आज के तथाकथित युग में स्वार्थ वश प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचने के लिए बुद्धिवाद का बड़े जोरों-शोरों से प्रसार है। चिकनी पत्रकारिता का मुल्लमा हो या आधुनिक कम्पूटर के छांव तले बैठ विद्वता का आवरण ओढे़ ढ़ोंगी- इनकी कमी नहीं है, ये इस कदर बढ़ते जा रहे हैं जैसे रक्तबीज के एक-एक खून के बूंद से उत्पन्न होते अनेकों रक्तबीज। आज हमारे समाज में ही नहीं, चाहे वह भारतीय समाज हो या विश्व के अन्य किसी देश का समाज, तथाकथित बातें देखने को मिल ही रही हैं, जिसके कारण आज विश्व भर में अशांति, कोहराम, हत्याएं और लूटमार का वातावरण है।
इन सब का कारण मात्र एक है, कि इनमें संस्कार का अभाव है। इनका जीवन मात्र एक छलावे में डूब चुका है। इन्हें यह ज्ञान नहीं है, कि किस मार्ग पर चलना है? कौन सा मार्ग लम्बा सरलता पूर्वक जायें अथवा ऐसा कौन सा महत्त्वपूर्ण बिन्दु है जिससे हम पूर्णता प्राप्त कर सकें?
‘‘अज्ञानता नाशक संतान सुसंस्कार स्थापन श्री पद्मनाभ दीक्षा’’ तो एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुसंस्कारों का क्षय होता है, अज्ञानता, पाप और दारिद्रता का नाश होता है, ज्ञान, शक्ति व सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व प्रसन्नता आ पाती है। इस विशेष दीक्षा के द्वारा संतान तथा कोई भी साधक-साधिका की अज्ञानता का शमन होता है और जब उसके चित्त में शुद्धता आ जाती है, उसके बाद ही दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और जब कोई पूर्ण श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता है, तो गुरू को भी प्रसन्नता होती है।
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