तंत्र के आदि रचियता भगवान शिव हैं और समस्त तांत्रिक विद्याओं की रचना उन्हीं के द्वारा हुई है। बाद के विद्वानों ने शिव रचित विद्याओं में शोध कर उनमें निहित अनेक नवीन रहस्यों को खोज निकाला ओर अपने शिष्यों में उस ज्ञान का संचारण कर आने वाली पीढि़यों के लिए एक अमूल्य थाती के रूप में उन्हें सौंप दिया।
भगवान शिव ने पार्वती को योगिनी साधना के विषय में उपदेश दिया। जब पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, कि देवताओं के लिए तो स्वर्ग में सभी प्रकार के सुख उपलब्ध हैं, अप्सराएं नित्य उनकी सेवा करती रहती हैं, उन्हें अक्षुण्ण यौवन प्राप्त है और उनकी समस्त प्रकार की इच्छाएं पूर्ण होती हैं, जबकि पृथ्वी लोक में रहने वाले मनुष्यों की सभी इच्छाएं पूर्ण नहीं हो पाती और वे अपनी अपूर्ण इच्छाओं के जाल में उलझे जन्म-मरण के चक्र में फंसे रहते हैं। अतः आप ऐसा उपाय बतायें, जिससे मनुष्य भी देवताओं के समान तेजस्वी और पराक्रमी बन सकें और अपनी समस्त प्रकार की इच्छाओं को पूर्णता प्रदान करते हुए दिव्यता के पथ पर अग्रसर हो सकें।
भगवान शिव ने उत्तर दिया- योगिनी साधना ही एकमात्र ऐसा उपाय है जिसके माध्यम से मनुष्य अपनी समस्त प्रकार की इच्छाओं को पूर्णता देते हुए भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों को प्राप्त कर सकते हैं। योगिनी साधना सम्पन्न करने से भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये योगिनियाँ तत्काल फल देने वाली, समस्त प्रकार की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली होती हैं क्योंकि ये मेरी ही शक्ति का स्वरूप हैं।
शिव-पार्वती के इस संवाद से स्पष्ट हो जाता है, कि मानव जीवन में योगिनी साधना का महत्व क्या है? वास्तव में योगिनियाँ अर्द्ध देवियाँ है, देव वर्ग के इतर यक्ष, किन्नर, गंधर्व आदि योनियों के समान ही योगिनियों का महत्त्व है। योगिनियाँ तो तंत्र साधनाओं की आधारभूत देवियाँ हैं, अपूर्व सौन्दर्य की स्वामिनी होने के साथ ही साथ इन्हें तंत्र के गोपनीय और दुरूह रहस्यों का भी ज्ञान होता है। ये मात्र नारी आकृति ही नहीं होती, अपितु पूर्ण चैतन्यता से आपूरित एक विशिष्ट सौन्दर्य की स्वामिनी होती हैं और इनके नेत्रों में समाई होती है तंत्र की प्रखरता जो कि आधार है तांत्रिक साधनाओं का।
अत्यन्त गौर वर्ग, विद्युत आभा सा दैदीप्यमान मुखमण्डल चराचर विश्व को सम्मोहित सी करती झील सी गहरी काली आंखें और उनमें लहराती मादकता और करूणा का एक अनोखा संगम, मांसल, सुडौल, पुष्ट दूधिया बदन पर पारद भक्षण और पारद कल्प से प्राप्त चिरयौवन की अठखेलियों के फलस्वरूप सदैव षोडश वर्षीया नवयौवना का साहचर्य जिसे प्राप्त हो जाता है, उसके जीवन में फिर असम्भव जैसा कोई शब्द रह ही नहीं जाता, क्योंकि दिव्य आभा से आपूरित इन अत्यन्त तेजस्वी सौन्दर्य की मलिकाओं के अन्दर समाई होती है तंत्र की विलक्षण तीव्रता।
