पूर्णिमा का तात्पर्य है, पूर्णता। पूर्णिमा में दिन के समय गगन मण्डल मे सूर्य अपने तेज प्रकाश द्वारा धारा को आलोकित करता है, तो उसी धारा को रात्रि में चन्द्रमा अपने शुभ शीतल प्रकाश द्वारा शीतलता एवं प्रेम का प्रवाह देता है। यही कार्य सद्गुरुदेव करते हैं, जीवन में ऊष्णता हो, तेजस्विता हो, प्रकाश हो, वहीं जीवन में प्रेम की फ़ुहार हो, पूर्णता की शान्ति हो, जीवन में सारे रस अर्थात् प्रेम, सौन्दर्य, हास्य, करूणा, विनोद, सहजता की धारा हो। इसकी प्राप्ति गुरु पूर्णिमा पर संभव हो पाती है।
शिव को शक्ति से या नारायण को भगवती से अलग करके नहीं जाना जा सकता। शक्ति और शक्तिमान की भिन्नता सम्भव नहीं है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर भगवती और नारायण का समन्वित पूजन दिया जा रहा है। गुरु पूर्णिमा इस पर्व पर शिष्यों और साधकों के सौभाग्य का प्रतीक है।
साधना सम्पन्न करने से पूर्व स्नान करें तथा शुद्ध वस्त्र धारण करें। उसके बाद अपने साधना कक्ष में उत्तराभिमुख होकर आसन पर बैठें। अपने सामने एक चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछा लें। साथ ही पूजन की आवश्यक सामग्री समय से पूर्व प्राप्त कर लें।
सिद्धाश्रम समस्त योगी-ऋषि वन्दन इसके बाद सिद्धाश्रम स्थित समस्त ऋषि, मुनि, संन्यासी, योगियों व दिव्य पुरूषों को हाथ जोड़कर नमन करते हुए प्रातः स्मरणीय भगवत्पाद परमंहस स्वामी सच्चिदानन्द जी को इस मंत्र के साथ नमन अर्पित करें-
।। सिद्धाश्रमो प्राण सदैव चिन्त्यं, योगीश्वरोऽयं
दिव्यं प्रणम्यं, सच्त्सि्वरूपं भगवन्त मूर्तिं,
प्रणम्यं शरण्यं प्रणम्यं नमामि।।
इसके बाद चौकी पर बिछे श्वेत वस्त्र पर कुंकुंम से रंगे हुए अक्षत द्वारा ‘श्रीं’ बीज और ‘ह्रीं’ बीज बनाएं, उस पर पूजनीय माता जी एवं सद्गुरुदेव का चित्र स्थापित करें। इसके बाद निम्न मंत्र से धूप तथा दीप प्रज्जवलित करें-
ऊँ अं ब्रह्माण्ड स्वरूपाय निखिलेश्वराय
सशक्तिकाय हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः।
दोनों हाथ जोड़कर श्रद्धापूर्वक पूजनीय माताजी एवं पूज्यपाद सद्गुरुदेव का इन मंत्रें के साथ आवाहन करें तथा बाद में हिन्दी में सरलार्थ को भी पूर्ण भाव से बोलकर पढ़ें।
भगवति भवरोगात् पीडि़तं दुष्कृतौघात्,
सुतदुहितृ कलात्रेपद्र वैर्व्याप्यमानम्।
विलसदमृत दृष्टया वीक्ष्य विभ्रान्त चित्तं,
सकल भुवनमातस्त्राहि मां त्वां नमस्ते।।
हे भगवती जननि! मैं अपने पाप समूह के कारण भवरोग से पीडि़त, अपने पुत्र पौत्र आदि पारिवारिक समस्याओं से ग्रस्त हूं, मुझ पर अपनी अमृत दृष्टि पात कर के मुझे कृतार्थ करें, मेरी यही कातर प्रार्थना है। इसके बाद सद्गुरुदेव व मातृश्री का भावपूर्ण आवाहन करें।
ब्रह्मस्वरूपममलं च निरंजन तं, ज्योतिप्रकाश मनिशं
महतो महन्तम्। कारूण्य रूपमति बोधकरं प्रसन्नम,
नित्यं भजामि निखिलेश्वर भावगम्यम्।। आवाहयामि
मम देह रूपम्, आवाहयामि मम प्राण रूपम्। चिन्त्यं
विचिन्त्यं भवदेव रूपम्। आवाहयामि शरण्यं शरण्यं।।
