहीं होगी, उस देह के साथ ऐसा रससिक्त हो जाता है, कि जैसे यही मैं हूं! जहां विचार हवा की तरंगों से ज्यादा नहीं हैं, उन्हीं विचारों में इतना लीन हो जाता है, जैसे कि वे शाश्वत नित्य है! जहां अहंकार एक झूठी मान्यता है, उस झूठी मान्यता पर सब न्यौछावर कर देता है, मरने-मारने को उतारू हो जाता है। कल्पना अज्ञान का सूत्र है।
जीवित प्रभु ही पार लगाते हैं। अगर तुम डूब रहे हो तो कोई जिंदा आदमी ही तुम्हें बचा सकता है। घाट पर लाशें रखी रहे तो उन लाशों में से एक भी छलांग लगा कर पानी में नहीं कूदेगी, तुम्हें बचाएगी नहीं और जीवित भी लोग बैठे हों, लेकिन जीवित में भी केवल वही बचा सकता है तुम्हें, जो तैरना जानता हो।
जिन्दगी उनकी है जो गणित से मुक्त हो जाते है, जो हिसाब-किताब से ऊपर उठते हैं, अतिक्रमण करते हैं, जो प्रेम से जीते हैं। जो हृदय से जीते हैं, जिन्दगी उनकी है और जिनकी जिन्दगी है उन्हीं का परमात्मा है और जिनकी जिन्दगी है उनका स्वर्ग कल नहीं है, भविष्य में नहीं है, मौत के बाद नहीं है। उनका स्वर्ग अभी है और यहीं है। वे स्वर्ग में ही हैं। अर्थात् आनन्दमय है, पूर्णमय है। लेकिन मनुष्य के जीवन का एक तर्क है- एक काम करके जब थक जाता है तो तत्क्षण दूसरी अति पर चला जाता है। स्वभावतः उसे लगता है ऐसा करने से नहीं हुआ, इसके विपरित करके देख लूं। केवल यह एक प्रतीक है और महत्वपूर्ण प्रतीक है। छाया तो ठोस चीज की बनती है-शरीर की बनती है, आत्मा की नहीं बन सकती। अगर बिल्कुल शुद्ध कांच हो- पारदर्शी-तो उसकी छाया नहीं बनेगी। आत्मा तो पदार्थ नहीं है, चेतना है, आत्मा की कोई छाया नहीं बन सकती। देह तो यहीं छूट जाती है, परलोक में तो सिर्फ आत्मा होती है। आत्मा की कैसी छाया!
बुद्धों का काम इसलिए थोड़ा कठिन है। तुम गाली देते हों, क्योंकि तुम पार नहीं होना चाहते। तुम कहते हो, हम भले है, मजे में है, कहां ले चले? हमें जाना नहीं। हमने यहां घर बना लिया है, गृहस्थी बसा ली है, बहुत फैलाव कर लिया है, बहुत जाल बुन लिया है। हमारे सारे स्वार्थ इस किनारे पर है और तुम कहते हो- उस किनारे चलो। तुम ही जाओ। आएंगे कभी हम भी, मगर अभी नहीं। लेकिन बुद्धों की भी तकलीफ है। उनको पड़ता है कि तुमने जो बनाया है सब झूठा है माया है, सपना है। वे चाहते हैं कि तुम्हें जगा दें। उनकी करूणा चाहती है कि तुम्हें जगा दे। क्योंकि तुम जो धन इकट्ठा कर रहे हो वह धन नहीं है, कूड़ा-करकट है। तुमने जो हीरे समझे है, वे हीरे नहीं है, कंकड़-पत्थर है। बुद्धों को साफ दिखाई पड़ रहा है कि तुम कंकड़-पत्थरों को इकट्ठे कर रहे हो और समय गंवा रहे हो। वे तुम्हें झकझोरना चाहते हैं। वे कहते हैं, जरा आंख खोल कर भाई देखो ये