यों तो सौन्दर्य साधनाओं के रूप में अप्सराओं, यक्षिणियों, किन्नरियों आदि की भी साधनाओं के विधान प्राप्त होते हैं और यह भी सत्य है कि वे समस्त प्रकार के भोग प्रदान कर जीवन में आनन्द की वृष्टि करती हैं, परन्तु वे मात्र भोग प्रदान करने में ही समर्थ होती हैं, जबकि योगिनी साधना के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं वे सौन्दर्य प्रतिमाएं, जो सहयोगिनी रूप में तंत्र की विशिष्ट क्रियाओं को सम्पन्न करने में साधक की सहायता करती हैं।
इनमें सौन्दर्य की साधना की प्रखरता भी होती है और मोहन, वशीकरण, स्तम्भन, उच्चाटन आदि के साथ-साथ तंत्र की अनेक दुरूह और गोपनीय क्रियाओं में भी ये सहायता प्रदान करती हैं और साधक को खेचरी विद्या (वायु गमन), रस सिद्धि, भूगर्भ सिद्धि, वशीकरण, शत्रु स्तम्भन, मनोकामना पूर्ति, दिव्य रसों की सिद्धि, अदृश्य होने की शक्ति, यौवन और बल की प्राप्ति आदि सिद्धियां प्रदान कर उसे पल मात्र में ही सम्पूर्ण विश्व का एक अद्वितीय व्यक्तित्व बना देने में समर्थ होती हैं।
अन्य सौन्दर्य साधनाओं की अपेक्षा योगिनी साधना सहजता और तीव्रता से सिद्ध होने वाली व अनुकूल फल प्रदान करने वाली होती है। पूर्ण मनोयोग पूर्वक, श्रद्धा और विश्वास के साथ की गई साधना में योगिनियों से साक्षात्कार होता ही है। इस साधना की प्रखरता व तेजस्विता और इससे प्राप्त होने वाली असीमित तांत्रिक शक्तियों व सिद्धियों के कारण ही इसे अत्यन्त गोपनीय कर गुरु मुख परम्परा तक सीमित कर दिया गया और सामान्य जनमानस में इसके विषय में अनेक भ्रम और किंवदन्तियां फैला दी गई तथा क्रूरता और वीभत्सता की अनेक कहानियों को इनके साथ जोड़ दिया गया, कि वे अत्यन्त भीषण आकृति वाली होती हैं, उनकी मुख मुद्रा अत्यन्त भंयकर और नेत्र भय उत्पन्न करने वाले होते हैं, वे मनुष्यों को मार कर उनका रक्त पीती हैं—- आदि।
जबकि वास्तविकता तो यह है, कि वे अत्यन्त सौम्य स्वरूपा और निर्मल सौन्दर्य की स्वामिनी होती हैं और सिद्ध होने पर साधक की सभी प्रकार से सहायता करती हैं। दैहिक सौन्दर्य के साथ-साथ आन्तरिक गुणों से भी सम्पन्न ये जिस किसी को भी प्रिया रूप में प्राप्त हो जाती हैं वह स्वयं में खेचरी विद्या, रस (पारद) सिद्धि, भूगर्भ सिद्धि, वशीकरण, शत्रु स्तम्भन, अदृश्य होने की शक्ति, यौवन और बल की प्राप्ति, मनोकामना पूर्ति, दिव्य रसों की सिद्धि आदि अनेक सिद्धियों के साथ-साथ प्रखर और तेजस्वी व्यक्तित्व का स्वामी बन जाता है। यदि कहा जाये कि योगिनी साधना सम्पन्न किये बिना तंत्र की पूर्णता नहीं प्राप्त की जा सकती, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगा।
