संसार उदास है। लाख लोग मुखौटे लगा लें हंसी के आंसू छिपाए छिपते नहीं है। लाख आभूषण पहन लें सौन्दर्य के, हृदय तो घावों से भरा है। इस संसार में कांटे हैं। फूल तो केवल वे ही देख पाते हैं जो स्वयं फूल बन जाते हैं। इस संसार में कांटे ही कांटे हैं, क्योंकि हम अभी कांटे हैं। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। तुम्हें वहीं मिलता है जो तुम हो। उससे ज्यादा मिलना असंभव है, तुम्हारी पात्रता के अनुकूल मिलता है। तुम्हारे पात्र अभी आंसू ही संभाल सकते हैं इसलिए अमृत की आकांक्षा मत करो, आकांक्षा कोरी की कोरी रह जाएगी। अमृत पाने के लिए अपने पात्र को निखारना होगा, साफ करना होगा, अमृत के योग्य बनाना होगा।
भविष्य में तुम चाहते क्या हो? वही जो तुमने अतीत में पाया था सुखद, वही फिर भविष्य में मिलता रहे और भी बड़ी मात्रा में और भी निखरे हुए रूप में मगर वही! भविष्य तुम्हारा अतीत का ही प्रतिफल है। मैं चाहता हूं मनुष्य अतीत से भी मुक्त हो, ताकि भविष्य से भी मुक्त हो जाए। क्योंकि न तो अतीत का कोई अस्तित्व है, न भविष्य का कोई अस्तित्व है। अतीत जा चुका, भविष्य आया नहीं। जो है वह तो वर्तमान है-अभी और यहीं! इस वर्तमान में होने की कला ध्यान है और जो वर्तमान में समग्र रूपेण डूब जाता है- उसके जीवन में प्रकाश व्याप्त हो जाता है, उसके जीवन में ज्योति जलती है- प्रेम की, ज्ञान की, प्रार्थना की, परमात्मा की। मैं जो कह रहा हूं उस साधना को करो, अगर तुम्हें दिखे कि जो मैंने कहा था वह सत्य है तो मानना। लेकिन फिर तुम मुझे नहीं मान रहे, अपने अनुभव को मान रहे हो, अपनी साधना को मान रहे हो। मेरा प्रत्येक शिष्य अपना स्वंय का मालिक है।
कुछ मैंने जाना है, जिसमें मैं तुम्हें साझीदार बनाना चाहता हूं। कुछ मैंने पाया है, मैं तुम्हें आमंत्रित करता हूं, कि देख लो यह तुम्हारे भीतर भी छिपा हुआ है। मेरा ज्ञान तुम्हारा ज्ञान नहीं बनना है। लेकिन मेरे भीतर जो घटा है, अगर तुम पास आकर झांक कर देख लो तो तुम्हें अपने खजाने की याद आ जाएगी। बस एक दीया जल जाए, इससे बुझे दीये को याद आ सकती है की मैं भी तो जल सकता हूं! एक बीज खिल गया, अंकुरित हो गया, तो पास में पड़े दूसरे बीज के भीतर भी अदम्य अभीप्सा पैदा होगी कि मैं भी टूटू। वह भी टूटने की हिम्मत जुटाएगा, भूमि में खो जाने का साहस करेगा। क्योंकि उसने एक बीज को खोते हुए देखा, लेकिन बीज खोने से खोया नहीं, वृक्ष हो गया। और एक वृक्ष में हजारों-लाखों बीज लगे। एक बीज क्या खोया, लाखों बीज हो गए! और बीज क्या खोया, फूल और फल हो गए! आकाश सुवास से व्याप्त हो गया।
मनुष्य मृत्यु से भयभीत रहता है। वह मरना नहीं चाहता, वह तो सदैव जीना ही चाहता है। यहीं से दर्शन आरम्भ होता है। दर्शन अनुसंधान करता है और साहसपूर्वक घोषणा करता है, हे मानव! मृत्यु से मत डरो। तुम्हारे लिए एक अमर आधार है और वह है ब्रह्म। वह तुम्हारी अपनी आत्मा, जो तुम्हारे हृदय में अवस्थित है मन को शुद्ध करो और इस नित्य-शुद्ध-अमर-अपरिवर्तनशील आत्मा का चिंतन करो। तुम्हें अमरत्व प्राप्त होगा।
तोड़ना है इस समाज की जड़ता और रूढि़यों को, क्योंकि उन्हीं में फंसे हम सड़-गल रहे हैं। ये सब तोड़ी जा सकती है। यह देश पृथ्वी का सबसे धन्यभागी देश पुनः हो जायेगा, क्योंकि प्रकृति ने इसे इतना दिया है कि इसकी प्रकृति इतनी बहुविध है, इतनी वैविध्यपूर्ण है कि दुनिया का कोई देश इसका मुकाबला नहीं कर सकता। यह इतना बड़ा देश है, एक महाद्वीप है, इसमें सब तरह के मौसम, सब तरह की हवाएं, सब तरह के वातावरण, पहाड़, नदियां, मैदान, समुद्र हैं। इसके पास क्या नहीं है, इसके पास अगर कमी है तो बस एक कि इसकी प्रतिभा खो गई है, इसकी प्रतिभा जंग खा गई है और तुम्हारे बुद्धिवादी इस जंग को नहीं हटाने देना चाहते। क्योंकि जब तक यह जंग रहेगी तभी तक वे बुद्धिवादी है। यह जंग हट जाए, उनको कौन बुद्धिमान मानेगा? यह जंग हट जाए तो इस देश का प्रत्येक व्यक्ति बुद्धिमत्ता से भरा होगा।