मातृश्री भगवती एवं पूज्य सद्गुरुदेव के आसन हेतु चित्र के समीप एक-एक पुष्प का आसन प्रदान करें।
एतोस्मानं सकृते कल्याणत्वं आदौ
पुष्पासनं समर्पयासमि नमः।
इसके बाद ‘सद्गुरु शक्ति सायुज्यं यंत्र’, ‘निखिल चैतन्य गुटिका’ एवं ‘भगवती शक्ति माला’ को दोनों हाथों में लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हंसः आवरण
सहिता प्राणा इह प्राणाः। आं ह्रीं क्रों जीव इह
स्थितः। आं ह्रीं क्रों सर्वेन्द्रियाणि
वाड्मनश्चक्षुश्रोत्रत्वक् जिह्वा घ्राण पाणिपायू
उपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।
किसी ताम्र पात्र या थाली में कुंकुंम से स्वास्तिक बनाकर उसके ऊपर सद्गुरु शक्ति सायुज्य यंत्र को स्थापित करें। यंत्र के सामने चावल की एक ढेरी बनाकर उस पर निखिल चैतन्य गुटिका को स्थापित करें। फिर यंत्र और गुटिका को आबद्ध करते हुए भगवती शक्ति माला पहना दें।
यंत्र पूजन- अब सामुज्य यंत्र जो कि सद्गुरुदेव व मातृश्री की दिव्य शक्ति से युक्त है को स्थापित कर पूर्ण श्रद्धा से पूजन सम्पन्न करें।
स्नान- शुद्ध जल अथवा इत्र मिले हुए जल को आचमनी में लेकर निम्न मंत्र बोलते हुए एक-एक आचमनी जल चढ़ावें-
गंगाजलेन स्नानं समर्पयामि नमः।
यमुनाजलेन स्नानं समर्पयामि नमः।
गोदावरीजलेन स्नानं समर्पयामि नमः।
सरस्वतीजलेन स्नानं समर्पयामि नमः।
नर्मदाजलेन स्नानं समर्पयामि नमः।
सिन्धुजलेन स्नानं समर्पयामि नमः।
कावेरीजलेन स्नानं समर्पयामि नमः।
श्री भगवति नारायणाभ्यां नमः।
तिलक- निम्न मंत्रें को बोलते हुए यंत्र पर प्रत्येक मंत्र के साथ कुंकुंम से तिलक करें-
ऊँ भगवत्यै नमः। ऊँ अपराजितायै नमः। ऊँ
नित्याजै नमः। ऊँ शुद्धायै नमः। ऊँ दिव्यायै नमः।
ऊँ सौभाग्यायै नमः। ऊँ सर्व मंगल मंगलायै नमः।
श्री भगवती नारायणाभ्यां नमः।
अक्षत- निम्न मंत्रें का उच्चारण करते हुए यंत्र पर अक्षत अर्पित करते जाएं-
ऊँ तद्ब्रह्म। ऊँ तद्वायुः। ऊँ तदात्मा। ऊँ तत्सत्यम्।
ऊँ तत् सर्वम्। ऊँ तत् पुरोर्नमः। त्वमेव प्रत्यक्षं
तत्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं
भर्तासि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं
ब्रह्मसि। श्री भगवति नारायणाभ्यां नमः।
पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य- निम्न श्लोकों का उच्चारण करते हुए यंत्र पर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य समर्पित करें-
नारायण स्वरूपाय परमार्थेकरूपिणे, सर्वाज्ञानतमोभेद
भाविने चिद्घनायते। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो
महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
पुष्पांजलि- निम्न मंत्र बोलते हुए पुष्पांजलि के रूप में बिल्व पत्र, खुले पुष्प और अक्षत यंत्र के ऊपर चढ़ावें-
ऊँ भवाय नमः पादौ पूजयामि। ऊँ गुरुभ्यो नमः
पादौ पूजयामि। ऊँ परम गुरुभ्यो नमः पादौ
पूजयामि। ऊँ परात्पर गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि।
ऊँ परमेष्ठि गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि
सद्गुरुदेव व मातृश्री स्तुति इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर पूजनीय माताजी एवं पूज्य गुरुदेव जी का अत्यन्त भावनापूर्ण रूप से निम्न स्तुति पाठ करें, फिर उसके भावार्थ को श्रद्धान्वत होते हुए पढ़ें-
ब्रह्मस्थान सरोज मध्य विलसच्छीतांशुपीठेस्थितम्,
स्फूर्यत्सूर्य रूचिं वराभय करं कर्पूर कुण्डोज्ज्वलं।
श्वेतः सृग्वसानानुलेपनयुतं विद्युद्रुचोकान्ताया,
संश्लिष्टार्ध तनुं प्रसन्नवदनं श्रीमद्गुरुं सादरं।।
व्याप्तं यन्महसा जगत्त्रयमिदं तत्त्वप्रबोधोदयं, तं वन्दे
शिवरूपिणं निज गुरुं निखिलार्थ सिद्धिप्रदम्।।
मांतगी भुवनेश्वरी च बगला धूमावती भैरवी,
तारा छिन्न शिरोधरा भगवती श्यामा रमा सुन्दरी।
दातुं न प्रभवन्ति वांछित फलं यस्यप्रसादं बिना,
तं वन्दे शिवरूपिणं निज गुरुं सिद्धिप्रदम्।
काशी द्वारवती प्रयाग मथुरायोध्या गयावंतिका,
मायापुष्कर कांचिकोल्यि श्री शैलेविन्ध्यादयः।
नैतेतारयितुं भवन्ति कुशलाः यस्य प्रसादं बिना,
तं वन्दे शिव रूपिणं निज गुरुं सिद्धिप्रदम्।।
रेवा सिन्धु सरस्वति त्रिपथगा सूर्यात्मजा कौशिकी,
गंगा सागर संगमाद्रितनया लौहित्य शोणादयः।
नालंप्रोक्त फल प्रदान समये यस्य प्रसादं बिना
तं वन्दे शिवरूपिणं निज गुरुं सिद्धिप्रदम्।।
जय जय जगदम्ब भक्तवश्वये। जय जय सान्द्र
कृपावशान्तरगें। जय जय निखिलार्थ दान दक्षे।
जय जय हे ललिताम्ब चित्युधाब्धे।
श्री भगवति नारायणाभ्यां नमः।
इसके बाद भगवती शक्ति माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करे।
इस विशेष मंत्र के बाद गुरु मंत्र की 4 माला मंत्र जप करना अनिवार्य है। तथा आरती सम्पन्न करें और प्रसाद ग्रहण करें। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने इष्ट, मित्रों, गुरु भाइयों व परिवार के साथ हों तो घर पर गुरु प्रसाद स्वरूप भोज करें।
शाश्वत चैतन्य गुरु पूर्णिमा के महापर्व पर तो प्रत्येक शिष्य और साधकों को अपने सद्गुरु का सानिध्य प्राप्त करना ही चाहिए। सासांरिक बंधनों के स्वरूप जो गुरु पूर्णिमा शिविर में नहीं पहुंच पा रहे हैं, वह यह अद्वितीय साधना अपने घर में सम्पन्न करें। हजारों साधको व शिष्यों की भावना के अनुरूप इस प्रकार का दिव्य पूजन प्राप्त होना ही अपने आप में सद्गुरुदेव की कृपा का प्रतीक है। अतः इस पूजन से किसी भी शिष्य/साधक को इस गुरु पूर्णिमा पर सम्पन्न करने से वंचित नहीं रह जाना चाहिए। आषाढ़ी पूर्णिमा और शनिश्चरी जंयती पर अपने समस्त पाप ताप दोषों के शमन हेतु प्रातः 5:26 से 7:42 के बीच पूजन सम्पन्न कर गुरुत्व ध्यान स्थिति में बैठकर ब्रह्म वर्चय स्वरूप शिष्याभिषेक दीक्षा प्राप्त कर सकेगे। अपने गुरुरूपी इष्ट को आत्मसात करे, उनके जीवन में पूर्णरूपेण गुरुतत्व की धारा प्रवाह होती रहे और भौतिक जीवन के पाप दोष का शमन हो कर पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकेंगे। तीन पत्रिका सदस्य बनाकर आपको यह शक्तिपात दीक्षा और साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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