जीवन में योगिनी साधना की पूर्ण प्रखरता केवल प्रिया रूप में ही सम्पन्न करने पर सम्भव है। प्रेमिका के रूप में सिद्ध होने पर वे प्रतिपल साधक पर प्रेम और स्नेह की वर्षा करने के साथ-साथ उसका मार्गदर्शन भी करती रहती हैं और साधक की साधनात्मक सहचरी मात्र न हो कर उसके सम्पूर्ण जीवन को गति प्रदान करने में समर्थ होती हैं। परन्तु इस प्रेम में वासना का कोई स्थान नहीं होता, तंत्र अपने आपमें वासना से परे है, क्योंकि वासना अपने आपमें एक अधोगामी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से नैतिक, और आध्यात्मिक पतन की क्रिया ही प्रारम्भ होती है, जबकि तंत्र तो जीवन की ऊर्ध्वगामी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से ‘शव’ से ‘शिव’ बनने की क्रिया सम्भव होती है और जीवन का मूल ध्येय, जीवन की पूर्णता प्राप्त होती है।
तंत्र और वासना जीवन के दो विपरीत ध्रुव हैं। अतः वासना को दूर हटा कर ही योगिनी साधना को जीवन में स्थान दिया जा सकता है और जीवन में तंत्रमयता को उतारा जा सकता है, क्योंकि तंत्र अपने आप में भोग और मोक्ष दोनों को ही प्रदान करने वाला है, जीवन के दोनों पक्षों को साथ लेकर चलने की धारणा रखता है।
यद्यपि कुछ अनाधिकारी स्वार्थी तांत्रिकों के व्यभिचारों के फलस्वरूप मोहन, उच्चाटन आदि तांत्रिक क्रियाओं को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है, लेकिन मूलतः न तो ये क्रियाएं व्यभिचार युक्त हैं और न ही उनका उद्देश्य दूषित है।
तंत्र की पूर्णता को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की साधनाओं में दक्ष होना आवश्यक भी है। तांत्रिक ग्रंथों में कुल चौंसठ प्रकार की योगिनियों का विवरण प्राप्त होता हैं। यों तो सभी का अपना अलग महत्व है और उसी के अनुरूप उनके अलग-अलग मंत्र साधना विधान हैं, परन्तु जो प्रथम बार इस साधना को सम्पन्न करने का विचार करते हैं, उनके लिए सभी ग्रंथों ने एक मत से सर्वप्रथम जिन षोडश योगिनियों की साधना सम्पन्न करने की आवश्यकता पर बल दिया हैं, वे निम्न हैः
1-दिव्ययोगा, 2- महायोगा, 3- सिद्धयोगा, 4- माहेश्वरी, 5- कालरात्रि, 6- हुंकारी, 7- भुवनेश्वरी, 8- विश्वरूपा, 9-कामाक्षी, 10-हस्तिनी, 11-मंत्रयोगिनी, 12- चक्रिणी, 13- शुभ्रा, 14- शंखिनी, 15- पप्रिनी, 16- वैताली।
ये सभी योगिनियां अपने आप में दिव्य और अलौकिक क्षमताओं से युक्त होती हैं और सिद्ध होने के साथ ही अपने साधक को भी अलौकिकता, दिव्यता और अद्वितीयता प्रदान कर उसे पल भर में ही श्रेष्ठता पर ले जा कर खड़ी कर देती हैं, जहां पहुंचना साधक के स्व के प्रयास से असम्भव ही है।
उपरोक्त योगिनियों का ध्यान व उनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है-
संयाचे योगविद्यां त्वां दिव्य ज्ञान समन्विते।
योगप्रभावां योगेशीं योगीन्द्र हृदयस्थिताम्।।
‘दिव्य ज्ञान से सुशोभित योगियों के हृदय में निवास करने वाली योगेश्वरी दिव्य योगा से पूर्ण योग विद्या की मैं याचना करता हूं।’’
इस योगिनी का सहचर्य प्राप्त करने के उपरान्त ही योग विद्या को पूर्णता से समझ कर खेचरी विद्या में पारंगत हुआ जा सकता है व जीवन में उतारा सकते है।
योगविद्या महायोगा महातेजा महेश्वरी।
मायाधारी मानरता मान-सम्मान तत्परा।।
‘महायोगेश्वरी, महातेजस्वी, अनेक मायाधारी मान-सम्मान प्रदान करने वाली महायोगा का मैं आह्वान करता हूं।’
