जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं होती हैं समाज के अलग-अलग वर्ग की अलग-अलग आवश्यकताएं होती है किन्तु जिस प्रकार से भगवान शिव का परिवार सभी विरोधाभासों को समेटे एक सम्पूर्णता का प्रतीक है उसी प्रकार श्रावण मास जीवन की विभिन्न विरोधाभासी स्थितियों का निदान करने में समर्थ है। उदाहरण के लिए परिवार का मुखिया विभिन्न जिम्मेदारियों के साथ आय प्राप्ति के लिए चिन्तित रहता है। पत्नी अपने अक्षुण्ण सौभाग्य की कामना करती है, किशोर आयु वर्ग के बालक बालिकाओं को विद्या प्राप्ति की समस्या होती है, वहीं युवा वर्ग के साथ विवाह की, सुखद गृहस्थ जीवन, शत्रु नाश, सम्मान इत्यादि स्थितियों का समाधान शिव-पार्वती की कृपा से प्राप्त होती है।
भगवान शिव का गृहस्थ जीवन प्रत्येक कामनाओं से पूर्ण है। पुत्र के रूप में भगवान गणपति और कार्तिकेय हैं और पत्नी के रूप में सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी पार्वती, स्थान भी पूर्ण शांति युक्त हिमालय है। जहां पूर्ण आनन्द के साथ शिव-पार्वती परिवार विराजित होते हैं। गृहस्थ व्यक्तियों के लिए शिव-पार्वती आदर्श स्वरूप हैं। भगवान शिव को ही सृष्टि का प्रथम पुरूष माना गया है। जिन्होंने अपने साथ हर समय शक्ति को संयुक्त रखा है। भगवान शिव के बिना शक्ति अधुरी है और शक्ति के बिना शिव अधुरे हैं और जहां शिव शक्ति का मिलन होता है। वहां जीवन है, आनन्द है, पूर्णता है।
जब जीवन शव से शिव की ओर अग्रसर होता है तो शिष्य और साधक अनुभव करने लगता हैं कि उनका जीवन और कदम पूर्णता की तरफ बढ़ने लगे है, आनन्द की प्राप्ति होने लगी है इन सब का नाम ही ‘‘गृह कलेश निवृत्ति शिवत्व अखण्ड सुख वृद्धि पूर्ण मनोकामना सिद्धि रुद्राणी दीक्षा’’ है। इस दीक्षा के माध्यम से ही जीवन में पूर्णता प्राप्त हो सकेगी।
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