जब कारागार में पुष्पदंत को पता लगा कि उन्होंने भगवान शिव की निर्माल्य को लांघा है, तो उन्हें अपराध बोध हुआ, उन्होंने शिव को प्रसन्न करने के लिय कारागार में ही शिव की उपासना की, जिससे भगवान प्रकट हुए और उन्हें मुक्ति मिली। उन्होंने ‘पुष्पदन्तेश्वर शिवलिंग’ की स्थापना भी की। पुष्पदन्त प्रणीत शिव साधना करने से साधक के सभी कार्य सिद्ध होते है- जैसे कि पुत्री का विवाह नहीं हो पा रहा हो, किसी योजना के क्रियान्वित होने में बार-बार विघ्न उपस्थित हो रहे है, या किसी भी कार्य को अपने हाथ में लिया हो और आप उसमें पूर्ण सफलता चाहते हो, प्रमोशन नहीं हो रहा हो, मुकदमें में सफलता नहीं मिल रही हो, किसी प्रकार की कोई राज्य बाधा या सरकारी अड़चन से आपके कार्य रूके रहे हो, कोई धन आपका कहीं अटका हुआ हो, आदि।
इस साधना को सोमवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। उत्तर दिशा की ओर मुख कर गुरू चित्र एवं शिव का संक्षिप्त पूजन करें। किसी थाली में सुगन्धित पुष्पों से स्वस्तिक का निर्माण करें, उस पर तांत्रोक्त रूद्र यंत्र’ को स्थापित करें। यंत्र की चारों दिशाओं में 4 पुष्पदन्त रूद्राक्ष’ स्थापित करें। यंत्र एवं रूद्राक्ष का कुंकुम, अक्षत, धूप, दीप आदि से पूजन करें। दाहिने हाथ में एक पुष्प लेकर जिस कार्य की पूर्णता के लिये यह साधना कर रहे है, उस प्रयोजन को बोले और फिर उस पुष्प को यंत्र पर चढ़ा दें। फिर ‘पुष्पदन्तेश्वर माला’ से निम्न मंत्र की 11 माला जप 7 दिन तक नित्य करें-
साधना समाप्ति होने के बाद कम से कम एक सप्ताह तक सभी सामग्री को पूजा स्थान में ही रहने दे, फिर बाद में उसे जल में विसर्जित कर सकते हैं।
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