योगिनी महायोगा का स्वरूप अत्यन्त तेजस्वी है और वह अपने साधक को मान-सम्मान से सम्बन्धित अनेक सिद्धियां और पूर्ण वैभव देने में समर्थ है। इसे सिद्ध करने पर साधक चतुर्दिक, सम्पूर्ण विश्व में अपनी कीर्ति फैलाने में समर्थ होता है।
आगच्छ सिद्धयोगे त्वं! नाद बिन्दु स्वरूपिणी।
सर्वज्ञा सिद्धिदात्री च सिद्धविद्या स्वरूपिणी।।
‘नाद और बिन्दुरूपा, सिद्धि देने वाली, सब कुछ जानने वाली, समस्त विद्याओं की प्रतिमूर्तिरूपा सिद्धयोगा को मैं आहूत करता हूं।’
इस योगिनी को जीवन में उतारने के उपरान्त किसी भी साधना में असफलता का प्रश्न ही नहीं रह जाता, साथ ही साधक त्रिकालदर्शी बनने में समर्थ होता है।
प्रणवाद्या महाविद्या महाविघ्न विनाशिनी।
मानदा योगमाता सा माहेश्वरी प्रचोदयात्।।
‘प्राणस्वरूपा, सभी विद्याओं की स्वामिनी, सभी विघ्नों को दूर करने वाली, योगमाता, सभी को सम्मान दिलाने में समर्थ भगवती माहेश्वरी का मैं चिंतन करता हूं।’
योगिनी माहेश्वरी की साधना के फलस्वरूप जीवन की सभी समस्याएं, विघ्न, बाधाएं दूर हो जाती हैं और साधक अनेक गोपनीय विद्याओं को जानने में समर्थ होता है।
कालरूपा कलातीता त्रिकालज्ञा कुलात्मजा।
कुलकुण्डलिनी सैषा कैलाश नग भूषिता।।
‘काल स्वरूपिणी, समस्त कलाओं से परे, त्रिकालज्ञ, श्रेष्ठतम कुल में उत्पन्न, कुण्डलिनी स्वरूपा, कैलाश पर्वत को अपनी दिव्यता से सुशोभित करने वाली देवी कालरात्रि का मैं आह्वान करता हूं।’
इस योगिनी का आश्रय लेने पर अकाल मृत्यु, किसी गुप्त शत्रु द्वारा किये गए तांत्रिक प्रयोग आदि का निराकरण होता है और किसी के भी भूत-भविष्य को जाना जा सकता है।
हुं हुं हुंकाररूपां तां ह्रीं ह्रीं शक्ति स्वरूपिणी।
हूं हूं हूं हाकिनी चैव योगमाया समन्विता।।
‘हुंकार रूपिणी, सभी शक्तियों से युक्त, हाकिनीरूपा, समस्त योगमाया से विभूषित, देवी हुंकारी का मैं आह्वान करता हूं।’
योगिनी हुंकारी की साधना सिद्धि के उपरान्त साधक अकेला ही अपने सभी शत्रुओं का विनाश करने में समर्थ होता है।
वागीश्वरी योगरूपा योगिनी सर्वमंगला।
ध्यानातीता ध्यानगम्या ध्यानज्ञा ध्यानधारिणी।।
‘सरस्वती स्वरूपा, योग स्वरूपिणी, सर्वमंगलमयी, ध्यानरूपा, ध्यान के द्वारा प्रतीत होने वाली योगिनी भुवनेश्वरी का मैं ध्यान करता हूं। इस योगिनी के वरदायक प्रभावों से साधक वाक् सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ होता है।
विश्वेश्वरि विश्वमाता विश्वभावमयी शुभ।
विश्वरूपा च विश्वेशी विश्वसंहारकारिणी।।
‘समस्त विश्व का मातृवत पोषण करने वाली, विश्व की स्वामिनी, विश्व की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली विश्वरूपा का आह्वान करता हूं।’
इस योगिनी की साधना के उपरान्त साधक को भूगर्भ सिद्धि तथा विपुल धन-वैभव की प्राप्ति होती है और वह समस्त भौतिक सुखों को प्राप्त करने में समर्थ होता है।
साथ ही उसके अन्दर की विषय वासनाएं समाप्त हो कर ज्ञान की उत्पत्ति होती है।
कुबेर पूज्य कुलजा काश्मीरा केशवार्चिता।
कात्यायनी कार्यकरी कलादलनिवासिनी।।