कंकड़-पत्थर है! और मुझे हीरों की खदान पता है, मैं तुम्हें वहां ले चलता हूं जहां अकूत हीरे है। मगर तुम्हारी भी अड़चन है। तुम जन्मों-जन्मों से इन्हीं कंकड़-पत्थरों को हीरे मान रहे हो। तुम्हारी बड़ी श्रद्धा इन कंकड़-पत्थरों पर है। कोई डिप्टी कलेक्टर है, उसको कलेक्टर होना है। वह कहता है, अभी ठहरो। अभी निर्वाण नहीं, अभी समाधि नहीं। अभी कहां कैवल्य! पहले कलेक्टर तो हो जाऊं! लेकिन कलेक्टर होने से क्या होता है? कमिश्नर होना है। कमिश्नर होने से क्या होता है? गवर्नर होता है। और यह होने की दौड़ का कोई अंत नहीं है।
यहां कितना ही भरोसा रखो, सब भरोसे आत्मवंचनाएं है। यहां कितनी ही कामनाओं के घोड़े दौड़ाओ, सब सपनों की दौड़ है। कितनी ही नावें चलाओ, सब कागज की नावें है। और कितना ही मन फूला-फूला लगे, सब पानी के बबूले हैं- अब टूटे, तब टूटे, देर-सबेर, लेकिन सब बबूले टूट जाएंगे, फूट जाएंगे। हाथ यहां कुछ भी नहीं लगता है। खाली हाथ हम आते है और खाली हाथ हम जाते हैं। कुछ गंवा कर जाते हो, कमा कर तो कुछ भी नहीं जाते। बच्चा पैदा होता है तो बंद मुट्ठी आता है, जाता है तो खुला हाथ जाता है। कम से कम भ्रम तो था बंद मुट्ठी लाख की, खुली तो खाक की! ठीक ही कहते हैं। कम से कम बच्चा भ्रम तो लेकर आता है। लेकिन वे सारे भ्रम जिन्दगी में टूट जाते है।
तुम्हारे अंहकार के जीवित रहने के लिए दूसरे की जरूरत है। अगर दूसरा मौजूद हो तो अहंकार जीता है। तू हो तो मैं जीता है, बिना तू के मैं का कोई अस्तित्व नहीं बचता। जहां तू ही नहीं है वहां मैं भी नहीं है। और जहां मैं नहीं है वहां घबराहट लगेगी कि डूबने लगे- डूबने लगे अतल गहराइयों में! कोई पार मिल सकेगा इस अतल गहराई का, भरोसा नहीं आता। हाथ में छूटने लगे सब सहारे। अब तक अंहकार में जीए हो- मैं हूं। लेकिन जहां तू गया वहां मैं भी गया। गुरु को तुम बदल नहीं सकोगे। शास्त्र को तुम बदल सकते हो। गुरु तुम्हें बदलेगा और गुरु की बदलाहट का पहला सूत्र तो यही है, कि पहले वह तुम्हें जगाएगा और बताएगा कि तुम गहरी नींद में सोए हुए हो। वह पहले तुम्हें इस होश से भरेगा कि तुम अज्ञानी हो, निपट अज्ञानी हो। वह पहले तुम्हारी आंखें अंधकार के प्रति खोलेगा। क्योंकि अंधकार के बाद ही प्रकाश की संभावना है। गिरा हुआ ही उठ सकता है और जो सोचता है, मैं उठा ही हुआ हूं, शिखर पर विराजमान हूं, उसको उठाने के सब उपाय व्यर्थ हो जाते है और कोई उसको उठाने की झंझट में पड़ता भी नहीं।