गुरु आज्ञा का अक्षरशः पालन करने वाला ही सच्चे अर्थों में शिष्य हो सकता है। एक सच्चा शिष्य वही है जो जीवन पर्यन्त आध्यात्मिक पथ पर आरूढ़ अल्प-विकसितों में गुरु की शिक्षा और उपदेशों का प्रचार करता रहे। सच्चा शिष्य वही है जो अपने गुरु के केवल आध्यात्मिक पक्ष के साथ संबंध रखता है, व्यक्तिगत कार्यों से नहीं। गुरु के व्यक्तिगत कार्यों की आलोचना करना उसका काम नहीं। सदा याद रखिए कि संत के स्वभाव की थाह पाना कठिन है। उसकी जांच करना आपका काम नहीं। अपने अज्ञान के अधूरे मापदंड से उन्हें मत मापिये। सार्वभौमिक दृष्टि से की हुई गुरु-कृतियों की समालोचना न कीजिए।
बहुत शास्त्र रचे जा चुके हैं, बहुत मार्ग बनाये जा चुके हैं। किन्तु जो पग-पग पर जीवन धड़क रहा है उसे पहचानना कोई सीखा नहीं सका। यही कारण है वैमनस्य, विषाद, तनाव और परस्पर घृणा का और जीवन की यह शैली केवल गुरुदेव ही अपने संस्पर्श से सीखा सकते हैं। आपने यदि उस शिशु का आनन्द देखा हो जो उसे किसी नयी वस्तु को देखने पर मिलता है या किसी मां के आनन्द को छलकते देखा हो, परखा हो जो उसे अपने अबोध शिशु को समझाने पर आता है, ठीक वहीं सम्बन्ध है गुरु शिष्य के मध्य। कल को आप जब इस अनूठे प्रेम को छककर पी लेंगे तो फिर आप भी निमंत्रण भेजेंगे दूसरों को, शुभकामना भेजेंगे सब को। क्योंकि यह ऐसा ही गुरुपूर्णिमा का अमृत महोत्सव है कि जिसने छक कर पान किया तो वह बांटे बिना नहीं रह सकता। आपके बांटने के ढंगों में अन्तर हो सकता है, आपकी शैली अलग हो सकती है, हो सकता है आप नाचते हुए बांटे, जैसा मीरा ने इस अमृत को बांटने के लिए राजमहल छोड़ कर सड़कों पर निकल पड़ी।
गुरु पूर्णिमा के महोत्सव पर 10,11,12 जुलाई 2014 को इन्डोर स्टेडियम, बूढ़ा तालाब, रायपुर (छ-ग) में अपने आप को अहम् ब्रह्मास्मि शक्ति से युक्त करने हेतु, इन्द्राक्षी धन वैभव लक्ष्मी दीक्षा, प्रत्यांगिरा ऊर्वशी आकर्षण दीक्षा, तथा शनिश्चरी जंयती पर अपने समस्त पाप ताप दोषों के शमन हेतु प्रातः 5:26 से 7:42 के बीच गुरुत्व ध्यान स्थिति में बैठकर ब्रह्म वर्चस्व स्वरूप शिष्याभिषेक दीक्षा प्रदान की जायेगी। वन्दनीय माता जी के सानिध्य में स्व रूद्राभिषेक सम्पन्न होगा जिससे जीवन में पूर्णमदः की स्थितियाँ प्राप्त हो सकें और भगवान सदाशिव महादेव और माता गौरी के श्रावण मास का फल जीवन में अक्षुण्ण बना रहे। अपने आप को प्रेम, हर्ष, आनन्द और रस युक्त बनाने हेतु जीवन्त जाग्रत क्रियाओं कि प्राप्ति के लिए तथा शिव-गौरी मय परिवार युक्त बनाने हेतु प्रत्येक साधक द्वारा प्रत्येक साधक शिवस्वरूप जीवन का निर्माण कर सके और साधिका को गौरी स्वरूप अखण्ड सौभाग्यवती युक्त जीवन की प्राप्ति संभव हो सकें इसी हेतु गुरु पूर्णिमा महामाया शक्ति पीठ की तपोभूमि पर सम्पन्न होगी। गुरु पूर्णिमा का यह महापर्व तो वास्तव में शिष्य पूर्णिमा ही है और गुरुमय चेतना की पूर्णता प्राप्ति के लिए इसका इंतजार सभी साधकों-शिष्यों को होता ही है। ऐसे महान अवसर पर आप सभी सपरिवार आमंत्रित है। आपके इंतजार में——
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