‘कुबेर के द्वारा संपूजित, श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न, केशर से चर्चित, सभी कलाओं से पूर्ण कात्यायनी रूपा कामाक्षी का मैं चिन्तन करता हूं।’ इस योगिनी का पूजन सिर्फ केशर से किया जाता है। इसे सिद्ध करने पर साधक को कायाकल्प, कामदेव के समान यौवन व पौरूष तथा असीम बल की प्राप्ति होती है और उसके समस्त प्रकार के रोगों का नाश होता है।
सर्ववश्यंकरी शक्तिः सर्वस्तंभिनी तथा।
सर्वसंमोहिनी चैव कुंजरेश्वर गामिनी।।
‘समस्त विश्व को वश में करने वाली, सभी को स्तम्भित करने वाली, सभी को सम्मोहित करने वाली, मस्त हथिनी सी चाल चलने वाली योगिनी हस्तिनी का आह्वान करता हूं।’
हस्तिनी योगिनी की साधना के फलस्वरूप साधक उच्चाटन, स्तम्भन आदि के साथ-साथ मनुष्य, पशु-पक्षी चराचर विश्व को सम्मोहित और वशीभूत करने में सक्षम होता है।
महामंत्रमयी देवी देवगन्धर्व सेविता।
योगिभिश्चेव संपूज्या मंगला च मनोहरा।।
‘मंत्र स्वरूप, देव-गन्धर्वो द्वारा सेवित, योगियों के द्वारा पूजित, मंगलमयी, सौन्दर्यमयी योगिनी का मैं आह्वान करता हूं।’
इस योगिनी के सान्निध्य में साधक को तांत्रिक साधनाओं में शीघ्र ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है और वह अदृश्य होने की विद्या का ज्ञाता हो जाता है।
यशः स्वरूपिणी चक्रे योगमार्गप्रदायिनी।
यज्ञांसी योगरूपा च योगानन्दात्म संस्तुता।।
‘यश प्रदान करने वाली, ज्ञान तथा योगमार्ग में प्रवेश देने वाली, यज्ञ के अंगभूत, योग के आनन्द से सारभूत, चक्र धारण करने वाली देवी चक्रिणी का मैं आह्वान करता हूं।’
यह योगिनी योग तथा दिव्य रसों की अनेक सिद्धियां देने में समर्थ और आनन्द प्रदान करने वाली हैं।
शाम्भवी सिद्धिदा सिद्धा सुषुम्नासुरनन्दिनी।
शुभ्ररूपा तथा शुद्ध शक्ति बिन्दु वासिनी।।
‘शम्भुरूपा, सिद्धिमयी, अपने भक्तों को सिद्धि देने वाली, सुषुम्ना मार्ग से साधकों को प्रेरित करके आनन्द प्रदान करने वाली, समतामयी, परमशुद्धा, शक्ति बिन्दु पर निवास करने वाली देवी शुभ्रा का ध्यान करता हूं।’
इस योगिनी की साधना से कुण्डलिनी जाग्रत होती है और साधक परम पद को प्राप्त करने की ओर अग्रसर होता है।
शंखचक्र गदा हस्ता योगीद्रानन्दायनी।
शारदेन्दु प्रसन्नस्या शांकरी शिवभाषिणी।।
‘शंख, चक्र तथा गदा धारण करने वाली, योगियों के हृदय को आनन्द देने वाली, शारदीय चन्द्रमा के समान प्रसन्न मुख वाली, शंकररूपा, मंगलभाषिणी देवी शंखिनी का आह्वान करता हूं।’
इस योगिनी की साधना से समस्त विपत्तियों, बाधाओं, शत्रुओं आदि से पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होती है और साधक आनन्द पूर्वक साधनाओं में सफलता की ओर अग्रसर होता है।
प्रियव्रतारा नित्या परमप्रेम प्रदायिनी।
प्रफुल्लपप्रवदना पप्रधर्मनिवासिनी।।
‘प्रियवादिनी, प्रेम प्रदान करने वाली, खिले कमल के समान, सब के ज्ञान एवं योग मार्ग को विकसित करने वाली देवी पद्मिनी का आह्वान करता हूं।’