शिष्य को जगाने का भाव ही गुरु पूर्णिमा का पर्व है। महामाया शक्ति युक्त तपोभूमि पर अपने आप को अहम् ब्रह्मास्मि शक्ति से आपूरित करने हेतु इन्द्राक्षी धन वैभव लक्ष्मी दीक्षा, प्रत्यांगिरा ऊर्वशी आकर्षण दीक्षा और अपने समस्त पाप ताप दोषों के शमन हेतु प्रातः 5:26 से 7:42 के बीच गुरुत्व ध्यान स्थिति में बैठकर ब्रह्म वर्चस्व स्वरूप शिष्याभिषेक दीक्षा प्रदान की जायेगी। साथ ही वन्दनीय माता जी के सानिध्य में अपने आप को शिव-गौरीमय परिवार युक्त बनाने हेतु प्रत्येक साधक द्वारा स्व रूद्राभिषेक सम्पन्न होगा जिससे जीवन में पूर्णमदः की स्थितियाँ प्राप्त हो सकेगी और भगवान सदाशिव महादेव के पूर्ण परिवार का अक्षुण्ण आशीर्वादमय फल जीवन में पूर्णमदः रूप में बना रहे। गुरु पूर्णिमा का यह महापर्व 10,11,12 जुलाई 2014 को इन्डोर स्टेडियम, बूढ़ा तालाब, रायपुर (छ-ग) में सम्पन्न होगा। वास्तव में यह शिष्य पूर्णिमा ही है। महामाया की चेतना की पूर्णता प्राप्ति के लिए इसका इंतजार सभी साधकों-शिष्यों को होता ही है।
श्रावण पूर्णिमा समलेश्वरी शिव-शक्ति साधना महोत्सव का आयोजन सम्बलपुर उड़ीसा में 08-09-10 अगस्त से गंगाधर मण्डप मैदान, नगर निगम चौक में सम्पन्न होगा। इस जीवन रक्षा महोत्सव में इन्द्राक्षी सहस्त्रलक्ष्मी दीक्षा, मनोवांछित अप्सरा सिद्धि दीक्षा सद्गुरुदेव द्वारा प्रदान की जायेगी। जिनको प्राप्त कर शिव के भक्त अपने जीवन को शिव गौरी युक्त बना सकेंगे और गुरु शिष्य के बीच रक्षा बंधन का पवित्र उत्सव भी सम्पन्न होगा। जिससे साधक को भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त कर सकेंगे।
गुरु जीवन को श्रेष्ठ रूप से जीने के लिए आपके हाथ में शक्ति के उत्साह का वह वज्र थमा सकते हैं। अपने पूर्व जन्मों के दोषों और पितृ दोषों के स्वरूप जीवन में जो मलिनता आती है, उसका पूर्णरूपेण हरण कर काल भैरव शिव-शक्ति द्वारा आप अपना जीवन अपनी इच्छानुसार जी सकते हैं। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के पितृ दिवसों में प्राचीन भैरव मंदिर में भैरव की पूजा व स्तुति करने से साधक अपने पूर्वजों के श्राद्ध कर्म की क्रिया क्षिप्रा तट पर उन्हें मोक्ष प्रदान करने में सहायक हो सकेंगे। इससे साधक के सुखमय वैवाहिक जीवन, पुत्रोत्पत्ति, आयु वृद्धि, निरन्तर मंगल कार्यों में वृद्धि होती ही है। काल भैरव महामृत्युजंय पितृ दोष मुक्ति साधना शिविर का आयोजन 19-20- 21 सितम्बर को महाकालेश्वर मंदिर प्रांगण, उज्जैन (म-प्र-) में स्वामी सच्चिदानन्द जी महाराज के दिव्य आशीर्वाद और सद्गुरुदेव के सानिध्य में सम्पन्न होगा। इन तीन दिवसों में आत्म शुद्धि, पूर्व जन्मकृत दोष, सर्व पितृ दोष निवारण तर्पण, पिण्ड दान, कालसर्प दोष मुक्ति, नव ग्रह हवन, शिव स्वरूप स्व रूद्राभिषेक, की साधनात्मक क्रियायें व्यक्तिगत रूप से साधक कर सकेगे।
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