इस योगिनी की साधना से साधक पूर्ण कायाकल्प, पौरूष व अतीन्द्रिय क्षमताएं प्राप्त करते हुए साधनात्मक पूर्णता की ओर अग्रसर होता है।
योगेश्वरी च वज्रांगी विभूषणभूषिता।
वेदमार्गरता वेद मंत्ररूपा वषट् क्रिया।।
‘योगेश्वरी, सुदृढ़ देह वाली, वीरता से परिपूर्ण, वैदिक मार्ग का अनुसरण करने वाली, वेदमंत्रमयी देवी वैताली का आह्वान करता हूं।’
इस योगिनी की साधना के उपरान्त साधक अत्यन्त तेजस्विता प्राप्त करता हुआ अपने समस्त शत्रुओं का नाश करने में सक्षम होता है, साथ ही साथ उसे मंत्र साधनाओं में भी सफलता प्राप्त होती है।
यह षोडश योगिनियां और उनका विवेचन, साधक अपनी मनोकूलता के अनुसार किसी भी योगिनी की साधना कर सकता है।
इस साधना को कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पुरूष हो या स्त्री, युवा हो या वृद्ध, सम्पन्न कर सकता है। इसके लिए यह आवश्यक नहीं है, कि किसी वृक्ष की मूल में बैठें या तिराहे पर मंत्र जप करें या रात्रि को श्मशान में जायें या नदी के किनारे आसन लगायें। यह पूर्णतः सौम्य साधना है और इसे अपने पूजा कक्ष में बैठ कर सरलता से सम्पन्न किया जा सकता है, आवश्यकता है गुरु और मंत्र के प्रति श्रद्धा और पूर्ण विश्वास की।
1- इस साधना में ‘षोडश योगिनी विग्रह’ व ‘योगिनी माला’ की आवश्यकता पड़ती है, जो योगिनी तंत्र के अनुसार मंत्र सिद्ध एवं प्राण प्रतिष्ठित हों।
2- इस साधना को योगिनी एकादशी 23 जून या किसी भी माह के शुक्रवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। यह ग्यारह दिवसीय साधना है।
3- रात्रि में नौ बजे के बाद स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण कर, काले आसन पर बैठें, गुरु पीताम्बर भी ओढ़ लें।
4- सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला रेशमी वस्त्र बिछा कर उस पर गुलाब के पुष्पों के आसन पर जिस योगिनी की साधना सम्पन्न करनी है उससे संबधित योगिनी विग्रह को स्थापित करें।
5- मानसिक गुरु पूजन कर गुरु मंत्र की चार माला जप करने के उपरान्त गुरुदेव से इस साधना को सम्पन्न करने की आज्ञा व इसमें पूर्ण सफलता हेतु आशीर्वाद प्राप्त करें।
6- फिर हाथ में जल लेकर के प्रथम दिन संकल्प करें, नित्य संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है-
‘‘मैं अमुक गोत्र में उत्पन्न अमुक नाम का व्यक्ति, अमुक पिता का पुत्र अपने आध्यात्मिक एवं भौतिक जीवन में षोडश योगिनियों का साहचर्य प्राप्त करने हेतु इस षोडश योगिनी साधना को सम्पन्न कर रहा हूं, मुझे इस साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त हो, जिससे कि मैं साधनाओं में तीव्रता के साथ आगे बढ़ कर सफलता प्राप्त कर सकूं।’’
7- विग्रह के समक्ष क्रमशः योगिनी का ध्यान उच्चरित कर उसका पूजन कुंकुंम, अक्षत, केशर, पुष्प, धूप-दीप व नैवेद्य से करें। कामाक्षी योगिनी का पूजन मात्र केशर से करें।
8- अब नीचे दिये गए प्राण प्रतिष्ठित मंत्र के द्वारा यंत्र में निहित चैतन्यता और ऊर्जस्विता को अपने शरीर के अन्दर उतारें, जिससे कि षोडश योगिनियों की चेतना आपके शरीर में स्थापित हो सके और शीघ्र सफलता प्राप्त हो सके।
पहले दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग करें-
ऊँ अस्य प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्माविष्णु महेश्वर
ऋषयः ऋग्यजुः साम छन्दांसि, क्रियामयवपुः
प्राणाख्या देवता, आं बीजम्, ह्रीं शक्तिः,
क्रौं कीलकं प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः।
जल भूमि पर छोड़ दें और विग्रह पर अपना दाहिना हाथ रख कर निम्न मंत्र बोलते हुए यह भावना करें, कि विग्रह की समस्त चैतन्यता धीरे-धीरे आपके अन्दर समाहित हो रही है-
ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हंसः
सोऽहं अस्य प्राणः इह प्राणः, ऊँ आं ह्रीं
क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हंसः सोऽहं अस्य
जीव इह स्थितः, ऊँ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं
शं षं सं हंसः सोऽहं अस्य सर्वेन्द्रियाणि
वाड्मनस्त्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्ना घ्राण
पाणिपादपायूपस्थानि इहागत्य सुखं चिर
तिष्ठन्तु स्वाहा।।
फिर योगिनी माला से पहले मूल षोडश योगिनी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमानुसार षोडश योगिनीयों के विशिष्ट मंत्रों का एक-एक माला मंत्र जप करें। प्रत्येक योगिनी मंत्र की एक माला मंत्र जप करने से पूर्व तथा बाद में मूल षोडश योगिनी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर दिव्य योगा योगिनी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। फिर मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। इसी प्रकार प्रत्येक योगिनी से सम्बन्धित मंत्र का जप करना है। ऐसा ग्यारह दिन तक नित्य करें।
मंत्र जप की समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में सोयें। अगले दिन पुनः इसी प्रकार साधना सम्पन्न करें। बारहवें दिन काले वस्त्र सहित विग्रह और माला को नदी में प्रवाहित कर दें।
साधना काल में कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है- इस साधना को रात्रि में ही सम्पन्न करें। इन 11 दिनों में यथासम्भव कम से कम बोलने का प्रयास करें, मौन सर्वोत्तम है। मात्र गुरु चिन्तन, इष्ट-चिन्तन और इस साधना विशेष से सम्बन्धित चिन्तन में ही समय व्यतीत करें। ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
उपरोक्त सभी नियमों का पालन करते हुए निष्ठा और श्रद्धा पूर्वक किये गए मंत्र जप से सफ़लता प्राप्त होती ही है। यदि साधना से पूर्व साधक ‘षोडश योगिनी दीक्षा’ प्राप्त कर लेता है, तो फि़र उसकी सफ़लता में कोई सन्देह नहीं रह जाता और वह अद्वितीयता और श्रेष्ठता के मार्ग पर गतिशील हो, पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है। अपने किसी 3 मित्र या रिश्तेदार को पत्रिका सदस्य बनाने पर ‘षोडश योगिनी शक्तिपात दीक्षा’ और साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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